साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, April 14, 2023

बाबा साहब के सपनों का भारत और हम, हमारा उत्तरदायित्व-अखिलेश कुमार ’अरूण’

 

   जयन्ती विशेष   

आज हम बाबा साहब की 132 वीं जयंती मनाने जा रहे हैं। उनकी पहली जयंती और आज की जयंती में काफी अंतर देखने को मिलता है। आज से कुछ वर्ष पहले बाबा साहब की जयंती को मनाने वाला उनका अपना समाज था किन्तु आज सर्वसमाज उनकी जयंती को मनाता है, वर्तमान परिदृश्य में बाबा साहब का राजनीतिक ध्रुवीयकरण कर दिया गया है जो वोट बैंक में तब्दील हो चुके हैं। उनके सिद्धांत, शिक्षा, उपदेश सब राजनीति के आगे धूमिल होते जा रहें हैं। बाबा साहब को एक वर्ग विशेष से सम्बन्धित नहीं किया जाना चाहिए, उनको सभी मानें और मनाऐं क्योंकि उन्होंने भारत जैसे विशाल विभिन्नताओं वाले देश का संविधान लिखने में महती भूमिका निभाई है। इसलिए प्रत्येक भारतवाशी उनका कर्जदार है परन्तु यह कहाँ शोभा देता है कि जयंती बाबा साहब की मनाये और उन्ही के सिध्दान्तों, शिक्षाओं आदि को ताक़ पर रख दिया जाए।

 

बाबा साहब डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर सामाजिक रूप से अत्यन्त निम्न समझे जाने वाले वर्ग में जन्म लेकर भी जो ऊँचाई उन्होने प्राप्त की यह बात हम सबके लिये अत्यन्त प्रेरणादायी है। जो कार्य भगवान बुध्द ने 2500 वर्ष पूर्व शुरू किया था जिसके कर्णधार रहे संत रैदास, कबीर, ज्योतिबा फुले आदि, वही कार्य बड़ी लगन ईमानदारी व कड़ी मेहनत और विरोधियों का सामना करते हुये बाबा साहब दलित-अतिदलित,महिला-पुरूषों के लिये किए हैं। बाबा साहब नया भारत चाहते थे जिसमें स्वतंत्रता समता और बन्धुत्व हो जो हमें संविधान के रूप दिया, वह चाहते थे कि जब एक भारतीय दूसरे भारतीय से मिले तो वे उनको अपने भाई-बहन के समान देखें, एक नागरिक दूसरे के लिये प्रेम और मैत्री महसूस करे लेकिन भारतीय समाज में कुछ हद तक सुधर हुआ है किन्तु जिस भारत और भारतियों की कल्पना की गयी थी उसके विपरीत स्वतंत्रता, समता और बधुंत्व जो संविधान में लिखा है इसे राजनीति के बड़े-बड़े घाघ नेता  आज भी दलित-अतिदलित लोगों तक पहुँचने नहीं देते। जाति विहीन समाज की स्थापना के बिना स्वतंत्रता, समता और बधुंत्व का कोई महत्व नहीं है। बाबा साहब ने कहा था, “निःसंदेह हमारा संविधान कागज पर अश्पृश्यता को समाप्त कर देगा किन्तु यह 100 वर्ष तक भारत में वायरस के रूप में बना रहेगा। और आज हम संविधान लागू किये जाने से लेकर 73 वर्ष के बूढ़े भारत में निवास कर रहे हैं जहाँ हिन्दू-मुस्लिम, उंच-नीच, स्वर्ण-दलित, अतिदलित की राजनीति से ऊपर नहीं उठ सके हैं

 

यदि हिन्दू धर्म अछूतों का धर्म है तो उसको सामाजिक समानता का धर्म बनना होगा चर्तुवर्ण के सिध्दान्तों को समाप्त करना होगा चर्तुवर्ण और जाति भेद दलितों के आत्म सम्मान के विरूध्द हैं। उक्त कथन के साथ बाबा साहब हिन्दू धर्म में बने रहने के लिए जीवन के अंतिम समय तक प्रयासरत रहे किन्तु हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने ऐसा नहीं होने दिया परिणामतः बाबा साहब ने 24 अक्टूबर 1956 को अपने लाखो अनुयायियों की संख्या मे बौद्ध धर्म को अंगीकार कर लिए, अतः आज जिन लोगों कि जन-आन्दोलन में रूचि है उन्हे केवल धार्मिक दृष्टिकोण अपनाना छोड़ देना चाहिये तथा उन्हें सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण अपनाकर सामाजिक और आर्थिक पुर्ननिमार्ण के लिये अमूल्य परिवर्तन वादी कार्यक्रम पर जोर देना चाहिए बिना इसके दलित-अतिदलित लोगों की दसा में सुधार लाया जाना संभव नहीं है।

