साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, June 11, 2021

चित्त रंजन गोप, लिये लुकाठी हाथ -सुरेश सौरभ


   साक्षात्कार  

चित्तरंजन गोप
आज हिंदी लघुकथा के क्षेत्र में चित्तरंजन गोप एक चर्चित एवं सुपरिचित नाम है। मील आज हिंदी लघुकथा के क्षेत्र में चित्तरंजन गोप एक चर्चित एवं सुपरिचित नाम है। मील का पत्थर है। देश की प्राय: समस्त लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं छप रहीं हैं। सबसे बड़ी बात, वे पहले लघुकथाकार हैं जिन्हें लघुकथा के लिए किसी पत्रिका में स्थाई स्तंभ मिला हो। प्रखर गूंज प्रकाशन नई दिल्ली की पत्रिका 'विचार वीथिका' में उन्हें 'लिये लुकाठी हाथ' नामक लघुकथा का एक स्थाई स्तंभ दिया गया है। प्रस्तुत है, पिछले दिनों उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश :


*
सर, सबसे पहले आपको लघुकथा का स्थाई स्तंभ मिलने के लिए बधाई। इस स्तंभ के बारे में कुछ बताएं?

 *जी धन्यवाद, प्रखर गूंज प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका 'विचार वीथिका' ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मुझे यह स्थाई स्तंभ ( लिये लुकाठी हाथ ) दिया है। मैं उनका शुक्रगुजार हूं। खुश हूं कि मैं अपनी लघुकथाओ से इस स्तंभ को मजबूती देने के लिए हमेशा तत्पर रहूंगा।

*आपका लेखन किस उम्र में शुरू हुआ?

*जब मैं पांचवीं श्रेणी में पढ़ता था, उस समय बांग्ला में कविताएं (बच्चों की तरह ही) लिखा करता था। मुझे याद है, मैंने कविताओं से एक कॉपी भर दिया था। उसे देखकर पिताजी ने डांटते हुए कहा था, "पहले अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। बाद में, रवीन्द्र नाथ ठाकुर बनना।" उस दिन मैंने रवीन्द्र नाथ ठाकुर का नाम पहली बार सुना था।

*आपको लेखन में किस-किस ने प्रेरित किया?

*जब मैं तीसरी कक्षा में पढ़ता था, तब बांग्ला रामायण एवं महाभारत का पाठ किया करता था। कृत्तिवास ओझा की रामायण और काशीराम दास का महाभारत अद्भुत ग्रंथ हैं। इन्हीं दो ग्रंथों ने मुझे साहित्य लेखन की कलम पकड़ा दी।

* क्या आपकी पढ़ाई बांग्ला माध्यम से हुई है?

* जी नहीं, हिंदी माध्यम से। बांग्ला मैंने घर में सीखी है। रामायण-महाभारत के अध्ययन ने इसे परिष्कृत किया है। बाद में, शौक से बांग्ला साहित्य का भी अध्ययन किया है।

* रामायण एवं महाभारत को आप किस रूप में देखते हैं?

*ये दोनों मिथक हैं। रामायण पूर्णत: काल्पनिक एवं महाभारत अल्प-सत्य महाकाव्य हैं। इनमें इतिहास का बीज है। ये इतिहास का पूरा आभास देते हैं। इनमें तत्कालीन समाज की पूरी रूपरेखा मिलती है। हां, यदि पाठक ,ज्ञान सचेतन न हो, तो इनके अध्ययन से वह गुलाम जरूर हो जाएगा।

* आपके पसंदीदा लेखक और लेखिका कौन कौन है?

*इस प्रश्न का उत्तर देना मेरे लिए कठिन है क्योंकि किसी भी लेखक को मैंने समग्रता से नहीं पढ़ा है। वैसे रवीन्द्रनाथ ठाकुर, शरत चंद्र चट्टोपाध्याय, महाश्वेता देवी, प्रेमचंद, रामवृक्ष बेनीपुरी, तस्लीमा नसरीन, रमाशंकर यादव विद्रोही, मलखान सिंह, ओमप्रकाश वाल्मीकि, धूमिल आदि का नाम ले सकता हूं।

*आपके लेखन का मूल उद्देश्य क्या है?

