साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Tuesday, May 25, 2021

‘एलोपैथी’ पर बाबा का ‘स्टूपिड’ बयान तो एक शुरूआत है


( दैनिक सुबह सवेरेमें दि. 25 मई 2021 को प्रकाशित)

बाबा यह कहते दिखाई दे रहे हैं कि एलोपैथी स्टूपिड (मूर्खतापूर्ण) और दिवालिया साइंस है।.........उनकी कुछ आयुर्वेदिक दवाओं से लोगों को लाभ भी पहुंचा है, लेकिन इसका अर्थ नहीं कि वो चिकित्साशास्त्र के सर्वज्ञ हो गए हैं। सेलेब्रिटी होने के नाते बाबा को अपनी बात कहने का हक है, लेकिन देश को भ्रमित करने का हक नहीं है.....”

 

-अजय बोकिल

 

Allopathic Treatment-ऐलोपैथी चिकित्‍सा पध्‍दति | BLOGS IN BLOG

योगाचार्य बाबा रामदेव ने मेडिकल साइंस, ऐलोपैथी और स्टूपिड साइंस’ ( और प्रकारातंर से एलोपैथिक डाक्टरों को भी मूर्ख) बताकर जो स्टूपिडबयान दिया था, वह देश के स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. हर्षवर्द्धन की याचना पर वापस जरूर ले लिया है, लेकिन इससे बाबा का एजेंडा बदल गया है, ऐसा मानना मूर्खता ही होगी। क्योंकि अपने बयान पर खेद जताने के बाद बाबा ने फिर आईएमए को चिट्ठी लिखकर चुनौती दे दी है कि अगर ऐलोपैथी इतनी ही कारगर है तो कोरोना से इतने डाॅक्टर क्यों मरे ? यानी यह बवाल खत्म नहीं होना है। इसके पहले  डा० हर्षवर्द्धन को बाबा से यह आग्रह भी इसलिए करना पड़ा क्योंकि एक तो बाबा के बयान के बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ( आईएमए) ने सरकार को अल्टीमेटम दे दिया था और कोरोना से जारी इस भयंकर लड़ाई में यदि डाॅक्टर भी अपने हथियार रख देते तो देश में हाहाकार मच जाता। दूसरे, बाबा के बयान के बाद खुद डाॅ. हर्षवर्द्धन की मेडिकल योग्यता पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया था, क्योंकि वो स्वयं नाक,कान, गला ( ईएनटी) स्पेशलिस्ट हैं। बाबा के बयान की आयुर्वेदिक चिकित्सकों ने भी यह कहकर कड़ी निंदा की कि किसी भी पैथी की आलोचना करने का बाबा को कोई नैतिक अधिकार नहीं है।  बाबा रामदेव योग व्यायाम के विशेषज्ञ हैं। आयुर्वेदिक दवा निर्माण के बड़े खिलाड़ी और अब तो कारपोरेट किंग भी हैं। उनकी कुछ आयुर्वेदिक दवाओं से लोगों को लाभ भी पहुंचा है, लेकिन इसका अर्थ नहीं कि वो चिकित्साशास्त्र के सर्वज्ञ हो गए हैं। सेलेब्रिटी होने के नाते बाबा को अपनी बात कहने का हक है, लेकिन देश को भ्रमित करने का हक नहीं है। वो पहले भी कई बार विवादित ‍बयान देते रहे हैं, वह अपनी मार्केट वेल्यू बढ़ाने के हिसाब शायद ठीक होगा। लेकिन इस बार उन्होंने सीधे तौर पर देश के साढ़े 10 लाख से ज्यादा मेडिकल डाॅक्टरों और मेडिकल साइंस पर हमला किया है, और जिसे मूर्खतापूर्ण विज्ञानबताया है, वह बेहद गंभीर और पूरे देश की छवि को बिगाड़ने वाला है।