 

विश्व के महान विद्वानों की श्रेणी में अग्रणी बाबा साहब अम्बेडकर की यह युक्ति ‘‘सभी समस्याओं से मुक्ति का मार्ग राजनीतिक कुंजी है।’’ यथार्त सत्य है, जिसे प्राप्त करने के लिए पूरे जीवन संघर्षरत रहे। अपने समाज को हक दिलाने के लिए अपने परिवार को काल के मुंह मे ढकेल कर समाज के हक की लड़ाई लड़ते रहे। यह अधिकार, एकमात्र मत का अधिकार न होकर राजनैतिक अधिकार है जिसके बल पर किसी एक परिवार की नहीं बल्कि सम्पूर्ण देश में रह रहे उन सभी व्यक्तियों की अस्मिता का आधार है चाहे वह किसी भी वर्ग, जाति, धर्म को मानने वाला हो। कोई एक देश ही नहीं सम्पूर्ण विश्व के इतिहास को बदलने की ताकत रखता है। 24 जनवरी 1950 को संविधान पर अन्तिम रूप से आत्मार्पित हस्ताक्षर करते हुये बाबा साहब ने कहा था कि मैने आज रानी के पेट का आपरेशन कर दिया आज के बाद कोई राजा पैदा नहीं होगा। परन्तु दुःख इस बात का है कि इक्का-दुक्का को छोड़ दें तो वर्तमान राजनीति परिवारवाद के चलते उसी लीक पर जा चुकी है। जिसकी सम्पूर्ण जिम्मोदारी हम सब की है क्योंकि हम अपने मत के अधिकार का दुर्पयोग करते चले जा रहे हैं और एक के बाद परिवारवाद की राजनीति को बढ़ावा देकर वंशानुगत राजनीति का समर्थन कर रहे हैं । उत्तर प्रदेश के 2022  की राजनीति में परिवारवाद की राजनीति का भी असर रहा है, संसद और विधायक के बेटे-बेटियों को सत्ता सौंपते जा रहे हैं

दलितों-अतिदालितों और पिछड़ों के लिए बाबा साहब अपने शोधपत्रों-पत्रिकाओं, लेखों, सभा-संगोष्ठियों में जहाँ कहीं, जब भी मौका मिलता तब उनकी उक्ति गर्जते सिंह की गर्जना की भाँति गगन में प्रतिध्वनित हो उठती, ‘‘जाओ लिख दो तुम अपनी दीवारों पर कि हम इस देश की शासक जातियाँ हैं, हम उसी कौम के वंशज है जिसके समय में यह देश सोने कि चिड़िया कहलाता था।’’ वे सम्पूर्ण समस्याओं के समाधान की कुंजी पर एकाधिकार प्राप्त करने के लिये शिक्षित बनो, शिक्षित करो और संगठित रहो के नारा पर बल देते हुये कहते हैं कि तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का कल्याण इसी में है। अपने आत्म-सम्मान की जिन्दगी को जी सकोगे अन्यथा कि स्थिति में उस चैराहे पर खड़े भीखमंग्गे की तरह पूरे जीवन अपने अधिकारों की भीख मांगते रहोगे। राजनीतिक सत्ता का हस्तान्तरण होता रहेगा, सरकारें आती और जाती रहेंगी। तुम्हारी सुध तो दूर तुम पर कोई थूकेगा नहीं। बहुत नेकदिली किसी सरकार की सत्ता हुई भी तो तरस खाकर एक-आध धेला (आपका हक) फेंक देगा उससे क्या होने वाला  इससे अच्छा तो मौत को गले लगा लो गुलामों की जिन्दगी जिने से बेहतर है मरजाना।