* सच कहूं तो कोई उद्देश्य लेकर नहीं लिखता हूं। जब कोई बात या कोई घटना मेरे भीतर को झकझोर देती है, तो स्वत: कुछ लिखा जाता है। बाद में, सोचता हूं कि इस रचना के माध्यम से मैं समाज को क्या संदेश दे सकता हूं और उस संदेश को उसमें प्रतिस्थापित कर देता हूं।

* हिंदी साहित्य की किन-किन विधाओं में लिखते हैं?

*फिलहाल तो केवल लघुकथा और कविता।

* आपकी पहली प्रकाशित लघुकथा कौन सी है?

*अकाल जन्म। दैनिक जागरण की 'पुनर्नवा' में 3 दिसंबर 2012 को यह लघुकथा छपी थी। हालांकि मेरी लिखी हुई पहली लघुकथा 'दस दहाई सौ' है जो हाल में लघुकथा कलश के जुलाई-दिसंबर 2019 अंक में छपी है।

*आपकी प्रकाशित कुछ प्रमुख लघुकथाओं के नाम?

*दस दहाई सौ, अकाल जन्म, हरामखोर, एक ठेला स्वप्न, परिवार के सदस्य, कंधे पर लाश, हजार साल बाद, सरस्वती पूजा, ऐतिहासिक भ्रातृ मिलन, मरहम आदि।

*और प्रमुख कविताएं?

*खरीदारी, पूजा की साड़ी, माटी से दूर, क्या कभी देखा है आपने, कासगंज की उस गली से होकर, आदमखोर : आदमी और शेर आदि।

*पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में कुछ बताएं।

*मेरा जन्म एक किसान परिवार में हुआ है। गाय-भैंस का कारोबार था। दूध बिक्री जीविकोपार्जन का मुख्य आधार थी। मगर मेरा काम केवल पढ़ना था। मुझे इन सब कामों में हाथ बंटाने के लिए किसी ने कभी नहीं कहा बल्कि मना ही किया। परिवार में मां, पिताजी, पत्नी, एक बेटा और दो बेटियां हैं। पिताजी किसान हैं और एक अध्ययनशील व्यक्ति भी। पत्नी मेरी तरह ही रवीन्द्रानुरागिनी हैं।

* क्या आप सामाजिक संगठनों से भी जुड़े हैं?

*नहीं। बस, चलते-फिरते किसी की कोई मदद करने का मौका मिलता है, तो कर देता हूं।

* आज के समय में स्त्री और दलित विमर्श कितना सफल और कितना असफल रहा है? इसकी क्या प्रासंगिकता है?

*आज स्त्री और दलित विमर्श पर खूब लिखा जा रहा है। लिखा जाना भी चाहिए क्योंकि उनका हजारों सालों से शोषण होता आ रहा है। वे आज भी बदतर स्थिति में हैं। हां, लेखन तो खूब हो रहा है मगर जिनके लिए लिखा जा रहा है, बात उन तक पहुंच नहीं रही है। वे जागृति से कोसों दूर है। इस पर विशेष रूप से सोचने की जरूरत है।

* आपकी रचनाएं लीक से हटकर होती है, ऐसा क्यों?

*क्योंकि मेरी सोच ही लीक से हटकर है।

*आप देश और समाज के उत्थान के लिए क्या सोचते हैं?

* मैं सोचता हूं कि दुनिया के अधिकांश देशों की तरह हमारे देश में भी जन्म लेने वाला बच्चा केवल और केवल एक मानव-शिशु के रूप में जन्म ले।

*किसी कहानी पर कोई फिल्म या धारावाहिक का निर्माण हुआ है?

*नहीं भाई। मैं उस योग्य हूं भी नहीं।

* अभी तक आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान मिले हैं?