गौरतलब है कि बाबा रामदेव का हाल में एक एक वीडियो वायरल हुआ ( या किया गया) है, जिसमें बाबा यह कहते दिखाई दे रहे हैं कि एलोपैथी स्टूपिड (मूर्खतापूर्ण) और दिवालिया साइंस है। क्योंकि (कोरोना के मामले में ) क्लोरोक्विन-रेमेडिसिवर फेल हुई, एंटीबायोटिक-स्टेरॉयड फेल हो गए, प्लाज्मा थेरेपी पर बैन लग गया। लाखों लोगों की मौत एलोपैथी की दवा से हुई। बाबा के मुताबिक जितने लोगों की मौत अस्पताल, ऑक्सीजन की कमी से हुई है, उससे ज्यादा मौतें एलोपैथी की दवा से हुई है। जबकि  हकीकत यह है कि कोविड 19 की कोई गारंटीड दवा अभी तक तैयार नहीं हुई है। लिहाजा डाॅक्टर कोविड को नियंत्रित करने के लिए वो दवाइयां दे रहे हैं, जिसे डब्लूएचअो ने मान्यता दी है। कोरोना के कारण जो मौतें हो रही हैं, उनमें से ज्यादातर दवा देने के बजाए जरूरत की दवाएं मरीजों को उपलब्ध न होने के कारण हो रही है। आॅक्सीजन और ब्लैक फंगस की दवाइयां उपलब्ध न होने के कारण हो रही हैं। यही हाल वैक्सीन का भी है। देश में सभी राज्यों में पर्याप्त मात्रा में दवा उपलब्ध न करा पाने के लिए कौन जिम्मेदार है, यह अलग से बताने की जरूरत नहीं है। बाबा अगर यह मुद्दा उठाते तो शायद कोरोना मरीजों की ज्यादा मदद होती।

Ramdev asks 25 questions, challenges allopathy, calls for truce | Oneindia  News - video Dailymotion

बहरहाल बाबा के कथित अधकचरे या व्हाट्सएपी ज्ञान पर आधारित बयान पर मेडिकल डाॅक्टरों का भड़कना स्वाभाविक था। आईएमए  के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर में कोरोना मरीजों का इलाज करते हुए लगभग 400 डाॅक्टरों ने भी अपनी जानें गंवाई हैं। उस पर संवेदना जताना तो दूर बाबा एक निजी कार्यक्रम में इन डाॅक्टरों की मौतों को परोक्ष रूप से खिल्ली उड़ा रहे हैं। यह कौन सी संस्कृति है? जाहिर है कि बाबा के वाहियात बयान पर देश में मेडिकल डाॅक्टरों के संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने केन्द्रीय स्वास्थ्यड मंत्री को अल्टीमेटम दे दिया कि वो या तो बाबा रामदेव के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करें या फिर कहें कि वो बाबा रामदेव के साथ हैं। आईएमए ने बाबा को भी कानूनी नोटिस भेजा है।

आईएमए की इस चेतावनी और बाबा के मूर्खतापूर्ण बयान की व्यापक आलोचना के बाद डाॅ.हर्षवर्द्धन ने बाबा को चिट्ठी लिखी कि कृपया अपना बयान वापस लें। उन्होंने बाबा के बयान को आपत्तिजनक और दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि 'आशा है कि आप दुनिया भर के कोरोना योद्धाओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए अपना आपत्तिजनक और दुर्भाग्यपूर्ण बयान पूरी तरह से वापस लेंगे। इस तरह का बयान स्वास्थ्यकर्मियों का मनोबल तोड़ सकता है और कोविड-19 के खिलाफ हमारी लड़ाई कमजोर हो सकती है। एलोपैथी दवाओं और डॉक्टरों पर आपकी टिप्पणी से देशवासी बेहद आहत हैं। डाॅ. हर्षवर्द्धन ने बाबा को इतना जरूर चेताया कि उन्हें किसी भी मुद्दे पर कोई भी बयान समय, काल और परिस्थिति को देखकर देना चाहिए।'

