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Tuesday, May 25, 2021

गरीबों का (ईडब्ल्यूएस) कोटा, मंत्री के भाई ने लूटा

       Latest Hindi News: गरीब सवर्ण जातियों को मिल सकता है आरक्षण:NCBC - Ready to  put poor upper castes in OBC list: NCBC | Navbharat Times

 



मंत्री का गरीब भाई बना असिस्टेंट प्रोफेसर ( कोविड-19 आपदा में एक सुनहरा अवसर):

                   

“विश्वविद्यालय प्रशासन को कोरोना कहीं आड़े नज़र नही आया। उल्लेखनीय है कि इस विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर डॉ. सुरेंद्र द्विवेदी की ....... आधारित कार्य संस्कृति और उनके कार्यकाल में हुई भर्तियों में कई प्रकार की गंभीर अनियमितताओं के आरोप लग चुके हैं। इसलिये मंत्री के भाई  की नियुक्ति पर भी सवालिया निशान खड़े होना बहुत स्वाभाविक लगता है।............पढ़िये एक गंभीर चिंतन क्या है इस लेख में”

       

  नन्द लाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

    यूपी सरकार में बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी के भाई डॉ. अरुण द्विवेदी की सिद्धार्थ नगर विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु में आर्थिक रूप से गरीब वर्ग (ईडब्लूएस) में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर हुई भर्ती/नियुक्ति राजनैतिक और बौद्धिक वर्ग में आजकल गंभीर चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रदेश में 69000 प्राथमिक शिक्षक भर्ती में अभी लगभग 5000 भर्तियों के लिए अभ्यर्थी लम्बे समय से मांग और उसके लिए सड़क पर धरना-प्रदर्शन तक करते रहे हैं।

    

सवर्णों को दिया जाने वाला 10% आरक्षण कल से लागू, तैयार रखें अपने  डॉक्यूमेंट्स - Upper cast 10% reservation comes into effect from tomorrow,  get your doccuments ready आज वर्तमान समय में कोरोना का बहाना बताकर सरकार अन्य सभी प्रकार की भर्तियों को स्थगित करती जा रही है।लेकिन मंत्री के भाई की भर्ती में सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को कोरोना कहीं आड़े नज़र नही आया। उल्लेखनीय है कि इस विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर डॉ. सुरेंद्र द्विवेदी की ....... आधारित कार्य संस्कृति और उनके कार्यकाल में हुई भर्तियों में कई प्रकार की गंभीर अनियमितताओं के आरोप लग चुके हैं। इसलिये मंत्री के भाई  की नियुक्ति पर भी सवालिया निशान खड़े होना बहुत स्वाभाविक लगता है। इस नियुक्ति पर आरोप/संशय खड़े होने पर निम्नलिखित बिंदु जांच में सहायक साबित हो सकते हैं:

