साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Monday, August 17, 2020

सरकार की लापरवाही ताली-थाली,दिया-बाती के नाम

-अखिलेश कुमार अरुण

देश की 130 करोड़ जनता कई समस्याओं को एक साथ झेल रही है. एक के बाद एक समस्याओं का तारतम्यता जैसे टूटने का नाम ही नहीं ले रहा है. केंद्र की सरकार ने एक के बाद एक बोझ जनता के सर पर डालती गयी और हम हँसते हुए इस आस में उन सबका सामना करते गए कि अब कुछ अच्छा होगा किन्तु हाथ निराशा ही लगा. कुछ नाम गिनाया जा सकता है जो केंद्र सरकार के द्वारा लाया गया जिसका नतीजा जीरो रहा-नोटबंदी, जीएसटी, तीन तलाक, एनपीआर और भी बहुत कुछ. अब मौका था मोदी जी को जनता के लिए कुछ करने Food supply is being done in the name of home quarantineको जिसे प्रकृति ने एक विकट समस्या के रूप में सम्पूर्ण विश्व को भेंट किया. जिसमे हमारा देश भी मार्च के अंतिम महीने में सामिल हो गया. जिसमें विश्व के 195 देश प्रभावित हो रहे हैं, और अधिक प्रभावित होने की संभावना है. विश्व के अनेक देशों ने अपनी क्षमता के अनुसार उससे लड़ने की जुगत में रात-दिन एक किये हुए हैं किन्तु अभी भी असफल हैं. जिसमे प्रमुख रूप से चीन, अमेरिका, इंगलैंड, इटली आदि देश आते हैं. जहाँ रोज आज भी एक बड़ी जनसँख्या कोरोना रूपी काल के गाल में समाती जा रही है. इस वैश्विक महामारी ने सम्पूर्ण मानव जाति के आस्तित्व पर एक प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है. चिकित्सकीय जगत कोमा में जा चुका है वैज्ञानिकों के हाँथ-पांव सुन्न हो गए हैं.


    

हमारे देश में छुआछूत की यह संक्रमित बीमारी मार्च महीने के तीसरे सप्ताह में प्रवेश की है. विश्व में इसका उद्भव चीन के वुहांग शहर में दिसंबर २०१९ में हुआ, पूरा तीन महीने का समय था इससे बचने की तैयारी हम वैकल्पिक रूप से ही कर सकते थे. देश की सीमाओं को प्रतिबंधित कर देश में आने-जाने वाले संदिग्ध कोरोना संक्रमित व्यक्तिओं को आईसोलेट कर उनका ईलाज करते.....छोड़िये अब इस पर ज्यादा चर्चा नहीं करेंगे. चूक हो गई संक्रमण देश में फ़ैल गया तो अब उससे बचाव के लिए हमें अपने देश में चिकत्सकीय क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन कर स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करना था किन्तु यहाँ भी चूक गए और इससे बचाव की जिम्मेदारी हमारे प्रधानमंत्री जी जनता के ऊपर डाल दिए. जनता पुरे मनोयोग से सरकार के सहयोग में आ खड़ी हुई. प्रधानमंत्री राहतकोष में देखते ही देखते करोड़ों की सम्पति जमा कर दी गयी कि सरकार इस विपदा से देश की जनता को बचाने लिए हर संभव प्रयास करे. देश के जिम्मेदारानों ने स्वास्थ्य, राहत आदि के नाम पर  केवल खोखले भाषणबाज़ी के अतिरिक्त और कुछ नहीं किया.