*उल्लेख करने लायक तो कोई सम्मान या पुरस्कार नहीं मिला है। शायद उस योग्य भी मैं नहीं बन पाया हूं।

*आप अपनी जन्म तिथि एवं जन्म स्थान का कुछ विवरण दें।

* मेरी जन्म तिथि 9 अप्रैल 1973 है। झारखंड के बोकारो जिले के चंदनकियारी क्षेत्र में जंगल से घिरा एक छोटा-सा गांव है-- बांसगाड़ी। वही मेरा जन्म स्थान है। फिलहाल मैं धनबाद के निरसा में अध्यापक के पद पर कार्यरत हूं। महीने में एक-दो बार गांव जाता हूं।

* लेखन में आगे की कोई योजना?

*कोई योजना नहीं क्योंकि मैं थोक में लिखने वाला नहीं हूं। मन के उफान को शांत करने के लिए कभी-कभार लिख लेता हूं। मगर हां, ठोक बजाकर लिखता हूं।



-सुरेश सौरभ

निर्मल नगर लखीमपुर खीरी

पिन-262701

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल-कवि श्याम किशोर बेचैन

शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल' की पुण्यतिथि पर नेताओं से लेकर आम लोगों ने किया  याद, लिखे ये ट्वीट | Hari Bhoomi

     विशेष    

  जन्म 11 जून 1875 मृत्यु 19 दिसम्बर 1927    

एक एक ग्यारह होते हैं ग्यारह का गुणगान सुनो

ग्यारह छै: अट्ठारह सौ पचहत्तर का वरदान सुनो ।।

शाहजहांपुर की धरतीपर जन्मा इक विद्वान सुनो

यही वीर बिस्मिल देखो है आगे बना महान सुनो ।।

 

माता फूलमतीकी ममता प्यार पितामुरलीधर का

भाई परमानन्द की भुजा और साथ पूरे घर का ।।

बदला देखो लिया वीर ने भारत मांके अनादर का

इसीलिए वो अधिकारी है अपने पूरे आदर का ।।

आजादी के आंदोलन मे हुआ है जो कुर्बान सुनो

यही वीर बिस्मिल देखो है आगे बना महान सुनो ।।

 

भ्रता की फांसी से भ्राता का तेवर है बदल गया

फिर ऐसा गरजा भ्रता की हर गोरा है दहल गया ।।

ग्यारह ग्रंथों का लेखक वो क्रांतिवीर कहलाया है

पंडित रामप्रसाद ने बिस्मिल होके नामकमाया है ।।

काकोरी चौरी चौरा का रहा जो वीर प्रधान सुनो

यही वीर बिस्मिल देखो है आगे बना महान सुनो ।।

 

गाँधीजी साथ नही था लेकिन योद्धा अड़ा रहा

झुका नहीं गोरों के आगे मरते दमतक खड़ा रहा ।।

चूम लिया फांसी का पर समझौता किया नहीं

रहा बहुत बेचैन मगर ईमान का सौदा किया नहीं ।।

भरी जवानी में मिटने का पाला था अरमान सुनो

यही वीर बिस्मिल देखो है आगे बना महान सुनो ।।


 