उधर आईएमए के कड़े रूख के बाद पतंजलि योगपीठ ट्रस्टने डेमेज कंट्रोल के तहत बयान जारी किया कि रामदेव की ऐसी कोई मंशा नहीं थी। वो तो ऐलोपैथी को प्रोग्रेसिव साइंसमानते हैं। पतंजलि के एमडी बालकृष्ण ने ट्वीट कर  बताया  कि दरअसल रामदेव (एलोपैथी के बारे में)  एक वॉट्सऐप मैसेज पढ़ कर सुना रहे थे। उन्होंने खुद एलोपैथी के बारे में कुछ बुरा नहीं कहा। इस बीच केन्द्रीय स्वास्थ्युमंत्री की चिट्ठी मिलने के बाद बाबा ने जवाबी चिट्ठी लिखकर ऐलोपैथी और एलोपैथिक डाॅक्टरों के बारे में अपना बयान वापस ले लिया है। अपनी सफाई में बाबा ने कहा कि वो हर चिकित्सा पद्धति का सम्मान करते हैं। बाबा के मुताबिक उन्होंने कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में वॉट्सअप मैसेज पढ़ा था। फिर भी अगर किसी को उस बयान से परेशानी हुई तो मुझे खेद है।

यहां बुनियादी सवाल यह है कि आज जिस कोरोना महामारी से जूझने के लिए ज्यादा से ज्यादा मेडिकल अस्पतालों, डाॅक्टर, स्टाफ, दवाइयों और आॅक्सीजन आदि के लिए मारामारी मची है, उस दौर में बाबा रामदेव ऐलोपैथी को मूर्खतापूर्ण‍ विज्ञानकी संज्ञा किस के दम पर दे सकते हैं, किस बुनियाद पर वह एक प्रयोगसिद्ध विज्ञान को दिवालियाऔर तमाशाबता सकते हैं? यह बाबा के द्वारा जानबूझ कर की गई चूक है अथवा वो एक निश्चित एजेंडे को ही आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं, जिसका मकसद देश को पूरी अवैज्ञानिकता के कुंए में ढकेलना है। इस सोच में लोगों का मरते जाना ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि एक जगतमान्य पैथी को जमीन में दफन करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। दुनिया में कोई पैथी ऐसी नहीं है, जिसमें ‍कमियां न हों।  क्योंकि हर पैथी में दवाइयां मानवीय रोगों के लक्षणों और उनके निदान के आधार पर तैयार होती हैं। उनके प्रयोगों और परिणामों की एक श्रृंखला होती है। उसके तरीके अलग-अलग हो सकते हैं। यही सिद्धांत गैर एलोपैथिक चिकित्सा पद्धतियों पर भी लागू होता है। दवाइयों के परिणामों  को देखकर और पुष्टि होने पर ही उसे मरीज को दी जाती है। क्योंकि दवा चाहे किसी पैथी की क्यों न हो, कोई टोटका या गंडा तावीज नहीं है। दवा में थोड़ी भी त्रुटि मरीज की जान भी ले सकती है। हमें अपनी चिकित्सा परंपरा पर अभिमान होना चाहिए, लेकिन इसके लिए ऐलोपैथी की ऐसी-तैसी करने की जरूरत नहीं है। वैसे भी कोविड के लिए प्रभावी दवाइयों के अभी प्रयोग ही चल रहे हैं। हमारे यहां डीआरडीअो ने भी एक प्रभावी दवा तैयार करने का दावा किया है, जिसे सरकार प्रचारित भी कर रही है। लेकिन बाबा की थ्योरी के हिसाब से तो उसे भी मूर्खतापूर्ण कोशिशका हिस्सा ही माना जाना चाहिए।

