साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, September 01, 2017

महात्मा ज्योतिबा फुले -अखिलेश कुमार अरुण

ज्योतिराव फुले पुण्यतिथि: दलित उत्थान के महात्मा, समाज के लिए किये अनेक  कार्य | NewsTrack
दलित समाज के प्रथम शिक्षक महात्मा ज्योतिबा फुले जी के जीवन का संक्षिप्त इतिहास
जन्म- 11 अप्रैल सन् 1827,पुणे मुम्बई
माता-पिता- चिमड़ाबाई,गोबिन्दराव
माता के बचपन में निधन हो जाने के बाद इनका लालन-पालन पिता की मौसेरी बहन सगुणाबाई ने किया।
14 वर्ष की उम्र में इनका विवाह सावित्रीबाई (8 वर्ष) के साथ सम्पन्न करा दिया गया।
काशीबाई विधवा स्त्री के अवैध संतान को गोद लिया था जिसका नाम यशवंत राव था।
शस्त्र की शिक्षा लाहुजी भाऊ से प्राप्त किया साथ में दो और छात्र थे-बाल गंगाधर तिलक,बलवंत फड़के
14 जनवरी 1848 को भिड़ के मकान में बालिका शिक्षा की प्रथम पठशाला की स्थापना की गयी,जिसकी मुख्य अध्यापिका थी सावित्रीबाई (15 वर्ष)।
अछूत बच्चों की शिक्षा के लिये 01 मई 1852 को प्रथम पठशाला की स्थापना की गयी।
मुम्बई सरकार द्वारा 16 नवम्बर 1852 को सम्मानित किया गया।
विधवा स्त्रियों की दयनीय दशा पर 28 जन. 1953 को बाल हत्या प्रतिबन्धक गृह की स्थापना की गयी।
पहली पुस्तक -तृतीय रत्न का प्रकाशन 1855 में किया गया,शिवाजी-जा-पंवाणा 1869,ब्राह्मणांचे कसब,किसान का कोणा, अछूतों की कैफियत, गुलामगीरी,अन्तिम पुस्तक-सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक 1889
संपादन-सतधार पत्रिका
दलितों की मुक्ति का घोशणा-पत्र कहा गया उनकी पुस्तक गुलामगीरी को।
संगठन- महिला सेवा मण्डल,सत्य शोधक समाज
पुणे नगरपालिका के सदस्य रहे 1876-1882 तक
11 मई 1888 को नागरिक अभिनन्दन कर महात्मा की उपाधि दी गयी, सयाजीराव गायकबाण ने इन्हें बुकर टी वाशिगंटन के नाम से सम्बोधित किया है।
1888 में लकवा रोग से ग्रस्त हो गये और 28 नव.1890 को 63 वर्ष की आयु में निर्वाण को प्राप्त हुये।

                                                          

Friday, August 04, 2017

चोटी-कटवा का भ्रम, मास-हिस्टीरिया




Image result for hysteriaदेश के उत्तरवर्ती क्षेत्र में पिछले कुछ दिनों से सुनी-सुनाई अफ़वाह का सिलसिला लगातार जारी है। इसमें वे धूर्त मक्कार बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं जो सत्य से कोशों दूर रहते हैं। लोगों को भ्रमित करना ही उनका पेशा है। मैं अपने बचपन के दिनों में मुँहनोचवा के आतंक का असर लोगों पर देख चुका हूँ जहाँ हमारे गाँव के ज्यादातर लोग रात को घर के अन्दर सोते थे, वहीं हमारे घर में परिवार के सभी लोग यहाँ तक कि हम बच्चे भी बाहर ही सोते थे इस अफ़वाह से आमना-सामना के लिये परन्तु दुर्भाग्य कहिये उस मुँहनोचवा का या मेरे परिवार का कभी आस-पास नहीं हु ये।

                       चोटी-कटवा का भ्रम, मास-हिस्टीरिया


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समय-समय पर विविध प्रकार के अभवाह लोगों के बीच आते रहे हैं। ये अफ़वाह विश्वास करने वालों के लिये काल हो जाते हैं और न मानने वालों के लिये मुर्खतापूर्ण धूर्त मक्कारी बस यही सत्य है। भारत की जनता आज भी अन्धविश्वास के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाई है या यों कहें कि आज भी पोंगा-पंथी अपनी दुकान चलाने के लिये लोगों के बीच ऐसे अफवाह फैलाकर सत्यता की जाँच करते रहते हैं कि उनका और उनके द्वारा बनाये गये जादू-टोना, गण्डा-ताबीज, भूत, पिचाश, चुड़ैल आदि का कितना असर लोगों के दिलों-दिमाग पर है।


