साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Monday, August 17, 2020

सरकार की लापरवाही ताली-थाली,दिया-बाती के नाम

-अखिलेश कुमार अरुण

देश की 130 करोड़ जनता कई समस्याओं को एक साथ झेल रही है. एक के बाद एक समस्याओं का तारतम्यता जैसे टूटने का नाम ही नहीं ले रहा है. केंद्र की सरकार ने एक के बाद एक बोझ जनता के सर पर डालती गयी और हम हँसते हुए इस आस में उन सबका सामना करते गए कि अब कुछ अच्छा होगा किन्तु हाथ निराशा ही लगा. कुछ नाम गिनाया जा सकता है जो केंद्र सरकार के द्वारा लाया गया जिसका नतीजा जीरो रहा-नोटबंदी, जीएसटी, तीन तलाक, एनपीआर और भी बहुत कुछ. अब मौका था मोदी जी को जनता के लिए कुछ करने Food supply is being done in the name of home quarantineको जिसे प्रकृति ने एक विकट समस्या के रूप में सम्पूर्ण विश्व को भेंट किया. जिसमे हमारा देश भी मार्च के अंतिम महीने में सामिल हो गया. जिसमें विश्व के 195 देश प्रभावित हो रहे हैं, और अधिक प्रभावित होने की संभावना है. विश्व के अनेक देशों ने अपनी क्षमता के अनुसार उससे लड़ने की जुगत में रात-दिन एक किये हुए हैं किन्तु अभी भी असफल हैं. जिसमे प्रमुख रूप से चीन, अमेरिका, इंगलैंड, इटली आदि देश आते हैं. जहाँ रोज आज भी एक बड़ी जनसँख्या कोरोना रूपी काल के गाल में समाती जा रही है. इस वैश्विक महामारी ने सम्पूर्ण मानव जाति के आस्तित्व पर एक प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है. चिकित्सकीय जगत कोमा में जा चुका है वैज्ञानिकों के हाँथ-पांव सुन्न हो गए हैं.


    

हमारे देश में छुआछूत की यह संक्रमित बीमारी मार्च महीने के तीसरे सप्ताह में प्रवेश की है. विश्व में इसका उद्भव चीन के वुहांग शहर में दिसंबर २०१९ में हुआ, पूरा तीन महीने का समय था इससे बचने की तैयारी हम वैकल्पिक रूप से ही कर सकते थे. देश की सीमाओं को प्रतिबंधित कर देश में आने-जाने वाले संदिग्ध कोरोना संक्रमित व्यक्तिओं को आईसोलेट कर उनका ईलाज करते.....छोड़िये अब इस पर ज्यादा चर्चा नहीं करेंगे. चूक हो गई संक्रमण देश में फ़ैल गया तो अब उससे बचाव के लिए हमें अपने देश में चिकत्सकीय क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन कर स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करना था किन्तु यहाँ भी चूक गए और इससे बचाव की जिम्मेदारी हमारे प्रधानमंत्री जी जनता के ऊपर डाल दिए. जनता पुरे मनोयोग से सरकार के सहयोग में आ खड़ी हुई. प्रधानमंत्री राहतकोष में देखते ही देखते करोड़ों की सम्पति जमा कर दी गयी कि सरकार इस विपदा से देश की जनता को बचाने लिए हर संभव प्रयास करे. देश के जिम्मेदारानों ने स्वास्थ्य, राहत आदि के नाम पर  केवल खोखले भाषणबाज़ी के अतिरिक्त और कुछ नहीं किया.

२२ मार्च को प्रधानमंत्री जी ने 12 घंटे की जनता कर्फ्यू का आवाहन किया, स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सम्पूर्ण लॉकडाउन का ऐलान कर दिया गया. यह भी आधी-अधूरी तैयारी के भेंट चढ़ गया 80,000 से 1,00,000 के आस-पास जनता रोड पर आ गई दिल्ली का राष्ट्रीय राजमार्ग देखते ही देखते विशाल कुम्भमेले का रूप धारण कर लिया. उस भीड़ में गर्भवती महिलाएं, दुधमुहे गोदी के बच्चे और पैदल चलते 10-12 साल के बच्चे भी सफर पर थे भूख-प्यास से बिलबिलाते जिनके हालात को देख लो तो आसूं छलछला जाते थे संवाददाता न्यूज कवर करते हुए आखों को कैमरे से चुरा लेता था. लेकिन सरकार का दिल पसीजने को तैयार नहीं था. रामबदन कोतवा निवासी लखीमपुर दिल्ली में रहकर ठेकेदार के ठेके में राजमिस्त्री का काम करते थे लॉक-डाउन के चलते कम बंद हुआ. परिवार सहित भूखों मरने से बेहतर पैदल सफ़र करना स्वीकार किया जिसमें २० से २५ लोगों की टोली थी जो 10 दिन में अपने घर पहुंचे, जिसमें पैदल और ट्रक से यात्रा किये थे उनके पैर फूलकर मोटे हो गए थे, पैरों में छाले भी पड़ गए थे. कितना कष्टकारी रहा यह करोना यह तो वही जानें. एक ५० साल का दिव्यांग हाथ में झोला सर पर गठरी लिए गाजियाबाद से पैदल चलकर कुबेरपुर पहुंचे जहाँ उन्हें कानपुर के लिए बस मिली, गुड्डू हमारे गाँव का ही लड़का नॉएडा से पैदल चला घर के लिए लगभग ४०-५० किलोमीटर दुरी तय करने के बाद उसे एक ट्रक शाहजहाँपुर के लिए मिला, बड़ी जद्दोजेहद और मशक्कत के बाद घर पहुंचा.