समझना कठिन है कि किसी एक पैथी को बहुमान्य बताने के लिए किसी दूसरी पैथी को बदनाम करना जरूरी क्यों है? और फिर बाबा तो किसी पैथी के विशेषज्ञ नहीं हैं फिर  उन्हें ऐलोपैथी को दिवालियाकहने का अधिकार किसने दिया और कौन इसके लिए उनकी पीठ थपथपा रहा है? ‍दुनिया में चिकित्सा की तो होम्योपैथी, यूनानी तिब्बिया, नेचुरोपैथी आदि पैथियां भी हैं। सब का अपना-अपना महत्व, प्रभाव और सीमाएं हैं। इनमें भी एलोपैथी का ज्यादा महत्व इसलिए है, क्योंकि वह दुनिया में सबके लिए समान रूप से सुलभ है, उसका ज्ञान सबके लिए खुला है और जो स्वयं को कभी संपूर्ण नहीं मानती। जो पैथी स्वयं में निरंतर सुधार करती हो ( भले ही इसके पीछे एक बड़ा दवा माफिया भी काम करता है), उसे तमाशाबताने से भारत की प्रतिष्ठा दुनिया में ‍कितनी बढ़ी है, यह समझा जा सकता है। हकीकत तो यह है कि बाबा के इस बयान से दुनिया में हमारे देश की जितनी जगहंसाई हुई है, उसका दसवां हिस्सा बदनामी भी भारतीय मीडिया द्वारा कोरोना से देश की बदहाली दिखाने से नहीं हुई। जहां तक कोरोना से मेडिकल डाॅक्टरों  की मौत का प्रश्न है, तो कौन-सी पैथी अमरता का पट्टा देने का दावा करती है? यह सवाल ही अपने आप में हास्यास्पद है। यह अजीब विडंबना है कि जिन डाॅक्टरों और मेडिकल स्टाफ को देवतुल्य मानकर पिछली लहर में हमने ताली और थाली बजाई, उन्हीं डॉक्टरों के ज्ञान पर बाबा ने एक झटके में गोबर लीप दिया। यूं सरकार की लाज बचाने बाबा ने फिलहाल माफी मांग ली है, लेकिन यह तो अभी शुरूआत है। आगे-आगे देखिए होता है क्या ?

अजय बोकिल


-अजय बोकिल

वरिष्ठ संपादक, सुबह-सबेरे (दैनिक समाचारपत्र, मध्य प्रदेश)

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आत्मकथ्य

 

मेरी कहानी मेरी ज़ुबानी

 

"चाहे वो महत्मा गांधी हो, या ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब हो.. इनके अलावा फिल्मी दुनिया और हिन्दी साहित्य के कुछ कद्दावर शख्सियतें भी रहीं हैं, जो आत्मकथा जैसा कुछ लिखने के बारे में सोचा और लिखा भी, इसलिए मैं भी इस विधा में कुछ लिखने की जुर्रत कर रहा हूँ।"

       -शिव सिंह सागर         

 

प्रस्तावना

    स्वयं के बारे में लिखना,मतलब मेरे लिए हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं में यह सबसे दुर्लभ कार्य हैं। गहराई से सोचने पर मालूम हुआ,आत्मकथा,अथवा आत्मकथ्य विधा पर देश के उन लोगों ने काम किया है, जो देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में एक मिसाल की तरह देखें जाते हैं, चाहे वो महत्मा गांधी हो, या ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब हो.. इनके अलावा फिल्मी दुनिया और हिन्दी साहित्य के कुछ कद्दावर शख्सियतें भी रहीं हैं, जो आत्मकथा जैसा कुछ लिखने के बारे में सोचा और लिखा भी, इसलिए मैं भी इस विधा में कुछ लिखने की जुर्रत कर रहा हूँ। एक अदना सा शब्द शिल्पी होने के नाते अपने गुज़रे हुए वक़्त को शब्दों में बांधने का प्रयास कर रहा हूँ! प्रयास कैसा रहा, ये आप सभी लोगों को बताना है।

 आत्मकथ्य: संदेहों के कपोल /राय बहादुर सिंह - अपनी माटी

जन्म

    मेरे जन्म के संबंध में कहा जाता है, वर्ष 1994 के अप्रैल माह की 18 तारीख को एक साधारण किसान परिवार में, ’कश्यपगोत्र रघुकुल के अन्तर्गत लोधी जाति में शिवनारायण लोधी और श्रीमती देवी के घर में हुआ। माता-पिता ने मेरा नाम शिव सिंह रखा। उन दिनों पिता जी सपनों के शहर मुम्बई के एक कपड़े के कारखाने में फौरमैनपद पर कार्यरत थे। पहली संतान के रूप में बालक का जन्म होना खुशी की बात थी। माँ बताती हैं, बाबा जी का स्वर्गवास मेरे जन्म से पहले ही हो गया था, सो दुर्भाग्य ये रहा कि बाबा ( दादा )की गोद में खेलने का सुख नहीं मिला । दाई ( दादी ) से मुझे खूब ढेर सारा प्यार मिला। इसका और भी कारण था, बताते हैं, मेरे माता-पिता के विवाह के 18 साल के एक लंबे अन्तराल के बाद मेरा जन्म हुआ। माता-पिता की हज़ारों मन्नतों और दुआओं से, मेरे जन्म से परिवार में खुशियों की लहर आई।