२२ मार्च को प्रधानमंत्री जी ने 12 घंटे की जनता कर्फ्यू का आवाहन किया, स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सम्पूर्ण लॉकडाउन का ऐलान कर दिया गया. यह भी आधी-अधूरी तैयारी के भेंट चढ़ गया 80,000 से 1,00,000 के आस-पास जनता रोड पर आ गई दिल्ली का राष्ट्रीय राजमार्ग देखते ही देखते विशाल कुम्भमेले का रूप धारण कर लिया. उस भीड़ में गर्भवती महिलाएं, दुधमुहे गोदी के बच्चे और पैदल चलते 10-12 साल के बच्चे भी सफर पर थे भूख-प्यास से बिलबिलाते जिनके हालात को देख लो तो आसूं छलछला जाते थे संवाददाता न्यूज कवर करते हुए आखों को कैमरे से चुरा लेता था. लेकिन सरकार का दिल पसीजने को तैयार नहीं था. रामबदन कोतवा निवासी लखीमपुर दिल्ली में रहकर ठेकेदार के ठेके में राजमिस्त्री का काम करते थे लॉक-डाउन के चलते कम बंद हुआ. परिवार सहित भूखों मरने से बेहतर पैदल सफ़र करना स्वीकार किया जिसमें २० से २५ लोगों की टोली थी जो 10 दिन में अपने घर पहुंचे, जिसमें पैदल और ट्रक से यात्रा किये थे उनके पैर फूलकर मोटे हो गए थे, पैरों में छाले भी पड़ गए थे. कितना कष्टकारी रहा यह करोना यह तो वही जानें. एक ५० साल का दिव्यांग हाथ में झोला सर पर गठरी लिए गाजियाबाद से पैदल चलकर कुबेरपुर पहुंचे जहाँ उन्हें कानपुर के लिए बस मिली, गुड्डू हमारे गाँव का ही लड़का नॉएडा से पैदल चला घर के लिए लगभग ४०-५० किलोमीटर दुरी तय करने के बाद उसे एक ट्रक शाहजहाँपुर के लिए मिला, बड़ी जद्दोजेहद और मशक्कत के बाद घर पहुंचा.

अन्धविश्वास और धर्म की भेंट चढ़ा कोरोना

कोरोना से जंग जितने के मामले में विज्ञान पिछड़ गया धर्म के मुक़ाबले, धर्म की दुकाने बंद हो गईं, मंदिरों में ताले जड़ दिए गए फिर भी धार्मिक पोंगा-पंडितों ने मोदी जी के फैसलों का खुलकर समर्थन किया. वह इसलिए नहीं कि मोदी जी ने कहा है बल्कि वह धर्म का मामला बन गया, प्रधानमन्त्री जी देवतुल्य हो गये उनकी हरेक बात देववाणी हो गई. उन्होंने कहा ताली-थाली बजाकCorona Mai: कोरोना बनी 'माई', नदी किनारे ...र स्वास्थ्य कर्मियों और उन जाम्बंजो का समर्थन करें जो कोरोना से बचाने के लिए दिन-रात एक कर जनता की सेवा कर रहे हैं. यहाँ धर्म के ज्योतिषियों ने इसका तर्क दिया कि मेरे हिसाब से प्रधानमंत्री ने बहुत सोच समझ कर ताली या थाली बजाने को कहा है। इससे जो शोर पैदा होगा, उसे ही भारतीय शास्त्रों में नाद कहा गया है। उनके हिसाब से इस नाद से तमाम बुरी शक्तियों को पराजित करने की मिसालें रही हैं। इस नाद से जो कंपन पैदा होता है उससे वायरस को आसानी से मारा जा सकता है। अंक ज्योतिष ने 22 मार्च की तारीख का महत्व समझाया। उसके हिसाब से 22 का मतलब चार का अंक होता है, जो राहु का अंक होता है। पांच बजे का समय इसलिए क्योंकि उस समय राहु काल शुरू होगा। इसलिए इस समय शोर या नाद पैदा करके राहु के असर को खत्म किया जाना है। ज्योतिष का कहना है कि रविवार को चंद्रमा एक नए नक्षत्र रेवती में जा रहा है और उस दिन जोर से ताली और थाली बजाने से जो तरंग पैदा होगी, उससे लोगों के शरीर में रक्त का संचार तेज हो जाएगा। यह भी कहा जा रहा है कि उस दिन अमावस्या है और उस दिन अगर जोर से शोर पैदा किया गया तो वायरस अपनी सारी ताकत खो देगा। ज्योतिष महोदय ने इसे एनर्जी मेडिसिनका नाम दिया है। एक समर्थक ने लॉ ऑफ अट्रैक्शन की थ्योरी के जरिए समझाया कि पांच बजे ताली और थाली बजाने से प्राणाकर्षण पैदा होगा, जिससे कोरोना वायरस से लड़ने वालों को संबल मिलेगा।