अन्धविश्वास और धर्म की भेंट चढ़ा कोरोना

कोरोना से जंग जितने के मामले में विज्ञान पिछड़ गया धर्म के मुक़ाबले, धर्म की दुकाने बंद हो गईं, मंदिरों में ताले जड़ दिए गए फिर भी धार्मिक पोंगा-पंडितों ने मोदी जी के फैसलों का खुलकर समर्थन किया. वह इसलिए नहीं कि मोदी जी ने कहा है बल्कि वह धर्म का मामला बन गया, प्रधानमन्त्री जी देवतुल्य हो गये उनकी हरेक बात देववाणी हो गई. उन्होंने कहा ताली-थाली बजाकCorona Mai: कोरोना बनी 'माई', नदी किनारे ...र स्वास्थ्य कर्मियों और उन जाम्बंजो का समर्थन करें जो कोरोना से बचाने के लिए दिन-रात एक कर जनता की सेवा कर रहे हैं. यहाँ धर्म के ज्योतिषियों ने इसका तर्क दिया कि मेरे हिसाब से प्रधानमंत्री ने बहुत सोच समझ कर ताली या थाली बजाने को कहा है। इससे जो शोर पैदा होगा, उसे ही भारतीय शास्त्रों में नाद कहा गया है। उनके हिसाब से इस नाद से तमाम बुरी शक्तियों को पराजित करने की मिसालें रही हैं। इस नाद से जो कंपन पैदा होता है उससे वायरस को आसानी से मारा जा सकता है। अंक ज्योतिष ने 22 मार्च की तारीख का महत्व समझाया। उसके हिसाब से 22 का मतलब चार का अंक होता है, जो राहु का अंक होता है। पांच बजे का समय इसलिए क्योंकि उस समय राहु काल शुरू होगा। इसलिए इस समय शोर या नाद पैदा करके राहु के असर को खत्म किया जाना है। ज्योतिष का कहना है कि रविवार को चंद्रमा एक नए नक्षत्र रेवती में जा रहा है और उस दिन जोर से ताली और थाली बजाने से जो तरंग पैदा होगी, उससे लोगों के शरीर में रक्त का संचार तेज हो जाएगा। यह भी कहा जा रहा है कि उस दिन अमावस्या है और उस दिन अगर जोर से शोर पैदा किया गया तो वायरस अपनी सारी ताकत खो देगा। ज्योतिष महोदय ने इसे एनर्जी मेडिसिनका नाम दिया है। एक समर्थक ने लॉ ऑफ अट्रैक्शन की थ्योरी के जरिए समझाया कि पांच बजे ताली और थाली बजाने से प्राणाकर्षण पैदा होगा, जिससे कोरोना वायरस से लड़ने वालों को संबल मिलेगा।

3 अप्रैल को राष्ट्र के नाम उद्बोधन में मोदी जी ने एक और बड़ा ऐलान कर दिया कि 5 अप्रैल को 9 बजे 9 मिनट घर की सभी लाईटें बंद कर दिया, मोमबत्ती, टार्च और मोबाइल की फ्लैस लाईट जलाकर हमारे जीवन को सुरक्षित रखने में जो सहयोग कर रहे हैं तथा उन सभी संघर्षरत लोगों को एक सन्देश देना है कि इस विपत्ति के समय में कोई अकेला नहीं है. इसका भी धार्मिक व्याख्यान तैयार था जिसे प्रज्ञा जागरण संसथान के संस्थाक हरिकोरोना वायरस: जनता कर्फ्यू के बीच ... प्रकाश श्रीवास्तव ने अपने फेसबुक टाइमलाइन पर जगह दिया. जिसमे ज्योतिष चिन्तक ने अपने चिन्तन में पांच अप्रैल के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए व्याख्यित करता है कि  5 अप्रैल को 9 बजे, 9 मिनट तक, दीपक वाले मोदी जी के भाषण में तारीख 5 ही क्यों चुनी? रविवार ही क्यों चुना? 9 बजे का वक्त ही क्यों चुना?, 9 मिनट का समय ही क्यों चुना? जब पूरा लॉकडाउन ही है तो शनिवार, शुक्रवार या सोमवार कोई भी चुनते क्या फर्क पड़ता? आगे लिखते हैं कि जिनको अंकशास्त्र की थोड़ी भी जानकारी होगी, उनको पता होगा कि  5 अंक बुध का होता है. यह  बीमारी गले, फेफड़े  में ही ज्यादा फैलती है, मुख गले फेफड़े का कारक भी बुध ही होता है, बुध राजकुमार भी है। रविवार सूर्य का होता है। सूर्य ठहरे राजा साहब  दीपक या प्रकाश भी सूर्य का ही प्रतीक है 9 अंक होता है मंगल का जो सेनापति है.  रात या अंधकार होता है शनि का...अब रविवार 5 अप्रैल को, जोकि पूर्णिमा के नजदीक है, मतलब चन्द्र यानी रानी भी मजबूत... सभी प्रकाश बंद करके, रात के 9 बजे, 9 मिनट तक टॉर्च, दीपक, फ़्लैश-लाइट आदि से प्रकाश करना है। चौघड़िया अमृत रहेगी, होरा भी उस वक्त सूर्य का होगा.... शनि के काल में सूर्य को जगाने के प्रयास के तौर पर देखा जा सकता है.. 9-9 करके सूर्य के साथ मंगल को भी जागृत करने का प्रयास मतलब शनि राहु रूपी अंधकार (महामारी) को उसी के शासनकाल में बुध सूर्य चन्द्र और मंगल मिलकर हराने का संकल्प लेंगे। जब किसी भी राज्य के राजा, रानी, राजकुमार व सेनापति सुरक्षित व सशक्त हैं, तो राज्य का भला कौन अनिष्ट कर सकता है.