 

बचपन

    जन्म से चौदह साल तक का समय, हर एक बालक के लिए स्वर्णिम काल होता है। इन दिनों की कीमत कोई वाइट हाऊसदेकर भी नहीं चुका सकता! हाँ मगर ऐसा नहीं  कह रहा कि खूब मौज मस्ती की हो, स्वाभावनुगत मैं बचपन से ही शान्त था। बचपन की शरारतें, ठिठोली, मज़ाक, शायद मेरे उन दिनों से ही नहीं, मेरी ज़िन्दगी से ही दूर थी। मेरे बाद एक भाई और एक बहन का हमारे घर में आगमन हुआ। मेरी माँ एक अति संवेदनशील और भावुक और शांत गृहणी हैं। पिता जी हमारी शिक्षा को लेकर शुरू से ही बहुत सजग थे। बस इसी लिए उन्होंने मुम्बई को छोड़कर घर आ गए, और गांव में आकर खेती बाड़ी में लग गए। फिर खेत ही हमारे गुजर-बसर का एक मात्र साधन था। घर पर रहकर पिता जी पूरी निगरानी के साथ हमारी शिक्षा पर जोर देते थे। ये वही दौर था, जब चार जूतेवाला किस्सा मेरे साथ  हुआ । पिता जी से पिटाई के कई और किस्से इसी दौर के थे‌।

 

शिक्षा

    मैं हमेशा से ही औसत दर्जे का छात्र था। इस लिए सामान्य शिक्षा अर्जित कर सका, ठाकुर दीन सिंह इंटर कॉलेज से हाई स्कूल, चौधरी रधुनाथ सहाय इंटर कॉलेज हथगाम से इण्टरमीडिएट, और सदानंद महाविद्यालय छिवलहा हथगाम से स्नातक की पढ़ाई की इसके अतिरिक्त कम्प्यूटर शिक्षा में दक्षता हासिल की।

 

साहित्य और सिनेमा

    हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद छुट्टियों के दिन चल रहे थे।यही वो वक़्त था जब मैंने अपने जीवन की पहली कविता लिखी। कुछ-कुछ याद है उस कविता का शीर्षक थाएहसान फिर कविताएँ लिखने का सिलसिला तब से शुरू हुआ था, जो अभी भी चल रहा है। हिन्दी साहित्य की कुछ-कुछ समझ अब आनी शुरू हुई है। लेखन को लेकर विधाएँ समझने में बहुत समय लगा। लेकिन आभार है ईश्वर का सही वक़्त पर मुझे शिवशरण बंधु और डा० वारिस अंसारी जैसे गुणी साहित्यिक गुरु मिल गए तो कुछ आसानी हुई। फिर कविताओं को लेकर चाहे, गीत हो, ग़ज़ल या नई कविताएँ, इनके साथ-साथ बाल कविताओं पर भी मेरी कलम चली, इसी बीच माँ सरस्वती की कृपा से एक कविता लिखी 'मोची हो गए मेरे पापाजिसकी खूब चर्चा भी हुई। इधर पत्र-पत्रिकाओं में लेखन व प्रकाशन सुचारू रूप से चल रहा था। साथ ही इधर मंचों पर मैं अपनी कविताएँ सुना रहा था, तभी एक कार्यक्रम के दौरान एक सज्जन ने एक एल्बम के लिए गीत लिखने के लिए प्रस्तावित किया, तो मैंने उनके लिए दो गीत लिख दिए, गाने ज्यादा चले तो नहीं, पर लोगों ने मेरे लेखन की प्रसंशा की, जिससे मुझे बहुत हौसला मिला। एक साल बाद एक लघु फिल्म में अभिनय करते हुए पता यह चला इन फिल्मों के पीछे एक निर्देशक नाम की कोई एक चीज़ होती है। उसकी कुशलता को जानने व समझने के लिए गूगल, यूट्यूब से जानकारियां एकत्र की और फिर लग गया अपने फिल्म बनाने के अभियान पर, आज मैं डेढ़ दर्जन से ज्यादा लघु फिल्मों का निर्देशन कर चुका हूँ!