पता-संकटा देवी बैंड मार्केट लखीमपुर खीरी

जितिन प्रसाद: सियासी दलबदल का ‘यूपी वेरिएंट’-अजय बोकिल


  एक विमर्श-राजनैतिक उठा-पटक  


दो दिन पहले तक खानदानी कांग्रेसी रहे जितिन प्रसाद के इस तरह भाजपा में शामिल हो जाने के बाद जो उत्तर दलबदलसवाल उठ रहे हैं, वो ये कि जितिन के भाजपा में आने से किसको फायदा होगा? जितिन को या भाजपा को, दोनो को, या फिर दोनो को नुक्सान होगा? इन सवालों का जवाब तो विधानसभा चुनाव नतीजो से मिलेगा। लेकिन जानकारों का मानना है कि दलबदल के इस –‘यूपी वेरिएंटको दलबदल के उस बंगाल वेरिएंटसे अलग करके देखना चाहिए, जहां कमल निशान पर चुनाव जीते हुए दलबदलू विधायक अब वापस दीदी के तीन पत्ती वाले झंडे तले लौटने को बेताब बताए जाते हैं। यानी भाजपा को उसी की शैली में जवाब देने दीदी का दूसरा खेलाशुरू हो चुका है। उधर जितिन प्रसाद के जाने को कांग्रेस नेता क‍पिल सिब्बल ने देश में प्रसाद राजनीतिका आगाज बताया है। जो भी हो, कांग्रेस यूपी में इस झटके से हैरान और हताश है तो भाजपा का मानना है कि उत्तर प्रदेश में पनप रहे योगी विरोध को दबाने जितिन प्रसाद को लाना को‍रोनिल किट की माफिक साबित होगा। अब जितिन भाजपा के लिए यूपी के ज्योतिरादित्य सिंधियासिद्ध होंगे ( दोनो दून स्कूल में पढ़े बताए जाते हैं) या नहीं, यह अंदाज अभी लगाना मुश्किल है। उधर एक बार ‍िफर सियासी चोट खाई कांग्रेस में बड़ी सर्जरीकी बात उठ रही है। लेकिन लाख टके का सवाल यही है कि यह सर्जरी करे कौन? क्योंकि पूरी पार्टी नियतिवाद के भरोसे है। यूं कहने को हार के कारणों और पार्टी में सुधार की रिपोर्टे जमा हो रही हैं, सुलह सफाई की कोशिशें भी जारी हैं, लेकिन उनकी दशा भी किसी न्यायिक जांच आयोग की तरह है।  

बहरहाल बात जितिन प्रसाद की। जितिन उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की उस जमात का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो पुश्तैनी कुलीन है। उनका नाम जितिनक्यों रखा गया, इसका खुलासा नहीं होता। लेकिन यह नाम उनके पिता और बड़े कांग्रेस नेता रहे जितेन्द्र प्रसाद से काफी मेल खाता है। खास बात यह कि यह परिवार शायद अन्य ब्राह्मणो (समाजवादियों और कम्युनिस्टों को छो़ड़कर) अपना असली उपनाम शायद नहीं लिखता। यकीनन प्रसाद परिवार खानदानी तौर पर सम्पन्न और प्रभावशाली परिवार रहा है। 47 वर्षीय जितिन के परदादा ज्वाला प्रसाद ब्रिटिश राज में सिविल सर्वेंट थे। उनकी पत्नी पूर्णिमा देवी महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर की भतीजी थीं। जितिन के दादा ज्योति प्रसाद भी कांग्रेस के बड़े नेता रहे। उन्होंने एक सिख महिला पामेला से शादी की थी। जितेन्द्र प्रसाद पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी और स्व.पी.वी.नरसिंह राव के राजनीतिक सलाहकार रहे। उन्होने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए श्रीमती सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा और हारे। यानी कांग्रेस में वंशवाद को शीर्ष स्तर पर चुनौती देने वाले वो आखिरी नेता थे। बावजूद इसके 2004 में जब कांग्रेसनीत यूपीए गठबंधन सत्ता में आया तो सोनिया गांधी की सहमति से केन्द्र में जितिन को मानव संसाधन राज्य मंत्री बनाया गया। जितिन भी केवल एक बार ही चुनाव जीत पाए हैं, ज्यादातर हारे हैं। उत्तर प्रदेश में जातिवादी राजनीति के उभार के बाद सियासी समीकरण लगातार बदलते गए और कांग्रेस हाशिए पर चली गई। वो कांग्रेस, जिसमें कभी ब्राह्मणों का बोलबाला था, अभी भी यूपी में अपनी खोई जमीन तलाश रही है। मंडल और कमंडल आंदोलन ने यूपी में सत्ता की चाभी पिछड़ों और दलितों के हाथ में दे दी। ब्राह्मणो के हाथ में केवल चंवर डुलाने का काम बचा। हालांकि अटलजी तक ब्राह्मणों में एक भीतरी आत्मसंतोष फिर भी था। मोदी युग में वो भी जाता रहा। नतीजा यह हुआ कि  कुछ ब्राह्मण नेता अपना राजनीतिक वजूद बचाने भाजपा या कुछ दूसरे दलों में जाने लगे। 