 

सरकार की जवाबदेही

सरकार और धर्म के पोंगा पंडित दोने एक दुसरे के पूरक हो गए हैं. जो मोदी जी कहते हैं उसको जनमानस तक पहुचने का कार्य धर्म के ढेकेदार कर रहे हैं. सरकार अपने उत्तरदायित्वों से भटक रही है. कोरोना से जंग में तैनात स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस, सैन्य-बल, सफाईकर्मीCoronavirus: राहू ने फैलाया संक्रमणयुक्त ... आदि जो दिन-रत एक  कर अपने कार्य का मुश्तैदी से निर्वहन कर रहे हैं उनको अब तक क्या सुविधाएँ दी गई हैं. अभावों से जूझते हुए स्वास्थ्यकर्मी चिकित्साकार्य में लगे हुए हैं आये दिन नर्स और डॉक्टर सोशल मिडिया का सहारा लेकर वीडियो वायरल करते हैं कि डाक्टर नहीं हैं, मास्क नहीं है, दवाएं, टेस्टिंग किट आदि की अनुपलब्धता है ऐसे में लोगों का उचित ईलाज कैसे संभव है. रणघोष अपडेट देशभर से अपने 4 अप्रैल के समाचार में लिखता है कि ४० फीसदी डॉक्टर –नर्स अधूरी तैयारी से परेशान, संक्रमण से बढ़ा ख़तरा. इटली -8379, साऊथ कोरिया-7710, स्पेन-7596, अमेरिका-3078, यु०के०-2156 चीन-230 आदि देशों के द्वारा कोरोना संदिग्ध लोगों की जाँच प्रत्येक दिन हो रहा है वहीं भारत-32 संदिग्ध संक्रमित लोगों का जाचं कर पा रहा (स्रोत-government health department, media report) है जो विश्व जनसँख्या की दृष्टि से दुसरे स्थान पर आता है. वेंटीलेटर की सुविधाओं में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई, अस्पताल खस्ताहाल में हैं. 24 मार्च को राहुल गाँधी एक डाक्टर का टयूट शेयर करते हैं, “जब वे (प्रधानमंत्री जी ) आयें तो कृपया N95 मास्क और दास्ताने मेरी कब्र पर पहुंचा देना.” ऐसा ही एक और वीडियो बलरामपुर हास्पिटल की एक नर्स ने शेयर किया जिसमे उसने मास्क, दास्ताने और दवाओं के न होने की बात कर रही थी. खबर ndtv डॉट काम के हवाले से एक न्यूज प्रकाशित होती है कि प्रियंका गाँधी एक विडिओ शेयर करती हैं जिसमे उप्र मेडिकल स्टाफ़ का आरोप है कि मास्क सेनिटैजेर मांगने पर हाँथ-पैर तुड़वाने की धमकी दी गयी है. AIIMS के डॉक्टर ने कहा कोरोना वायरस से जंग में PPE की कमी के चलते डॉक्टर कोरोनावायरस से संक्रमित हो रहे हैं अतः प्रधानमन्त्री जी मेरे मन की बात सुने.कोरोना से जंग में उपकरणों की कमी, ४१० कलेक्टरों आइएएस अफसरों के फ़ीडबैक खुलासा करते हुए लिखा गया है की २२ प्रतिशत जमीनी स्तर पर तैयारी से असहमत हैं, ५९ प्रतिशत बीएड की कमी, ७१ फीसदी वेंटिलेटर की कमी और ७० प्रतिशत अधिकारी मानते हैं कि पीपीई व दस्ताने कम हैं , यह तो एक झलक मात्र है, और भी बहुत सी चिकित्सक,चिकित्सालय, जाँच उपकरण, सुरक्षा किट आदि को लेकर समाचार देश की जनता के सामने निकल कर आये जिन्हें मोदी मिडिया ने अपने पन्ने पर स्थान नहीं दिया. निर्भीक पत्रकार, पत्र-पत्रिकाओं और सोशल मीडिया ने कुछ ख़बरों को जिन्दा रखा जो देश के चिकित्सा जगत की वास्तविक सच्चाई को उजागर करते हैं.