3 अप्रैल को राष्ट्र के नाम उद्बोधन में मोदी जी ने एक और बड़ा ऐलान कर दिया कि 5 अप्रैल को 9 बजे 9 मिनट घर की सभी लाईटें बंद कर दिया, मोमबत्ती, टार्च और मोबाइल की फ्लैस लाईट जलाकर हमारे जीवन को सुरक्षित रखने में जो सहयोग कर रहे हैं तथा उन सभी संघर्षरत लोगों को एक सन्देश देना है कि इस विपत्ति के समय में कोई अकेला नहीं है. इसका भी धार्मिक व्याख्यान तैयार था जिसे प्रज्ञा जागरण संसथान के संस्थाक हरिकोरोना वायरस: जनता कर्फ्यू के बीच ... प्रकाश श्रीवास्तव ने अपने फेसबुक टाइमलाइन पर जगह दिया. जिसमे ज्योतिष चिन्तक ने अपने चिन्तन में पांच अप्रैल के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए व्याख्यित करता है कि  5 अप्रैल को 9 बजे, 9 मिनट तक, दीपक वाले मोदी जी के भाषण में तारीख 5 ही क्यों चुनी? रविवार ही क्यों चुना? 9 बजे का वक्त ही क्यों चुना?, 9 मिनट का समय ही क्यों चुना? जब पूरा लॉकडाउन ही है तो शनिवार, शुक्रवार या सोमवार कोई भी चुनते क्या फर्क पड़ता? आगे लिखते हैं कि जिनको अंकशास्त्र की थोड़ी भी जानकारी होगी, उनको पता होगा कि  5 अंक बुध का होता है. यह  बीमारी गले, फेफड़े  में ही ज्यादा फैलती है, मुख गले फेफड़े का कारक भी बुध ही होता है, बुध राजकुमार भी है। रविवार सूर्य का होता है। सूर्य ठहरे राजा साहब  दीपक या प्रकाश भी सूर्य का ही प्रतीक है 9 अंक होता है मंगल का जो सेनापति है.  रात या अंधकार होता है शनि का...अब रविवार 5 अप्रैल को, जोकि पूर्णिमा के नजदीक है, मतलब चन्द्र यानी रानी भी मजबूत... सभी प्रकाश बंद करके, रात के 9 बजे, 9 मिनट तक टॉर्च, दीपक, फ़्लैश-लाइट आदि से प्रकाश करना है। चौघड़िया अमृत रहेगी, होरा भी उस वक्त सूर्य का होगा.... शनि के काल में सूर्य को जगाने के प्रयास के तौर पर देखा जा सकता है.. 9-9 करके सूर्य के साथ मंगल को भी जागृत करने का प्रयास मतलब शनि राहु रूपी अंधकार (महामारी) को उसी के शासनकाल में बुध सूर्य चन्द्र और मंगल मिलकर हराने का संकल्प लेंगे। जब किसी भी राज्य के राजा, रानी, राजकुमार व सेनापति सुरक्षित व सशक्त हैं, तो राज्य का भला कौन अनिष्ट कर सकता है.

 