1.डॉ. अरुण द्विवेदी वनस्थली विश्वविद्यालय की नौकरी में कब से कब तक सेवारत रहे, उनकी नौकरी की प्रकृति कैसी थी और उन्होंने वह नौकरी क्यों छोड़ी थी? डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी के मंत्री बनने के कालखण्ड के संदर्भ में उनकी नौकरी छोड़ने की तिथि/कारण बेहद विचारणीय हो सकते है। उन्होंने यदि वहाँ 2019 के बाद आवेदन किया था तो किस श्रेणी में आवेदन किया था?
2.
डॉ. अरुण द्विवेदी के ईडब्ल्यूएस से होने के मानदंड को पूरा करने वाले सभी बिंदुओं /तथ्यों  अर्थात ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र की गहनता से जांच हो।
3.
सुना जाता है कि यह नियुक्ति बैकलॉग आधार पर हुई है।यदि यह सच है तो केवल इसी पद हेतु ईडब्लूएस- बैकलॉग विज्ञापन किया गया था। क्या एक पद रिक्ति का विज्ञापन ईडब्ल्यूएस और वह भी बैकलॉग हेतु हो सकता है?क्या इस ईडब्ल्यूएस की रिक्ति का विज्ञापन बैकलॉग के अंतर्गत था? यदि बैकलॉग विज्ञापन था तो वर्ष 2019 से लागू ईडब्ल्यूएस आरक्षण का बैकलॉग भर्त्ती कैसे हो सकती है? यदि बैकलॉग भर्ती विज्ञापन केवल मनोविज्ञान विषय मे ही हुआ है तो उस विज्ञापन के साथ साथ अन्य विषयों में भी ईडब्ल्यूएस बैकलॉग भर्ती हेतु विज्ञापन हुए थे अथवा नहीं?
4.
यदि ईडब्ल्यूएस की बैकलॉग की भर्ती हेतु विज्ञापन किसी अन्य विषय मे भी किया गया था? तो क्या उस या उससे पूर्व हुए विज्ञापनों में ओबीसी,एससी और एसटी के लिए बैकलॉग की भर्तियों का भी विज्ञापन शामिल था अथवा नही?यदि ईडब्ल्यूएस के आरक्षण (2019) के लिए बैकलॉग विज्ञापन हो सकता है तो लंबे समय से ओबीसी,एससी और एसटी को मिल रहे आरक्षण के लिए बैकलॉग भर्ती विज्ञापन क्यों नही?
5.
जैसा कहा जा रहा है कि इस एक पद हेतु 150 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था।इन 150 आवेदन पत्रों की गहनता से जांच होनी चाहिए कि ये सभी आवेदक ईडब्ल्यूएस के ही हैं।साक्षात्कार हेतु बुलाये गए अभ्यर्थियों की लिखित और मौखिक परीक्षा के परिणामों की भी जांच होंने के साथ विषय विशेषज्ञों की नियुक्तियों की भी बिंदुवार जांच होनी चाहिए।
6.
कोरोना काल में जब सभी प्रकार के विज्ञापनों की भर्ती स्थगित है और यहां तक कि यूपीपीसीएस 2020 का अंतिम परीक्षाफल आ जाने बावजूद सफल अभ्यर्थियों को नियक्ति पत्र तक जारी नही किये जा रहे हैं, तो मंत्री के भाई की नियुक्ति में इतनी तत्परता क्यों दिखाई गई? संक्रमण की वजह से बंदी काल में भी डॉ. अरुण द्विवेदी की नियक्ति के अपरिहार्य कारण क्या थे?
7.
विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर पं.(डॉ.) सुरेंद्र द्विवेदी के सेवा विस्तार का आधार क्या है? क्या उनकी विशेष एकेडेमिक योग्यता,कुशल प्रशासन और विशेष कार्य संस्कृति की वजह से उनका सेवा विस्तार किया गया है? क्या लखनऊ विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर की तरह ही किसी अन्य विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर को सिद्धार्थ विश्वविद्यालय का अतिरिक्त प्रभार नही दिया जा सकता था?
8.
सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के कुलसचिव/ वाईस चांसलर और मंत्री जी की कॉल डिटेल भी इस प्रकरण की जांच दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
9.
क्या मंत्री जी और डॉ. अरुण द्विवेदी अपने गृह जनपद स्थित विश्वद्यालय में निकलने वाली रिक्ति पर ही नियुक्ति का इंतज़ार कर रहे थे और अपनी नियुक्ति हेतु पूर्णतया आश्वस्त भी थे ?


   
मेरे विचार में उपर्युक्त कुछ ऐसे बिंदु हैं जो डॉ. अरुण द्विवेदी की हुई नियुक्ति की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच करने में सहायक और कारगर साबित हो सकते हैं और "दूध का दूध और पानी का पानी" वाली कहावत चरितार्थ हो सकती है।ओबीसी,एससी और एसटी के जागरूक और दूरदर्शी भाईयों/बहनों से आग्रह है कि वे ईडब्ल्यूएस के 10% आरक्षण के निहितार्थ को अत्यंत गहनता और गंभीरता से समझने का प्रयास करें और उसे समाज के साथ समय-समय पर विचार-विमर्श कर सुसुप्त वर्ग को जगाते रहें।


नन्द लाल वर्मा

नन्द लाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

लखीमपुर-खीरी (यूपी)262701

 9415461224, 8858656000

किसान आंदोलन और सरकार की हठधर्मिता

किसान आंदोलन और सरकार की हठधर्मिता
✎नन्द लाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

“किसान छः माह से हांड  कंपाने वाली कड़कड़ाती सर्दी, बरसात और गर्मी की तपती धूप में अपनी जिंदगी की परवाह किये बगैर, उसी दृढ़ इच्छाशक्ति ,संकल्प और विश्वास के साथ आज भी डटा हुआ नजर आता है जैसा आंदोलन की शुरूआत में नज़र आता था। धरनास्थल पर सैकड़ों किसानों की मौतें होने और सरकार द्वारा पैदा की गई अराजकता के बावजूद वह टस से मस नही हुआ है। उनकी लगातार छः महीने से मनाही के बावजूद सरकार क्यों   हठधर्मिता अपनाए हुए है? अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है।”

          

kisan Andolan 2020: किसानों की खुली चेतावनी! मांगें पूरी न हुईं तो  Delhi-Ghazipur Border पर तेज होगा प्रदर्शन - Kisan andolan updates farmers  to intensify protest on delhi ghazipur border if demands 