क्वारेंटाईन ग्रामीण और उनकी समस्याएं

दिहाड़ी-मजदूर रोज कमाने-खाने वाले, सुबह निकलते हैं तो शाम का चूल्हा जलता है, अपने परिवार का पेट पालने के लिए उत्तर-प्रदेश, बिहार के ज्यातादर लोग दिल्ली,महाराष्ट्र, गुजरात, केरल और कर्नाटक में ठेके में, फैक्ट्रियों में, दिहाड़ी-मजदूर हैं, शाक-भाजी,फल-फूल का दुकान किये हुए हैं रोज की कमाई उनके जीविका का आधार है. यकायक तुCOVID-19: राजस्‍थान में जानवरों के बाड़े ...गलकी फरमान जारी करते हुए २२ मार्च से लॉक-डाउन का आदेश घोषित कर दिया गया, निम्नवर्गीय जो जहाँ थे वहीँ फंस गए, न राशन था न पानी था जेब में एक फूटी धेली भी न थी, महानगरों में इन्हें भूखों मरने की नौबत आ गयी, घर जाने के सारे साधन बंद कर दिए गए. इस विकट परिस्थिति में किसी ने हिम्मत किया और चल दिया अपने घर को ५०० से १००० किलोमीटर के पथ पर देखते ही देखते हजारों-लाखों की भीड़ नॅशनल हाईवे २४ पर आ चुकी थी. उनके लिए भूखों मरने से अच्छा था कोरोना से मर जाना और ख़ुशी थी घर पर पहुँचने की उसकी समस्याएं यहाँ भी कम न हुईं पुलिसिया रौब हाबी हुआ जानवरों की तरह उनपर लाठी बरसाए गए. सरकार ने क्या किया? केवल दावे, दिलासा दिलाया कोरोना से बचाव के नाम पर कीटनाशक का छिड़काव किया, न कोई जाँच न दवा जब सरकार की किरकिरी होने लगी तो आनन्-फानन में बसों का इंतजाम करवाया वहां भी कहीं-कहीं दुगुने से ज्यादा किराये वसूले जाने की घटनाये हुईं. दिहाड़ी-मजदूर जो देश के भिन्न-भिन्न राज्यों से चलकर यातनाओं को झेलते हुए अपने घर पहुंचें हैं इस आश में कि घर पर सुकून से रहेंगे उन्हें केंद्र और प्रदेश सरकार ने १४ दिन के लिए गावं के सरकारी विद्यालयों में बंद करवा दिया कि संक्रमण का खतरा गावं में न फैले यह निर्णय सही था क्योंकि हम चिकित्सा के क्षेत्र में विश्व के अन्य देशों से काफी पीछे हैं यह गावं में फ़ैल गया तो रोक पाना मुश्किल होगा. अमेरिका, इटली, चीन जैसे देश अपने देश हजारों-लाखों लोगों को खो चुके हैं. किन्तु यह निर्णय भी देर से लिया गया मेरे अपने गावं में जो लोग बहार से आये हुए थे वह अपने परिवार में कोई तीन या चार दिन गुज़ार चुकें हैं उसके बाद उन्हें सरकारी स्कूल में बंद किया गया है जहाँ उनकी संख्या २२ है. सभी को एक-एक मीटर की दूरी पर सोने के लिए बिस्तर लगा दिया गया है. दिन में सभी एक दुसरे के साथ उठते-बैठते खाते-पीते हैं. आधी-अधूरी तैयारी के साथ कोरोना से बचाव के नियमों का पालन किया जा रहा है. सरकार के तरफ से उनके खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं है अतः उनके परिवार के लोग सुबह-शाम और दोपहर का नास्ता, खाना-पानी पहुँचा रहे हैं. यह सरकार का कौन सा नियम है समझ में नहीं आ रहा इस प्रकार से इस संक्रमण को रोका जा सकता है क्या? बैगैर खाद्य-सामग्री और सुविधाओं के १४ दिन व्यक्ति कैसे रह सकेगा? उसके परिवार के लोग ही उन्हें खाना-पानी पहुचाएंगे तो जिन बर्तनों का प्रयोग बंदी व्यक्ति कर रहा है अगर वह संक्रमित हुआ तो क्या उसका परिवार संक्रमित नहीं होगा? उत्तर-प्रदेश के लगभग सभी ग्राम-पंचायतों की यही कहानी है. जो प्रधान है वह रसूखदार है, जयादातर अगड़ी जाति के प्रधान हैं, पहुँच वाले हैं वे इसकी आंड में पूरी मनमानी कर रहे हैं. जातिवादी ताना-बाना बुन रहे हैं, जो रसूखदार हैं वे खुलेआम घूम रहे हैं गरीब असहाय विचारा पुरातन धर्म व्यवस्था का शिकार होकर रह गया है.

उपरोक्त समस्यायों की पूरी की पूरी जबाबदेही सरकर की है. सरकार ने इन सबके लिए अब तक क्या किकोरोना लॉकडाउन: ग़रीब और कमज़ोर तबके ...या है? इसका जबाब उसके पास नहीं है उल्टे आम जनता को हिन्दू-मुस्लिम मुद्दे में, धर्म-कर्म, अन्धविश्वास, आदि में उलझा कर अपने उत्तरदायित्व से कन्नी काट रही है. इस विषम परिस्थिति में सरकार का यही रवैया रहा तो वह दिन दूर नहीं जिसको इटली,अमेरिका,चीन ने झेला है भारत उससे भी बुरे और भयंकर परिणाम को झेलेने के लिए तैयार रहे.

-इति-

 

सन्दर्भ सूची

1.     दैनिक जागरण आगरा लखनऊ 31 मार्च

2.     जनसत्ता 4 अप्रैल

3.     अपने गाँव, जिले के पीड़ित यात्रियों का अनुभव व क्वारेंटाईन ग्रामीण.

4.      खबर ndtv डॉट काम

5.     मिडिया रिपोर्ट गवर्नमेंट हेल्थ डिपार्टमेंट

6.     रणघोष अपडेट

7.     हिंदुस्तान समाचार पत्र दिल्ली से प्रकाशित. 5 या 4 अप्रैल

Tuesday, August 11, 2020

भेजीहऽ ख़बर हम कबर से आईब हो

हम कबर से आईब हो

मर के भी साथ हम न छोड़ पाईब हो

भेजीहऽ ख़बर हम कबर से आईब हो-2

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नेहिया लगवले बाडू परी निभावे के

सोचिहऽ न दोसर आपन दुनिया बसावे के

मंगबू जे चाँद हम तारा ले आईब हो

भेजीहऽ ख़बर हम कबर से आईब हो-2

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प्यार का होला पूछऽ कवनो दीवाना से

राही के रोड़ा बनल दुश्मन जमाना में

तोहके पावे खाति मरब चाहे मार आईब हो

भेजीहऽ ख़बर हम कबर से आईब हो-2

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केतना चाहिलां हम तोहके बताईं का

जईसन हनुमान सीना चीरि देखाईं का

कईल तोहरे इशारा हम मर जाईब हो

भेजीहऽ ख़बर हम कबर से आईब हो-2

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बसल बाडू रोमे-रोम ‘अरुण’ के साँस में