आज महिलायें ज्यादातर चोटी-कटवा से भयभीत हैं, गाँव तो गाँव इससे शहर की महिलायें भी अछूती नहीं हैं। यह कोई नई घटना नहीं है इससे पहले भी कई अफ़वाह लोगों के बीच आ चुका है। यथा-गणेश का दूध पीना, मंकीचोर, मुँहनोचवा, शंकर के त्रिनेत्र से आंसू आना, पेड़ में गणेश की आकृति उभरना आदि। कितने का उदाहरण दिया जाय परन्तु दुर्भाग्य रहा कि आज तक इन घटनाओं के साक्ष्य प्राप्त नहीं हुये। इसके तह में जाने का प्रयास करो तो साफ झूठ के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता है। लोग सुनी-सुनाई बातों पर यकीन करते चले जाते हैं और पहला व्यक्ति अपने से दूसरे को अतिशयोक्ति में व्यापक वर्णन प्रस्तुत करता है। और यह सामूहिक रूप से लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लेता है।

कुछ व्यक्ति इस प्रकार की अफवाहों के शिकार हो जाते हैं। इसमें कसूर उनका नहीं है। मनोवैज्ञानिकों के मतानुसार वे एक बिमारी से पीड़ित होते हैं जिसे हिस्टीरिया के नाम से जाना जाता है। हिस्टीरिया रोग की ज्यादातर शिकार महिलायें होती हैं। व्यापक क्षेत्र में जब इससे लोग पीड़ित हो जाते हैं तो इसे मास-हिस्टीरिया के नाम से जाना जाता है। हिस्टीरिया (HYSTERIA) की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है। बहुधा ऐसा कहा जाता है, हिस्टीरिया अवचेतन अभिप्रेरणा का परिणाम है। अवचेतन अंतर्द्वंद्र से चिंता उत्पन्न होती है और यह चिंता विभिन्न शारीरिक, शरीरक्रिया संबंधी एवं मनोवैज्ञानिक लक्षणों में परिवर्तित हो जाती है। अतः इस रोग से पीड़ित महिलायें स्वयं का अफवाहों से सीधा संबन्ध प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ लेती हैं जिस कारण वे कभी-कभी अपना जान भी गंवा बैठती हैं। हिस्टीरिया का उपचार मनोवैज्ञानिकों ने संवेदनात्मक व्यवहार, पारिवारिक समायोजन, शामक औषधियों का सेवन, सांत्वना, बहलाने, तथा पुन शिक्षण से किया जाना बताते हैं।

चोटि-कटवा से पीड़ित महिला जो बेहोस हो गयी थी या जो चोटिल हो गई है वे सब इसी रोग से पीड़ित हैं। इसके इतर वे महिलायें जो यात्रा के दौरान या बाजार, सिनेमाहाल, भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जहाँ उनकी चोटी कट जाती है, वस्तुतः यह किसी सरारती व्यक्ति का काम है। जब लोगों के जेब कट सकते हैं, कानों के कुण्डल, गले का हार नोचा जा सकता है। तब की स्थिति में किसी महिला की चोटी काट देना तो बहुत सरल है। अफवाहों का बाजार कम पढ़े-लिखे लोगो के बीच ही फैलता है। शिक्षितवर्ग इन सबसे कोसों दूर रहता है।
Image result for hysteriaइसका एक मात्र बचाव जागरूकता है सही तरीके से आम-जन को निर्देशित किया जाना चाहिये कि अफवाहों को तब तक प्राथमिकता न दें जब तक कि उसकी पुष्टि नहीं हो जाती। ऐसा होता नही है मीडिया अपनी टीआरपी के लिये अन्धविश्वासियों के मूँह में माईक लाकर घूसेड़ देता है और तरह-तरह की चमत्कार लीलायें एक के बाद एक आखों देखी परोसता रहता है। अनुमानतः यह भी हो सकता है कि लोगों का ध्यानाकर्षण राजनीतिज्ञ धूर्त मुख्य मुद्दों से लोगों को बरगलाने के लिये इस फिजुल की बातों को हवा दे रहे हों, यह कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं किन्तु मीडिया तिल का ताड़ बनाने में लगी है। आईये हम अपने को सतर्क रखें और अपने आस-पास के लोगों का जागरूक 
                -अखिलेश कुमार अरूण