जितिन प्रसाद प्रकरण उसी श्रृंखला की ताजा कड़ी है। अब विधानसभा चुनाव में जितिन ब्राह्मणों के जमीर को भाजपा के पक्ष में कितना जगा पाएंगे, यह देखने की बात है। लेकिन बीजेपी तो कम से कम यही मान रही है कि सीएम कोई बने, ब्राह्मणों की वकत रहेगी, यह दिलासा जितिन के भाजपा में आने से बनेगा। लेकिन यह भी हकीकत है कि मोटे तौर पर हिंदूवादी और आत्मश्रेष्ठत्व के आग्रही ब्राह्मणों को दूसरे समुदायों की तरह राजनीतिक रेवड़ की माफिक हांका नहीं जा सकता। इसका एक कारण यह भी है कि सदियों से ब्राह्मण स्वसे आगे भी कुछ सोचते देखते रहे हैं। यह इस समुदाय का  नैसर्गिक गुण है। ऐसे में जितिन के कहने भर से विधानसभा चुनाव में वोट भाजपा के पक्ष में पड़ने लगेंगे, ऐसा मान लेना खुशफहमी ज्यादा होगी। कुछ कांग्रेसियों का मानना तो यह भी है कि जितिन को उनकी वास्तविक हैसियत से ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर प्रोजेक्ट किया जा रहा है। गरीब और मध्यउमवर्गीय ब्राह्मणों से उनका कितना राब्ता है, यह देखने की बात है। 

यह सच है कि कांग्रेस में रहते हुए जितिन प्रसाद ने यूपी के ब्राह्मणों को गोलबंद करने की काफी कोशिशें की थी। क्यों‍कि हमारे देश में जाति-आधार नेता के जनाधार की भी जमानत है। यह बात अलग है कि जितिन की इन कोशिशों से तब कांग्रेस ने ही पल्ला झाड़ लिया था। हो सकता है कि जितिन ने तब ब्राह्मण चेतना परिषदके माध्यम से ब्राह्मणों में जो सत्ता चेतना जगाई थी, उसका सकारात्मक फल अब भाजपा को मिले। 