ज़हर जुदाई होई बनबू जे आन के

उठी तोहर डोली हमना सह पाईब हो

भेजीहऽ ख़बर हम कबर से आईब हो-2

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मर के भी साथ हम न छोड़ पाईब हो

भेजीहऽ ख़बर हम कबर से आईब हो-2

------------------------------------------सर्वाधिकार सुरक्षित@अखिलेश कुमार अरुण

Wednesday, April 29, 2020

एक थे इरफ़ान खान।

#श्रद्धाजंलि
बॉलीवुड अभिनेता #इरफान_खान का निधन बुधवार को हो गया. मैं इनके अभिनय का बहुत बड़ा कद्रदान हूं, इनके बोलने का लहज़ा, भाव-भंगिमा, और अदाकारी की सनक बरवस ही अपने दर्शकों को खींच लेती है। मैं इनकी फिल्मों जो मेरी पहली फिल्म थी वह शायद #पानसिंह तोमर के किरदार वाली थी उसका नाम नहीं पता और पता करना भी नहीं चाहता। बस अपने मन की बात लिखे देता हूं। उनकी एक और फिल्म है जिसमें औरतों को समझने का बहुत बड़ा अनुभव अपने एक्टर साथियों के साथ अभिनय करते नज़र आते हैं, पर आखिर गच्चा खा ही जाते हैं। पिछले साल या उससे भी पहले मैंने उनकी जो फिल्म देखी थी वह थी पाकिस्तानी अदाकारा के साथ अभिनित फिल्म #हिन्दी_मीडियम जिसने दिल को छू लिया, एक्शन, ड्रामा, इमोशनल का मिला-जुला कलेक्शन और उससे भी बड़ी बात यह कि उसके एक्टर इरफान खान। इस फिल्म को मैंने एक-दो नहीं लगभग-लगभग चार पांच बार तो देखा ही होऊंगा। #पिकू में टैक्सी ड्राइवर का रोल लेकर फिल्म में अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण के साथ फिल्म में जान डालने वाले अभिनेता इरफान खान पेट की बिमारी से ठीक होने के लिए बच्चन जी को कुछ ट्रिक सीखा रहे थे विश्वास नहीं होता कि उसी तरह की परेशानी आपके जीवन को खत्म कर गई और आप जिन्दगी की जंग हार गए। #मदारी फिल्म को पूरा नहीं देख पाया उसका मलाल नहीं है देख लूंगा किन्तु इस दुःख में कि अब आप जैसे अभिनेता की अब फिल्मी बाजार में आने वाली नहीं, जितनी बाजार में हैं उन्हीं को देखा जाए और समीक्षा की जाए।  अभी कुछ दिन पहले उनकी माता जी का भी निधन हो गया दुर्भाग्य यह रहा कि लाकडाउन के चलते अपनी माता की अन्तिम यात्रा में न जा सके अपनी माता के पास चले गए।अभिनेता इरफान खान को मंगलवार को पेट के संक्रमण के बाद शहर के एक अस्पताल की आईसीयू में भर्ती कराया गया था. उनके प्रवक्ता ने मंगलवार को यह जानकारी देते हुए बताया था कि 53 वर्षीय अभिनेता को कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. खान की 2018 में कैंसर की बीमारी का इलाज हुआ था. वह आंत के इन्फेक्शन से परेशान थे।
उनकी मृत्यु से फिल्मी जगत को अपार क्षति हुई है जिसकी भरपाई शायद ही हो। अश्रुपूरित नेत्रों से भावभीनी श्रद्धांजलि।
@अखिलेश कुमार अरुण