             इसके अतिरिक्त हिन्दी, भोजपुरी के पांच गीत लिख चुका हूँ, जो यूट्यूब पर चल रहें हैं। इन सब कामों के लिए अब तक कई सम्मान भी मिल चुके हैं। इन दिनों मैं कहानी लेखन में व्यस्त हूँ!

 आत्मकथा : वतन से दूरी ही मेरी साहित्य साधना की मूल प्रेरणा है!

अभिरूचियां

    पढ़ाई लिखाई का जब तक मतलब समझ आया तब बहुत देर हो चुकी थी। मुझे पढ़ाई छोड़े नौ बरस हो गए। अब साहित्य की किताबें,पत्र, पत्रिकाएँ, पढ़ने में बड़ा मन लगता है। सिनेमा देखना, किक्रेट देखना, सुनना आदि पसंद है! मुशी प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, नागार्जुन, अदम गोंडवी, दुष्यंत कुमार, मेरे पंसदीदा साहित्यकार हैं। और देश दुनिया का इतिहास जानने में मुझे  खासी रूचि है!

 

विवाह

    फरवरी 2018 में मेरा विवाह प्रियंका लोधी के साथ हुआ! उनसे मुझे एक पुत्र की प्राप्ति हुई। जिसका नाम सिद्धार्थ लोधी है। भविष्य की योजना में बेटे को अच्छी शिक्षा, माँ बाप की सेवा, और सम्मान जनक जीवन के अतिरिक्त और किसी चीज़ की इच्छा नहीं है!



शिव सिंह सागर’ 

                       बन्दीपुर हथगाम फतेहपुर

                       मो. 9721141392


नाचा मोर

 Peacock Herds Start Appearing In Populated Areas In Lockdown, Menar -  लॉकडाउन में आबादी इलाकों में दिखने लगे मोर के झुण्ड , ढाल नृत्य बना आकर्षण  | Patrika News

इतना नाचा मोर कि नभ में

बादल घिर कर लगे नाचने

नाच देखकर बिजली रानी

चमचम चमचम लगी चमकने


इतना नाचा मोर कि नभ से

झमझम बरखा लगी बरसने

बरखा में सब पेड़ नहाकर

पत्ते-पत्ते   लगे   थिरकने

 

इतना नाचा मोर कि नभ से

सारी चिड़िया  लगी उतरने

खुश होकर सब जीव- जन्तु भी

छम-छम, छम-छम लगे नाचने

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डॉ. सतीश चन्द्र भगत


डॉ. सतीश चन्द्र भगत

निदेशक- हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान

बनौली, दरभंगा ( बिहार) -847428

मोहनलाल यादव के चालीस दोहे


        

 

परिचय

नाम-मोहनलाल यादव                            

पिता-  चौधरी मुलई यादव               

माता- हुबराजी देवी

ग्राम- तुलापुर, झूँसी, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

जन्म-  8 अप्रैल 1959

शिक्षा- स्नातक

संप्रति- अध्यापन

कृतित्व-

नाटक-कलजुगी पंचाइत, आदमखोर, भ्रष्टाचार का मोहि कपल छल छिद्र न भावा आदि 20 नाटकों का लेखन,मंचन एवं निर्देशन

दूसरा प्रेमचंद की कहानियों कफन, सदगति, सुभागी, पंच परमेश्वर, मंत्र आदि का नाट्य रूपांतरण, मंचन एवं निर्देशन।

★1988 में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था "प्रतिध्वनि लोकमंच" की स्थापना एवं लोकगीत, लोक नाटकों एवं लोक नृत्यों की प्रस्तुतियां।