यह तो शुरूआत है। गहराई से देखें तो 2014 के बाद से हर चुनाव के पहले भाजपा दूसरे दलों के नगीनो को अपनी अंगूठी में जड़ने का अभियान चलाती है, भले ही इसका उसे अपेक्षित लाभ मिले न मिले। लेकिन इससे एक माहौल तो बनता है और राजनीतिक दुश्मन के खेमे में हताशा का संक्रमण बढ़ने की संभावना बनती है। हालांकि क्षेत्रीय दलो के कुछ क्षत्रपो ने विधानसभा चुनावों में भाजपा की इस रणनीति को कई बार फेल भी किया है। फिर भी भाजपा इसे चुनावी जीत का रामबाण उपाय मानती है। सो यही खेल उस यूपी में शुरू हो गया है, जहां आठ माह बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। अंदरूनी स्तर पर स्वयं भाजपा और आरएसएस योगी आदित्यनाथ के चुनाव जिताऊ परफार्मेंस को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। याद करें कि सीएम बनने के बाद योगी उपचुनाव में अपनी ही लोकसभा सीट हार गए थे। जमीनी हकीकत यही है कि योगी को मुख्यामंत्री बनाने से देश-दुनिया में भले हिंदुत्व का संदेश गया हो, लेकिन खुद उत्तर प्रदेश में लोगों ने उसे ठाकुर राज की वापसीके रूप में ही ज्यादा पढ़ा है। इससे सर्वाधिक दुखी वो ब्राह्मण समाज हुआ, जो उत्तर प्रदेश में अपने राजनीतिक-प्रशासनिक वर्चस्व को नैसर्गिक अधिकार मानता आया है। यूं कहने को योगी कै‍बिनेट में उप मुख्यंमंत्री और कुछ प्रशासनिक पदों पर भी ब्राह्मण तैनात हैं, लेकिन उनकी अहमियत उतनी ही है कि जितनी कि भाजपा में मुस्लिम चेहरों की होती है। ऐसे में भाजपा को डर सता रहा है कि यदि 15 फीसदी ब्राह्मण वोटरों ने विधानसभा चुनावों में भाजपा से मुंह मोड़ लिया तो सत्ता में वापसी मुश्किल होगी। क्यों‍कि किसान आंदोलन के कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट पहले ही नाराज हैं। अगले चुनाव में यदि पिछड़ा-ब्राह्मण जैसा कोई समीकरण बन गया तो वो योगी के लिए दु:स्वप्न की तरह होगा। भाजपा ऐसा कभी नहीं होने देना चाहेगी। क्योंकि उत्तर प्रदेश से ही दिल्ली की सत्ता का द्वार भी खुलता है। यहां बेडा गर्क होने का सीधा मतलब 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के सपनों पर चोट पड़ने जैसा होगा।  

सो, मानकर चलिए कि बीजेपी ने यूपी के साथ-साथ परोक्ष रूप में अगले लोकसभा चुनाव की जमावट भी शुरू कर दी है। जितिन इसमें अहम मोहरा हो सकते हैं। इसके विपरीत जितिन के जाने से कांग्रेस में आंतरिक आक्रोश और बढ़ रहा है, युवा पार्टी की छुक छुक गाड़ी से उतरने को बेताब हैं तो वरिष्ठ पार्टी में बड़े आॅपरेशन की मांग कर रहे हैं और अंदरखाने दूसरी पार्टियों में सीट भी तलाश रहे हैं। दरअसल पार्टी में यह खदबदाहट वास्तव में नेतृत्व की निष्क्रियता और किंकर्तव्यविटमूढ़ता से जन्मी है। यानी लोग एक-एक कर पार्टी को अलविदा कह रहे हैं, लेकिन कहीं कोई जवाबी किलेबंदी नहीं, कोई मोर्चा बंदी नहीं। जाता है तो जाने दोका उदारमना भाव। साथ में यह गलतफहमी कि सब चले गए तो भी पार्टी बची रहेगी। पार्टी के कर्ता धर्ता केवल यह देखने कि  भई, अब कौन-कौन और कब-कब जा रहा है तथा यह टैग लगाने में मगन हैं कि  जो गया वो दगाबाजथा। इस बीच पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली ने जितिन को संदिग्ध कांग्रेसीबताते हुए अहम बात कही कि' 'कांग्रेस को बड़ी सर्जरी कराने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि क्षमता और जनाधार वाले लोगों को विभिन्न राज्यों का प्रभार दिया जाना चाहिए। बात पते की हैलेकिन उसे सुनेगा कौन और अमल करेगा कौन? जनाधार ही कांग्रेस की दुखती रग है। जिन कारणों से वह घट रहा है, वो कारण भी खुद को इसका कारण नहीं मानते। यानी वही ढाक के तीन पात। चूंकि जनाधार कम हो रहा है, इसलिए पार्टी हाशिए पर है और हाशिए पर जाने को ही पार्टी नियति मान रही है, इसलिए जनाधार घट रहा है। रहा सवाल जितिन प्रसाद  का तो वो जब ब्राह्मणों को कांग्रेस खेमे में तो नहीं लौटा पाए थे तो विधानसभा चुनावों में भाजपा के शामियाने में कितना खींच पाएंगे, यह वक्त बताएगा। लेकिन जितिन को अपने पाले में खींच कर भाजपा ने मनोवैज्ञानिक युद्ध का पहला मोर्चा फतह कर लिया है, इसमे शक नहीं।  