Sunday, December 22, 2019

असल मुद्दे बनाम सीएबी, सीएए और एनआरसी


असल मुद्दे बनाम सीएबी, सीएए और एनआरसी

-अखिलेश कुमार ‘अरुण’
Image result for nrcसाथियों बहुत दिनों के बाद लेखनी को हाथ लगाया है. पिछले साल दो साल से लेखन कर्म से विरत रहा हूँ. जिसके ढेर सारे कारण थे उनका उल्लेख करना आवश्यक जान नहीं पड़ता है. किन्तु अब हमें हमारा लेखकीय धर्म धिक्कार रहा है अब और नहीं.........देश विषम परिस्थियों से गुजर रहा है. विद्वान् साथियों की राय-मशविरा को कोई स्वीकारने वाला नहीं है. फेसबूकिया, व्हाट्सएप्प युनिवर्सिटियों के ज्ञानियों की भरमार हो चली है. उनके ज्ञान पर खीझ भी आती है और गुस्सा भी. जो किताबों को देखकर ही नाक-भौं सिकोड़ते हैं वह भी अपने लेखन की सत्यता के रिफरेन्स के लिए किताबों लम्बी-चौड़ी लिस्ट उदाहरण के तौर पर चिपका देते है. ऐसा जान पड़ता है कि हमने अब तक जो भी पढ़ा-लिखा है वह सब व्यर्थ गया. ऐसी पढाई-लिखाई किस काम की जहाँ पर अधूरी जानकारी ही, दी जाती रही है.
Image result for berojgariअब आते हैं हम अपने असल मुद्दे पर जहाँ एक तरफ हमारा देश बेरोजगारी, भुखमरी, शिक्षित बेरोजगारी, मंहगाई, व्यापारी वर्ग मंदी, कार्पोरेट घराना आदि सस्याओं से जूझ रहा है. देश की जीडीपी अन्तराष्ट्रीय स्तर पर औंधे मुहं लुढ़कते जा रही है. अपने देश के लोगों का भविष्य खतेरे में है. जनता त्राहिमाम् कर रही है. वहां देश की सत्तासीन सरकार CAB (सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल) NRC (नेशनल रजिस्टर फॉर सिटिजन) और CAA (सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट) को भुनाने में लगी हुई है. 
Image result for nrcजगह-जगह जनांदोलन उग्र रूप लेता जा रहा है. हठधर्मिता दोनों तरफ हाबी है जनता लागू नहीं होने देने के पक्ष में है और सरकार लागू करने के पक्ष में है. लोक प्रशासन जिसकी लाठी उसकी भैंस होकर रह गयी है. खूब लाठी-डंडे, आंसू गैस के गोले बरसाए जा रहे हैं. मेरे इस आर्टिकल लिखे जाने तक १७ लोग इस आन्दोलन की भेंट चढ़ चुके हैं. उपद्रवी अपने आस-पास के लोगों को आन्दोलन की आंड़ लेकर क्षति पहुंचा रहे हैं दुकान, कार, टैम्पों खिडकियों-दरवाजे के शीशे तोड़े जा रहे हैं. पुलिस के भेष में उपद्रवी हेलमेट लगाये लाठी-डंडों से लैस अपने आकाओं के सह पर शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को भड़काने का काम कर रहें हैं. लखनऊ में एक प्रदर्शनकारी के मरने पर जब उसका पोस्टमार्टम रिपोर्ट आता है तो उसमें 32 बोर की गोली मिलती है, इस तरह के कारतूश का प्रयोग उत्तर प्रदेश की पुलिस तो करती नहीं है तब यह गोली चलने वाला कौन था? शांतिपूर्ण प्रदर्शन जहाँ गुलाब के फूल लिए लोगों पर लाठियां भांजती पुलिस, Image result for kapil mishraकपिल मिश्रा के NRC और CAA समर्थक प्रदर्शन का स्वागत करती है जहाँ जोर-शोर से नारा लगाया जा रहा है, “देश के गद्दारों को गोली मारों शालों को” इसका उल्लेख करना यहाँ इसलिए आवश्यक बन पड़ता है कि प्रसाशन भी धर्म के नशे में चूर है. अगर ऐसा नहीं था तो क्या हुआ उन भारतीय दंड संहिता के धाराओं का, धारा 153 A- धर्म, जाति समुदाय के आधार पर शत्रुता भड़काने की कोशिश, धारा 295-लोगों में खौफ़ पैदा करना,  धारा 295A शांति भंग करना. और धारा 144. पुलिस क्यों मूक दर्शक बनी हुई थी इस भड़काऊ नारे के साथ दौड़ लगाती भीड़ पर. कहीं-कहीं पर सोशल मिडिया पर वायरल होती वीडियो में पुलिसकर्मी सरकारी सम्पतियों को तोड़-भोड़ रहे हैं, पेट्रोल डाल कर आग लगा रहे है. इसकी क्या जरुरत है पुलिसकर्मी ऐसा करने के लिए क्यों मजबूर हैं. उन्हें ऐसा करते हुए उनका ज़मीर उन्हें क्यों नहीं ललकारता, प्रशासन का भय क्यों नहीं है? या पुलिस पर उपरी आदेश है.
Image result for nrc ramchandra guhaनागरिकता संसोधन बिल के प्रोटेस्ट में जो नेता-अभिनेता, लेखक आ रहा है उसको प्रसाशन महत्त्व नहीं दे रहा है. विश्व प्रसिद्द इतिहासकार रामचंद्र गुहा केवल तख्ती लिए खड़े थे उनकी गिरफ़्तारी चर्चा का विषय बनी हुई है. सुशान्त सिंह सावधान इंडिया एपिसोड से इसलिए बाहर कर दिए जाते हैं कि वह इस बिल का समर्थन नहीं करते है. कंगना रानौत फ़िल्मी जगत पर तंज कसती हैं कि शीशे के सामने घंटो बस रूप निहारने में व्यस्त हैं देश के भूत-भविष्य से उनका कोई मतलब ही नहीं है.
पिछले तीन-चार दिनों से दैनिक जन-जीवन अस्त-व्यस्त है. स्कूल-कालेज और विश्वविद्यालय में  एक-एक दिन करके अघोषित छुट्टियों में साल के बचे-खुचे दिन बीते जा रहे हैं. सेमेस्टर परीक्षाओं का सेड्युल बिगड़ा जा रहा है. छात्रों पर देशद्रोही होने का आरोप लगाया जा रहा है. जो जहाँ मिल रहा है वहां दौड़ा-दौड़ा कर पीटा जा रहा है. एक वीडियो में साफ देखने को मिल रहा है की घर के अंदर से खींच कर पुलिस कुछ व्यक्तियों को वेतहाशा मारे जा रही है.
आखिर क्या खास है इसमें जिसको लागू करने के लिए सरकार पूरे मनोयोग से पिल पड़ी है. विद्वान वर्ग सरकार से सवाल करता है कि इस समय क्या जरुरत थी इस बिल की? यही सवाल अंजना ओम कश्यप के द्वारा इंटरव्यू में दिल्ली के मुख्यमंत्री कजरीवाल भी करते है. जिम्मेदारों को उत्तर देते न सूझता है, बस एक ही रट लगाये हैं चाहे जो भी कुछ हो जाये लागू करके रहेंगे. भारत लोकतान्त्रिक देश है अंग्रेजों का गुलाम नहीं जहाँ दमनकारी नीतियों का पालन किया जा रहा है. केंद्र और राज्य सरकारों ने देशद्रोह की परिभाषा को ही बदल कर रख दिया है उसकी नजर में सरकर की आलोचना करना ही देशद्रोह है. लोकतांत्रिक देश में पूर्ण बहुमत की सरकार ही उसका दुर्भाग्य है. विपक्ष का दबाब होता तो सत्ता के नशे में चूर सरकार पर अंकुश बना रहता. यह बिल इसलिए भी बुरा है क्योंकि वर्तमान परिवेश में इसका स्वरुप धार्मिक हो गया है संविधान की अंतरात्मा पर सवाल खड़ा करता है. भारतीय संविधान सभी धर्मों का सम्मान करता है परिणामतः यह धर्मनिरपेक्ष है अतः किस आधार पर अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान करेगा. तथा उनको इस बिल के दायरे में लायेगा.
नागरिक संसोधन बिल पर बस इतना ही कहा जा सकता है कि इसका भी वही हर्ष होगा जो नोटबंदी, कालाधन, हर साल दो करोड़ रोजगार आदि का हुआ है. केंद्र सरकार अपने साढ़े पांच साल की शासन की असफलताओं को छिपाने के लिए देश के आम नागरिकों की भावनओं से खेल रही है. राहत इन्दौरी की रचना का उल्लेख किये बिना नहीं रह पाउँगा-
सरहदों पर बहुत तनाव है क्या?
कुछ पता करो चुनाव है क्या?
खौफ़ बिखरा है दोनों सम्तों में,
तीसरी सम्त का दबाव है क्या?
यह पंक्तिया अपने में बहुत कुछ संजोये हुए है. पूरी राजनीतिक परिद्रश्य का निचोड़ है. देश में जहाँ कहीं चुनाव होता है. कुछ न कुछ जरुर भुनाया जाने लगता है. बस अब देखना यह है की राजनीति के धुरंधर अपने को सत्ता में बनाये रखने के लिए देश को किस हद तक ले जाते है.
इन्कलाब जिंदाबाद              जय जन                जय भारत
-अखिलेश कुमार ‘अरुण’