फिल्म चकरघिन्नी में अभिनय

आकाशवाणी इलाहाबाद में कविता पाठ

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी एवं लेखों का अनवरत प्रकाशन

Monday, May 24, 2021

हमारे इंसानी रोबोट तुम्हारे रोबोट से कम हैं के

हमारे इंसानी रोबोट तुम्हारे रोबोट से कम हैं के

 

"हमारे रोबोट पाई-पाई का हिसाब होने तक कुंडली मारकर बैठे रहते हैं। चाहे कोई कितना भी गिड़गिड़ाए ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाइयां, बेड, वेंटिलेटर देने से पहले भरपूर कालाबाजारी और अपना कमीशन वसूल करते हैं। मेरे देश के सबसे बड़े रोबोट का तो पूरे ब्रह्मांड में कोई सानी नहीं है। मन से चलता है। आदमी की नब्ज को पकड़ कर आँसुओं की धार भी लगा देता है।"

 

यहां तो इंसान ही रोबोट बना दिए। जापानी वैज्ञानिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस अपने रोबोट के बारे में न केवल बता रहा था बल्कि उससे अपने निर्देशों का पालन भी करा रहा था। बहुत देर तक प्रदर्शन चलता रहा।वहां बैठे फोकटिया लाल से नहीं रहा गया। खड़े होकर बोलने लगा -ऐ भाई चुपकर, तुम और तुम्हारे रोबोट हमारे रोबोटों से क्या टक्कर लेंगे। हमारे रोबोटों का दुनियाँ भर में कोई मुकाबला नहीं है।

 Human robot head Stock Vector Image & Art - Alamy

हमारे रोबोट पाई-पाई का हिसाब होने तक कुंडली मारकर बैठे रहते हैं। हिसाब तो छोटा मोटा ही होता है मतलब केवल दस बीस लाख का। मरीज को डिस्चार्ज करना तो दूर, लाश तक परिजनों को नहीं देते हैं। चाहे कोई कितना भी गिड़गिड़ाए ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाइयां, बेड, वेंटिलेटर देने से पहले भरपूर कालाबाजारी और अपना कमीशन वसूल करते हैं। सत्यवादी हरिश्चंद्र अपनी सत्यवादिता के कारण श्मशान में अडिग रहे थे। आधुनिक हरिश्चंद्र लाश दहन के लिए मुंहमांगी कीमत लेकर ही श्मशान में प्रवेश करने दे रहे हैं। कंधा लगाने से लेकर फूल गंगा मैया में विसर्जन करने तक, हरेक की मुंहमांगी वसूली जारी है। हर जगह मौका न चूक जाए के सिद्धांत पर अमल किया जा रहा है।

 Robots Will Now Help The Soldiers In Battlegrounds - बहुत जल्द सेना में  होगी रोबोट्स की भर्ती, यहां इस वजह से किया जा रहा है इनका निर्माण | Patrika  News

सरकारी रोबोट आदेशों का अक्षरशः पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। जरूरी कामों या दवाई लेने जाते हुए आम आदमी पर थप्पड़ व लाठी भांज रहे हैं। छोटे से लेकर बड़े सरकारी रोबोट, ठेकेदार, छुटभैये नेता अपने-अपने आकाओं के लिए वे छपाई मशीन बने हुए हैं। तुमने मशीन में नकली दिमाग लगाया। हमने अच्छे खासे दिमाग की कोडिंग कर भावशून्य कर दिया है। नोट की छाप तो इस कदर दिमाग में बिठा दी है कि हर जगह अवसर की तलाश रहती है, और सबसे बड़ी बात तुम्हारे रोबोट को बार बार निर्देश देने पड़ते हैं, हमारे रोबोट एक बार की कोडिंग से आजीवन चलते हैं।

 

मेरे देश के सबसे बड़े रोबोट का तो पूरे ब्रह्मांड में कोई सानी नहीं है। मन से चलता है। आदमी की नब्ज को पकड़ कर आँसुओं की धार भी लगा देता है।

मधुर कुलश्रेष्ठ


मधुर कुलश्रेष्ठ

जिला-गुना,मध्य प्रदेश

 

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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