(वरिष्ठ संपादक दैनिक सुबह सवेरे मप्र-9893699939)

सबकी आंखों को रूलाता हुआ मैं कड़ुआ तेल हूं-सुरेश सौरभ

    हा..हा.. हा..हा.. मैं कड़ुआ तेल बोल रहा हूं। बड़े-बड़े नेताओं की तरह अपना भी, आज टनाटन चारों ओर खूब बिंदास रौब रूतबा कायम होता जा रहा है। बहरहाल आजकल मैं लोगाें का खूब तेल निकाल रहा हूं। हमेशा लोग निठल्लों के साथ मेरा नाम जोड़ कर मुझे बेवजह बदनाम किया करतें हैं, जैसे तुम को कुछ नहीं करना, बस तेल लगा कर बैठे रहो या कान में तेल डालकर चुपचाप बैठो, तुम्हें धेला कुछ नहीं आता। या इन्हें कुछ नहीं करना बस तेल लगा कर बैठे-ठाले खाली दण्ड पेलना है। ऐसी-वैसी तमाम मिसालें बना-बना कर बात-बात पर मेरा मजाक उड़ाने वाले बंदों के, आंख, मुंह, हाथ-पांव और यहां-वहां सब कहीं बस कड़वा-कड़वा ही लग कर मैं रूला रहा हूं। पेट्रोल, डीजल के शतक लगाने पर, खूब चटखारे ले ले कर चर्चा करने वालों के भी मैं ऐसा कड़वा-कड़वा लग कर झेला रहा हूं कि वह सब भी अब मेरा नाम लेने से ऐसे घबरा रहें हैं जैसे मैं कड़ुआ तेल नहीं हूं बल्कि गब्बर सिंह हूं जो कहीं से आ गया, तो उनकी पूरी नींद और चैन छीन लेगा। अब लोग यह भी नहीं कहते न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी। अब कहतें हैं, न सौ ग्राम तेल होगा, न राधा नाचेगी। न लोग यह कहते हैं, मैं तेल और तेल की धार देखता हूं। बल्कि कहतें हैं, कहां है, तेल और तेल की धार? देखने के लिए हम बरसों से तरस रहे हैं। और न लोग यह कहतें हैं तेली का तेल जले मसालची का दिल। बल्कि ये कहतें हैं कहां है तेली?कहां है मसालची? उसे देखे सादियां बीत गईं। मेरी देखा-देखी रिफाइन्ड व अन्य खाने व,लगाने वाले तेल भी अपनी नौ भौं सिकोड़ते जा रहे हैं। यानी अपना भाव बढ़ाते जा रहें हैं। कोरोना काल की मंदी की बेकारी में वैसे भी गरीबों की कमर टूटी थी। अब मेरे रेट बढ़ने से लोगाें का तेल निकल रहा है। लोगों की हालत पतली-दुबली होती जा रही है। पर डोन्ट वेरी भाईयों और बहनों एक न एक दिन अच्छे दिन जरूर आएंगे जैसे नोटबंदी के बाद विदेशों से काला धन वापस आया था। साल भीतर लगभग दोहरे शतक तक पहुंचने में मेरा तिल भर दोष नहीं है, मैं विलियम वर्ड्सवर्थ की "लूसी ग्रे" की तरह बिलकुल निर्दोष मासूम हूं। अगर आप को मेरे पर जरा भी विश्वास न हो, तो तेल की जमाखोरी करने वाले, देश-वदेश की तेल आयात-निर्यात नीति निर्माताओं से पूछ सकतें हैं कि किस तरह कितना मैं निर्दोष हूं। इसलिए कोल्ड ड्रिंक्स पी पी कर बेवजह हमें न श्राप दें।



-सुरेश सौरभ

निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश

मो-7376236066

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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