Saturday, September 07, 2019

भारतीय सेना में जातिवाद और भ्रष्टाचार

-अखिलेश कुमार 'अरुण'


army के लिए इमेज परिणामभारतीय सेना में आये दिन सेना के जवान अब एक-एक करके न्याय के लिये विडियो वायरल करते जा रहे हैं, ये उनका पेषा नहीं है जब वे हद से ज्यादा परेषान हो जाते हैं तब ऐसा करते हैं। उनके में सेना के प्रति मान-सम्मान प्रेम और त्याग है। सेना की आन्तरिक गतिविधियों को सरकार और देष की जनता के सामने नहीं लाना चाहता क्योंकि उसे भय है भारतीय सेना की इज्जत और मान-सम्मान पर आँच आने का, इस प्रकार की शंका विडियो वायरल करने से पहले जवान जाहिर कर रहा है।
सेना की आन्तरिक गतिविधियों के चलते जवान इतना पीड़ित हो जाता है कि उसका हिम्मत जवाब दे जाता है। न्याय पाने के लिये वह किस कदर आँसू बहाता है यह तो आप सेना के जवान तेज बहादुर यादव और कमलेष कुमार जाधव गोकुल के वायरल विडियो को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं। दोनों की समस्याओं में समानता है। एक सैनिकों के खाने को लेकर तो दूसरा छूआ-छूत, अपने जैसे और न जाने कितने सैनिको के साथ हो रहे भेद-भाव को लेकर, इसमें दोनों सैनिक अपनी समस्याओं से पीड़ित नहीं हैं बल्कि अपने जैसे न जाने कितने सैनिकों की समस्याओं को लेकर पीड़ित हैं। सैनिकों का मुख्य कत्र्तव्य देष की रक्षा करना है, उनका न कोई अपना धर्म-मजहब, समाज़, जाति होता है, जिस दिन वे सेना को ज्वाईनकर लेते हैं उसी दिन से उनका सब कुछ सेना ही हो जाता है, यहाँ तक कि परिवार भी और अपना सर्वस्व सेना के कृत्र्तव्यों का निर्वहन करते हुये, प्राणें की बाजी लगाकर देष के नाम कुर्बान कर देते हैं। लेकिन वे देष की रक्षा क्या करेगें जो खुद ही पीड़ित हों। किसी ने खूब लिखा है-
भूखे पेट भजन न होई गोपाला।
यह लेओ आपन कण्ठी-माला।।
army के लिए इमेज परिणाम
वास्तव में दोनों ही सैनिक भूखे हैं एक गुणवत्ता परक भोजन का और दूसरा अपने मान-सम्मान का, सैनिको में देष सुरक्षा की भावना के लिये इन दोनों का होना अति आवष्यक है। जहाँ अच्छा भोजन उन्हें पौरुषत्व देता है वहीं प्रेम से बोले गये दो शब्द जातिवाद से ऊपर मानवीयता का व्यवहार मानसिक रुप से शक्ति प्रदान करता है। कमलेष कुमार जैसे जवान देष की सेवा क्या खाक करेगें जिस देष के लोग उसे नीच जाति का समझते हों, सवर्ण सैनिक अधिकारी उसे जाति के नाम पर दुत्कारते हों किन्तु इतना सब होने के बाद भी वह सैनकि रो रो कर नयाय इसलिये मांग रहा हे कि वह देष की सेवा कर सके।एक जगह यह सैनिक अपने मान-सम्मान पर सवाल करते हुये दिख रहा है कि मुझे दुष्मन की गोली लगने का उतना दुःख नहीं होगा जितना कि इस समय जातिवाद के नाम पर अपतानित होने का दुःख है।
बीते कुछ दिन पूर्व सोषल साईट पर 26 राष्ट्रीय रायफल, अल्फा कम्पनी कुमाऊँ रेजीमेन्ट, जम्म्ूा एण्ड काष्मीर में तैनात एक जवान कमलेष कुमार जाधव गोकुल भाई, जूनागढ़ सोमनाथ गुजरात का निवासी है। इस जवान ने दो विडियो वायरल किये हैं एक-एक दिन के अन्तराल पर तथा भविष्य में विडियो न वायरल करने की भी बात कह रहा है। जवान के द्वारा विडियो वायरल किये जाने का मुख्य कारण डायनिंग हाल में खाना खाने को लेकर किया गया, जहाँ जवान को सबके साथ खाना इसलिये खाने से मना कर दिया जाता है कि वह अछूत जाति का शूद्र है, अपने साथ हुई घटना को लेकर अपने उच्च अधिकरी (शायद कोई शाहू जी हैं) के पास जाता है वह भी लताड़ कर इसलिए भगा देता है कि जवान अछूत है और उसके आने से महोदय का  निवास स्थान अपवित्र हो जाता है फिर खेल शुरु होता है मानसिक रुप से प्रताड़ित किये जाने का, भूखे-प्यासे रहकर जवान अपने ऊपर हो रहे जुल्मों को दो दिन तक सहन करता है। न्याय न मिल पाने की आष में सोषल साईट का सहारा लेता है औररो रो कर अपनी व्यथा माननीय प्रधनमंत्री मोदी जी को संबोधित करते हुये न्याय की गुहार सुश्री बहन कु0 मायावती जी से भी लगाता है। यह जातिवाद, छूआ-छूत का खेल आखिर कब तक चलता रहेगा। यह सवाल है सरकार से एक तरफ जहाँ वंचितों का मत पाने के लिये शूद्र राष्ट्रपति को चुनाव मैदान में उतारा जाता है वहीं आये दिन सरकारी विभागों, स्कूल-कालेजों, भरतीय सेंनाओं में छूआ-छूत का खेल अपने चरम पर है। यह अपने 21 वीं सदी का भारत मानवता का चादर कब ओढ़ेगा।