उनका यह क्रान्तिकारी सामाजिक परिवर्तन का आन्दोलन 19वीं सदी के दूसरे दसक के मध्य से 6 वें दसक के मध्य, जीवन के अन्तिम क्षण 06 दिसम्बर 1956 तक चलता रहा फिर शनैः-शनैः खेल शुरू हुआ, लोकतांत्रिक शासन के आने पर राजनैतिक रोटी सेंकने का, पार्टियाँ आती-जाती रहीं। अपने हिसाब से वंचितों का शोषण जारी रहा। वोट का अधिकार मिला किन्तु उसका सही प्रयोग वंचितवर्ग आज तक नहीं कर सका। कभी जाति के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर। अलगाववाद, भ्रष्टाचार, दारू-मुर्गा और सब कुछ फ्री का चाहिए परिश्रम न करना पड़े आदि के नाम पर वोट देते रहे है । और उसी में अपने लोगों का मान-सम्मान खुशी तलाशते रहे और यह आज भी बदस्तूर जारी है। वंचितवर्ग कितना भी पढ़-लिख गया हो किन्तु मानसिक गुलामी और संकीर्णता का शिकार बना हुआ है।

शिक्षित बनों के नाम पर अधकचरे शिक्षा तक सिमित हो रह गए हैं, आज सामान्य परिवार के लोग अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पा रहे है क्योंकि शिक्षा का निजीकरण एक बड़ा अभिशाप है जहाँ शिक्षा इतनी महँगी हो गयी है और वहीँ दूसरी तरफ लोग-मंदिर मस्जिद की ओर दौड़ रहे हैं, कापी-किताबों से विमुख होते जा रहे भविष्य में आने वाली यह वर्तमान खेप देखिये क्या गुल खिलाती है, शांत मन से हम चिंतन करें तो पाएंगे कि जाति-धर्म के नाम पर संकुचित मानसिकता के युवा जो धर्म की राजनीति के शिकार हो चुके हैं वह आने वाले भारत के कल (भविष्य) को नफरत के सिवाय और कुछ नहीं दे सकते। वर्तमान भारत देश के लोकतान्त्रिक शक्ति का दुरपयोग देश के सत्ता धारी दल पुरे मनोयोग से कर रहे हैं उनके ऐजेण्डे से देश का विकास और लोगों की समस्या गायब है।

बाबा साहब की जयंती भी आज केवल और केवल वोट की राजनिति बनकर रह गयी है, बाबा साहब के जन्मदिवस पर वास्तव में हम भारतवासी उनके सिधान्तों और शिक्षाओं का सच्चे मन से संकल्प ले लें तो बदलते भारत की तस्वीर विश्व की इकलौती तस्वीर होगी जो हमें एक अलग पहचान दिला सकती है। लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि हम और हमारी राजनीति हिंन्दू-मुस्लिम, असहिष्णुता, दलित कार्ड से ऊपर ही नहीं उठ पा रही है और यह तब-तक चलता रहेगा जब-तक भारत का हर एक नागरिक चाहे वह सवर्ण हो, अवर्ण (शूद्र) हो अपनी समाज और देश के प्रति जिम्मेदारी का अहसास नहीं करते तब तक बाबा साहब के सपनों के भारत का निर्माण असम्भव है, इसलिए हमें आज नहीं तो कल इस बात की प्रतिज्ञा लेनी होगी कि बाबा साहब के सपनों के भारत का निर्माण हमारी प्राथमिकताओं में से एक है और उसके निर्माण का हम आज संकल्प लेते हैं।

-अखिलेश कुमार अरूण
शिक्षा-{एल0एल0बी0, एम00 (राजनीति विज्ञान, प्रा0भा0 इतिहास, इतिहास, शिक्षाशास्त्र, हिंदी), एम0एड0, नेट(शिक्षाशास्त्र, राजनीति विज्ञानं}
मो0नं0-8127698147
ग्राम-हजरतपुर, पोस्ट-मगदापुर,
जिला-लखीमपुर खीरी उ0प्र0 262804
रचनात्मक उपलब्धि-समय-समय पर देश के  प्रतिष्टित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में गद्य व पद्य रचनाएं प्रकाशित होती रही हैंतथा दो  साझा काव्य (उजास और बाल-किलकारी) और एक लघुकथा संग्रह प्रकाशित हैं।

 

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