Wednesday, April 12, 2017

बाबा साहब और उनकी जयंती

आज हम बाबा साहब की 126 वीं जयंती मना रहे हैं. उनकी पहली जयंती और आज की जयंती में प्रयाप्त परिवर्तन दृष्टिगोचित हो रहा है. बाबा साहब तब की जयंती में सामाजिक थे, दलितों के मसीहा थे उनको मानने और मनाने वाला उनका अपना एक वर्ग था किन्तु आज परिस्थिति उसके बिल्कुल विपरीत है बाबा साहब का राजनीतिक ध्रुवियकरण कर दिया गया है. आज के समय में वह वोट बैलेंस बन चुके हैं. उनके सिद्धांत, शिक्षा, उपदेश धूमिल होते जा रहें हैं. हमारे कहने का मतलब बाबा साहब को एक वर्ग विशेष से सम्बन्धित नहीं करना है उनको सभी मानों और मनाओ क्योंकि उन्होंने भारत जैसे विशाल विभिन्नताओं वाले देश का संविधान लिखने में महती भूमिका निभाई है. इसलिए प्रत्येक भारतवाशी उनका कर्जदार है परन्तु यह कहाँ शोभा देता है कि जयंती बाबा साहब की मनाये और गुणगान किसी और का करें यह सर्वथा उनके साथ अन्नाय ही है.

बाबा साहब डाW भीमराव रामजी अम्बेडकर सामाजिक रूप से अत्यन्त निम्न समझे जाने वाले वर्ग में जन्म लेकर भी जो ऊँचाई उन्होने प्राप्त की यह बात हम सबके लिये अत्यन्त प्रेरणादायी है।
जो कार्य भगवान बुध्द ने 25,000 वर्ष पूर्व शुरू किया था, वही कार्य बड़ी लगन ईमानदारी व कड़ी मेहनत और विरोधियों का सामना करते हुये बाबा साहब दलित-अतिदलित,महिला-पुरूषों के लिये किया।


बाबा साहब नया भारत चाहते थे जिसमें स्वतंत्रता समता और बन्धुत्व हो जो हमें संविधान के रूप दिया, वह चाहते थे कि जब एक भारतीय दूसरे भारतीय से मिले तो वे उनको अपने भाई-बहन के समान देखें, एक नागरिक दूसरे के लिये प्रेम और मैत्री महसूस करे लेकिन भारतीय समाज आज भी इसके विपरित है, स्वतंत्रता,समता और बधुंत्व जो संविधान में लिखा है इसे जातियाँ आज भी दलित-अतिदलित लोगों तक पहुँचने नहीं देती। जाति विहीन समाज की स्थापना के बिना स्वतंत्रता, समता और बधुंत्व का कोई महत्व नहीं है।  
बाबा साहब ने कहा था, “निःसंदेह हमारा संविधान कागज पर अश्पृश्यता को समाप्त कर देगा किन्तु यह 100 वर्ष तक भारत में वायरस के रूप में बना रहेगा।”
सम्मान और स्वतंत्रता से जीना-मरना प्रत्येक मानव का जन्म सिध्द अधिकार है इसके लिये सतत् सघंर्ष करना महा पुण्य का कार्य है बाबा साहब जाति व्यवस्था को प्रजातंत्र के लिये घातक मानते थे यदि मनुष्य, मनुष्य के साथ अमानवीय व्यवहार करे उसके साथ छुआ-छूत करे वह मनुष्य और इसकी आज्ञा देने वाला समाज सभ्य नहीं हो सकता।

“यदि हिन्दू धर्म अछूतों का धर्म है तो उसको सामाजिक समानता का धर्म बनना होगा चर्तुवर्ण के सिध्दान्तों को समाप्त करना होगा चर्तुवर्ण और जाति भेद दलितों के आत्म सम्मान के विरूध्द हैं ।”
जिन लोगों कि जन-आन्दोलन में रूचि है उन्हे केवल धार्मिक दृश्टिकोण अपनाना छोड़ देना चाहिये तथा उन्हें सामाजिक और आर्थिक दृश्टिकोण अपनाना होगा।
 सामाजिक और आर्थिक पुर्ननिमार्ण के लिये अमूल्य परिवर्तन वादी कार्यक्रम के बिना दलित-अतिदलित लोगों की दषा में सुधार नहीं हो सकता।

भारतीय संविधान में मिले अधिकारों की सुरक्षा और उन्हें प्राप्त करने लिये प्रत्येक समय वचनबध्द रहना होगा इसी में बाबा साहब के जन्म दिन की सच्ची सार्थकता होगी।

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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