army food के लिए इमेज परिणामसैनिकों के साथ भेद-भाव होने की यह कोई पहला घटना नहीं है और न ही खराब खना मिलने की घटना केवलतेज बहादुर यादव सैनिक के साथ हुई थी। इस प्रकार की घटनायें सैनिकों के साथ आये दिन होती रहती हैं। कुछ सैनिक सेना की रूल एण्ड रेगुलेषन, उच्चाधिकारियों के दबाब, नोकरी जाने के डर से मुँह नहीं खोल पाते हैं। जैसे-तैसे अपनी नौकरी काल का निर्वहन करते रहते हैं और एक दिन पदमुक्त हो जाते हैं, बात जहाँ की तहाँ दब जाती है। इस लेख को लिखने का कारण केवल कमलेष कुमार जाधव का विडियो ही मेरे लिये एक मुख्य स्रोत नहीं है। मेरा भी एक मि़त्र एसएसबी का जवान है जो आये दिन प्रताड़ित किये जाने पर मुझसे अपनी बात रखता है। इस स्थिति में भारतीय आर्मी के जवान किस तन-मन के साथ देष की रक्षा करेगें।
सेना के उच्चाघिकारी अपने को किसी राजा से कम नहीं आंकते हैं। उनकी अपनी शानो-सौकत की बात ही निराली है। उनके खाने-पीने की व्यवस्था भी सामान्य सैनिकों से भिन्न होती है जिसकी मांग सिपाही.....एक मेस एक खाना की कर चुका है कि पता तो चले कि उनके खाने में और सैनिकों के खाने में कितनी समानता है। मेरे मत से यह माँग जायज भी तभी तो खाने की गुणवत्ता में सुधार आयेगा और सैनिकों के भोजन में भ्रष्टाचार के खेल पर पाबंदी लगाई जा सकेगी।
सैनिकों में जातिवाद के आधार पर उनके हौसले, जज्बा को प्राथमिकता दी जाती है, तो यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है अपने भारतीय सैन्य का, पहली बार अंग्रेज दबे-कुचले वंचितों की ताकत को पहचाना था। जिसने अपने सैन्य व्यवस्था और सरकारी तन्त्र में इनको शामिल किया और सैनिक ताकत और योग्यता के बल पर 200 सौ सालों तक भारत में राज किया। यही ताकत अगर भारतीय राज-रजवाड़े पहले पहचान गये होते तो देष कभी गुलाम ही नहीं हुआ होता। वीरता की कहानी इनकी भी लिखी जाती किन्तु दुर्भाग्य इनके सारे सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक अधिकारों पर पाबंदी लगा दी गयी थी जिसके कारण नेतृत्व के आभाव में कुर्बानी देते रहे और गुमनाम वीरों की श्रेंणी में शहीद होते रहे।
देष के आजाद होने के बाद भारतीय संविधान में इस आषय के नीति नियमों को उपबन्धित किया गया कि भारत में निवास करने वाले सभी जन विना भेद-भाव, छूआ-छूत, ऊँच-नीच के समान रुप से देष के विकास में सहयोग दे सकें यथा-
अनु0 15(2)-धर्म, मूलवंष, जाति, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर किसी नागरिक को विभेद का प्रतिषेध जोचार्टर एक्ट 1833 के सरकारी आदेष का मूलअंष है।
अनु0 16 लोकनियोजन के विषय में समान अवसर की समानता।
अनु0 17- अस्पृष्यता का अन्त।
उपरोक्त उपबन्धित भारतीय संविधान में अनुच्छेद सैनिको के सन्दर्भ में या अन्य जो भी इस प्रकार की घटनाओं के षिकार होते हैं उनके लिये यह एक मजाक बन कर रह गया है। अगर प्रताड़ना का यह क्रम निरन्तर यूँ ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब सैनिक देष की रक्षा के लिये हथियार बाद में पहले अपने मान-सम्मान, आस्तित्व के लिये उठायेगा।

पढ़िये आज की रचना

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