सरकार की जवाबदेही

सरकार और धर्म के पोंगा पंडित दोने एक दुसरे के पूरक हो गए हैं. जो मोदी जी कहते हैं उसको जनमानस तक पहुचने का कार्य धर्म के ढेकेदार कर रहे हैं. सरकार अपने उत्तरदायित्वों से भटक रही है. कोरोना से जंग में तैनात स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस, सैन्य-बल, सफाईकर्मीCoronavirus: राहू ने फैलाया संक्रमणयुक्त ... आदि जो दिन-रत एक  कर अपने कार्य का मुश्तैदी से निर्वहन कर रहे हैं उनको अब तक क्या सुविधाएँ दी गई हैं. अभावों से जूझते हुए स्वास्थ्यकर्मी चिकित्साकार्य में लगे हुए हैं आये दिन नर्स और डॉक्टर सोशल मिडिया का सहारा लेकर वीडियो वायरल करते हैं कि डाक्टर नहीं हैं, मास्क नहीं है, दवाएं, टेस्टिंग किट आदि की अनुपलब्धता है ऐसे में लोगों का उचित ईलाज कैसे संभव है. रणघोष अपडेट देशभर से अपने 4 अप्रैल के समाचार में लिखता है कि ४० फीसदी डॉक्टर –नर्स अधूरी तैयारी से परेशान, संक्रमण से बढ़ा ख़तरा. इटली -8379, साऊथ कोरिया-7710, स्पेन-7596, अमेरिका-3078, यु०के०-2156 चीन-230 आदि देशों के द्वारा कोरोना संदिग्ध लोगों की जाँच प्रत्येक दिन हो रहा है वहीं भारत-32 संदिग्ध संक्रमित लोगों का जाचं कर पा रहा (स्रोत-government health department, media report) है जो विश्व जनसँख्या की दृष्टि से दुसरे स्थान पर आता है. वेंटीलेटर की सुविधाओं में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई, अस्पताल खस्ताहाल में हैं. 24 मार्च को राहुल गाँधी एक डाक्टर का टयूट शेयर करते हैं, “जब वे (प्रधानमंत्री जी ) आयें तो कृपया N95 मास्क और दास्ताने मेरी कब्र पर पहुंचा देना.” ऐसा ही एक और वीडियो बलरामपुर हास्पिटल की एक नर्स ने शेयर किया जिसमे उसने मास्क, दास्ताने और दवाओं के न होने की बात कर रही थी. खबर ndtv डॉट काम के हवाले से एक न्यूज प्रकाशित होती है कि प्रियंका गाँधी एक विडिओ शेयर करती हैं जिसमे उप्र मेडिकल स्टाफ़ का आरोप है कि मास्क सेनिटैजेर मांगने पर हाँथ-पैर तुड़वाने की धमकी दी गयी है. AIIMS के डॉक्टर ने कहा कोरोना वायरस से जंग में PPE की कमी के चलते डॉक्टर कोरोनावायरस से संक्रमित हो रहे हैं अतः प्रधानमन्त्री जी मेरे मन की बात सुने.कोरोना से जंग में उपकरणों की कमी, ४१० कलेक्टरों आइएएस अफसरों के फ़ीडबैक खुलासा करते हुए लिखा गया है की २२ प्रतिशत जमीनी स्तर पर तैयारी से असहमत हैं, ५९ प्रतिशत बीएड की कमी, ७१ फीसदी वेंटिलेटर की कमी और ७० प्रतिशत अधिकारी मानते हैं कि पीपीई व दस्ताने कम हैं , यह तो एक झलक मात्र है, और भी बहुत सी चिकित्सक,चिकित्सालय, जाँच उपकरण, सुरक्षा किट आदि को लेकर समाचार देश की जनता के सामने निकल कर आये जिन्हें मोदी मिडिया ने अपने पन्ने पर स्थान नहीं दिया. निर्भीक पत्रकार, पत्र-पत्रिकाओं और सोशल मीडिया ने कुछ ख़बरों को जिन्दा रखा जो देश के चिकित्सा जगत की वास्तविक सच्चाई को उजागर करते हैं.