    कोरोना काल में 26 मई को किसानों द्वारा राष्ट्रव्यापी आंदोलन की खबरें सम्पूर्ण देश के लिए खतरनाक, चिंताजनक और दुःखद हैं।दिल्ली के सीमावर्ती राज्यों से बड़ी तादाद में देश का अन्नदाता देश की राजधानी की ओर कूच करने के मूड में दिख रहा है। तीन कृषि कानूनों की वापसी के लिए देश का किसान छः माह से हांड  कंपाने वाली कड़कड़ाती सर्दी, बरसात और गर्मी की तपती धूप में अपनी जिंदगी की परवाह किये बगैर, उसी दृढ़ इच्छाशक्ति ,संकल्प और विश्वास के साथ आज भी डटा हुआ नजर आता है जैसा आंदोलन की शुरूआत में नज़र आता था। धरनास्थल पर सैकड़ों किसानों की मौतें होने और सरकार द्वारा पैदा की गई अराजकता के बावजूद वह टस से मस नही हुआ है। शुरुआती दौर से ही सरकार के प्रतिनिधियों से हुई सभी दौर की वार्ताओं में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों द्वारा " तीनों बिलों की पूर्ण वापसी और एमएसपी की गारंटी के कानून" के बगैर आंदोलन खत्म करने या घर वापसी की लगातार मनाही की जाती रही है। सरकार द्वारा जिसके लाभ के लिए कृषि बिल बनाये गए हैं, उनकी लगातार छः महीने से मनाही के बावजूद सरकार क्यों हठधर्मिता अपनाए हुए है?अब यह स्पष्ट होने या समझने में कोई अंदेशा नही रह जाता है कि इन बिलों के पीछे देश के बड़े कॉर्पोरेट घराने के पूंजीपतियों के साथ हुई भारीभरकम आर्थिक या वित्तीय डील आड़े नज़र आ रही है।विगत छः महीनों से डटे किसानों के साहसिक आत्मबल, निडरता और एकजुटता से यह तो पक्का हो चुका है कि किसान अब अपने घर अपनी शर्तों पर ही जाने को तैयार होगे।

Kisan Andolan: Railway alert in Madhya Pradesh due to farmer agitation in  Punjab and Haryana           

        56 इंच सीने की झूठी शान की नेतृत्व वाली सरकार को संक्रमण काल मे बेहद संवेदनशीलता और उदारता का परिचय देते हुए व्यापक हित में पीछे हटने में संकोच,शर्म या बेइज़्ज़ती क्यो लग रही है? लोकतंत्र में सरकार तो जनता की और जनता के लिए ही होती है। हमारे देश मे किसान उस जनता का एक बहुत बड़ा निर्णायक हिस्सा है। सरकार को नही भूलना चाहिए कि किसान बड़े-बड़े दलों और नेताओं को राजनैतिक धूल चटाने की क़ुव्वत रखते हैं। बिना हिचकिचाहट के केंद्र सरकार को किसानों के साथ आत्मीय और सौहार्दपूर्ण वातावरण पैदाकर उनकी वाज़िब दो मांगों के संबंध में तानाशाही और तनावपूर्ण रवैया अपनाने से बचना चाहिए। यह लोकतांत्रिक देश है। इतिहास गवाह है कि तानाशाही तो दूर, इस देश की जनता ने सरकार की अतिवादी नीतियों पर असहमति का ठप्पा लगाकर समय-समय पर सरकारें तक बदल डाली हैं।
       

    मेरे विचार से कोरोना संकट के संक्रमण की भयावहता को दृष्टिगत रखते हुए सरकार अपनी अनाबश्यक हठधर्मिता और अदृश्य अपमान जैसी ग्रंथि से मुक्त होकर एक आदर्श लोकतांत्रिक सरकार जैसा आचरण/ संस्कृति और दरियादिली का उदाहरण पेशकर "तीनों बिलों की वापसी और एमएसपी पर कानून" का आश्वासन/विश्वास देकर किसान आन्दोलन खत्म करवाकर सरकार, किसान और आम आदमी के व्यापक हितों को तरज़ीह दे।इससे सरकार के प्रति  लोगों के खोये हुये भरोसे और सम्मान की कुछ सीमा तक भरपाई या पुनर्स्थापित किया जा सकता है।

एन० एल० वर्मा


नन्द लाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

लखीमपुर-खीरी.

ब्रदर डे (भाई दिवस) 24 मई

ब्रदर डे (भाई दिवस) 24 मई

 

 

 

National Brother's Day
अपने  भाई पे  ऐतबार  करो ।

भाई से  बेपनाह  प्यार  करो ।।

 

भाई छोटा  हो या  बड़ा भाई ।
भाई से  प्यार  बेशुमार  करो ।।
 
भाई के फर्ज से  न मुंह फेरो ।
फर्ज अपना न शर्मसार करो ।।
 
बन गए हैं जो  खून के  रिश्ते ।
ऐसे रिश्तों पे जां निसार करो ।।
 
देख लंकेश को  विभीषण को ।
राम लक्ष्मण पे भी विचार करो
 
रोल  भाई का  है अहम  भाई ।
भाई की पीठ पर न वार करो ।।
 
भाई  लाखों  मे  एक  होता है ।

हक न उसका कभी उधार करो

छत  के नीचे  दीवार  रहने दो ।
खड़ी  दिलों  ना  दीवार  करो ।।
 
जिन दरारों  से टूटता  है दिल ।
दिल में पैदा न  वो दरार करो ।।
 
साथ मां बाप का न मिल पाए ।
तो किसी का न इंतजार करो ।।
 
कोई  दुःख  बाटने न आएगा ।
भाई रिश्तों में खुद सुधार करो
 
भाई  को   टूटने   नही   देना ।

खुद से  बेचैन ये  करार करो ।।

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