क्वारेंटाईन ग्रामीण और उनकी समस्याएं

दिहाड़ी-मजदूर रोज कमाने-खाने वाले, सुबह निकलते हैं तो शाम का चूल्हा जलता है, अपने परिवार का पेट पालने के लिए उत्तर-प्रदेश, बिहार के ज्यातादर लोग दिल्ली,महाराष्ट्र, गुजरात, केरल और कर्नाटक में ठेके में, फैक्ट्रियों में, दिहाड़ी-मजदूर हैं, शाक-भाजी,फल-फूल का दुकान किये हुए हैं रोज की कमाई उनके जीविका का आधार है. यकायक तुCOVID-19: राजस्‍थान में जानवरों के बाड़े ...गलकी फरमान जारी करते हुए २२ मार्च से लॉक-डाउन का आदेश घोषित कर दिया गया, निम्नवर्गीय जो जहाँ थे वहीँ फंस गए, न राशन था न पानी था जेब में एक फूटी धेली भी न थी, महानगरों में इन्हें भूखों मरने की नौबत आ गयी, घर जाने के सारे साधन बंद कर दिए गए. इस विकट परिस्थिति में किसी ने हिम्मत किया और चल दिया अपने घर को ५०० से १००० किलोमीटर के पथ पर देखते ही देखते हजारों-लाखों की भीड़ नॅशनल हाईवे २४ पर आ चुकी थी. उनके लिए भूखों मरने से अच्छा था कोरोना से मर जाना और ख़ुशी थी घर पर पहुँचने की उसकी समस्याएं यहाँ भी कम न हुईं पुलिसिया रौब हाबी हुआ जानवरों की तरह उनपर लाठी बरसाए गए. सरकार ने क्या किया? केवल दावे, दिलासा दिलाया कोरोना से बचाव के नाम पर कीटनाशक का छिड़काव किया, न कोई जाँच न दवा जब सरकार की किरकिरी होने लगी तो आनन्-फानन में बसों का इंतजाम करवाया वहां भी कहीं-कहीं दुगुने से ज्यादा किराये वसूले जाने की घटनाये हुईं. दिहाड़ी-मजदूर जो देश के भिन्न-भिन्न राज्यों से चलकर यातनाओं को झेलते हुए अपने घर पहुंचें हैं इस आश में कि घर पर सुकून से रहेंगे उन्हें केंद्र और प्रदेश सरकार ने १४ दिन के लिए गावं के सरकारी विद्यालयों में बंद करवा दिया कि संक्रमण का खतरा गावं में न फैले यह निर्णय सही था क्योंकि हम चिकित्सा के क्षेत्र में विश्व के अन्य देशों से काफी पीछे हैं यह गावं में फ़ैल गया तो रोक पाना मुश्किल होगा. अमेरिका, इटली, चीन जैसे देश अपने देश हजारों-लाखों लोगों को खो चुके हैं. किन्तु यह निर्णय भी देर से लिया गया मेरे अपने गावं में जो लोग बहार से आये हुए थे वह अपने परिवार में कोई तीन या चार दिन गुज़ार चुकें हैं उसके बाद उन्हें सरकारी स्कूल में बंद किया गया है जहाँ उनकी संख्या २२ है. सभी को एक-एक मीटर की दूरी पर सोने के लिए बिस्तर लगा दिया गया है. दिन में सभी एक दुसरे के साथ उठते-बैठते खाते-पीते हैं. आधी-अधूरी तैयारी के साथ कोरोना से बचाव के नियमों का पालन किया जा रहा है. सरकार के तरफ से उनके खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं है अतः उनके परिवार के लोग सुबह-शाम और दोपहर का नास्ता, खाना-पानी पहुँचा रहे हैं. यह सरकार का कौन सा नियम है समझ में नहीं आ रहा इस प्रकार से इस संक्रमण को रोका जा सकता है क्या? बैगैर खाद्य-सामग्री और सुविधाओं के १४ दिन व्यक्ति कैसे रह सकेगा? उसके परिवार के लोग ही उन्हें खाना-पानी पहुचाएंगे तो जिन बर्तनों का प्रयोग बंदी व्यक्ति कर रहा है अगर वह संक्रमित हुआ तो क्या उसका परिवार संक्रमित नहीं होगा? उत्तर-प्रदेश के लगभग सभी ग्राम-पंचायतों की यही कहानी है. जो प्रधान है वह रसूखदार है, जयादातर अगड़ी जाति के प्रधान हैं, पहुँच वाले हैं वे इसकी आंड में पूरी मनमानी कर रहे हैं. जातिवादी ताना-बाना बुन रहे हैं, जो रसूखदार हैं वे खुलेआम घूम रहे हैं गरीब असहाय विचारा पुरातन धर्म व्यवस्था का शिकार होकर रह गया है.

उपरोक्त समस्यायों की पूरी की पूरी जबाबदेही सरकर की है. सरकार ने इन सबके लिए अब तक क्या किकोरोना लॉकडाउन: ग़रीब और कमज़ोर तबके ...या है? इसका जबाब उसके पास नहीं है उल्टे आम जनता को हिन्दू-मुस्लिम मुद्दे में, धर्म-कर्म, अन्धविश्वास, आदि में उलझा कर अपने उत्तरदायित्व से कन्नी काट रही है. इस विषम परिस्थिति में सरकार का यही रवैया रहा तो वह दिन दूर नहीं जिसको इटली,अमेरिका,चीन ने झेला है भारत उससे भी बुरे और भयंकर परिणाम को झेलेने के लिए तैयार रहे.

-इति-

 

सन्दर्भ सूची

1.     दैनिक जागरण आगरा लखनऊ 31 मार्च

2.     जनसत्ता 4 अप्रैल

3.     अपने गाँव, जिले के पीड़ित यात्रियों का अनुभव व क्वारेंटाईन ग्रामीण.

4.      खबर ndtv डॉट काम

5.     मिडिया रिपोर्ट गवर्नमेंट हेल्थ डिपार्टमेंट

6.     रणघोष अपडेट

7.     हिंदुस्तान समाचार पत्र दिल्ली से प्रकाशित. 5 या 4 अप्रैल

No comments:

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

सबसे ज्यादा जो पढ़े गये, आप भी पढ़ें.