साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Tuesday, May 04, 2021

इस बार ‘आम’ भी कुछ सहमा-सहमा सा है-अजय बोकिल

  क्लासिकल लेख  

गलवान घाटी मामले में चीन की शाब्दिक ठुकाईकरने वालों को इस बात का अंदाज नहीं है कि चीन हमे अब आम उत्पादन और निर्यात के क्षेत्र में भी कड़ी चुनौती दे रहा है। अभी हम आम की पैदावार और निर्यात के मामले में दुनिया में नंबर वन हैं। लेकिन चीन भी दूसरे नंबर पर आ चुका है। हालांकि इस साल कोरोना वायरस ने हमारे आम को रसहीनबना दिया। लाॅक डाउन के चलते ज्यादातर आम पेड़ों पर ही सड़ गए। मई के दूसरे पखवाड़े में कुछ आम बाजारों में दिखना शुरू हुआ तो जून की बारिश ने उसे भी बेस्वाद-सा कर दिया। हमारे आमों की खासियत और रंगत बनी रहे, इसके लिए अब यूपी के आमों की कुछ और लोकप्रिय किस्मों के लिए जीआई टैग हासिल करने के प्रयास शुरू हो गए हैं। लेकिन भारतीय आमों का परचम दुनिया में फहराते रखने के लिए और गंभीर प्रयासों की जरूरत है।

सच कहें तो कोरोना की दहशत में लिपटी गर्मियां इस बार बिना आम के ही निकल गईं। होली के बाद से ही बादाम या और आम की अन्य दूसरी ‍िकस्मे बाजार में दस्तक देने लगती थीं, वह इस बार नदारद दिखीं। इसका एक कारण सर्दियों में मौसम की मार भी रही। जब बौर फल में बदलने लगा तो कोरोना उन्हें लील गया। लाॅक डाउन में सारे साधन बंद हो गए। आखिर आमको दाद देने अवामतो चाहिए। बाजार न होने से बहुत से आम उत्पादकों ने आम तोड़े ही नहीं। कई डाल पर ही सड़ गए तो जो बाजार में आए, तब तक काफी देर हो चुकी थी। यानी कोयल की कूक और आम की महक की जो जुगलबंदी रहती आई है, वह इस साल कोरोना के कहर में गुम हो गई। लिहाजा पूरा सीजन ही आम रस के बिना निकल गया। हालांकि अभी आम बाजार में ‍िमल रहा है, लेकिन वैसी बात नहीं है। वो रसीला आम विरल है, जो कलेजे को ठंडा करता आया है।

यूं इस साल आम के साथ अंगूर भी गर्मियों में बहुत कम दिखा, लेकिन आम की कमजोर मौजूदगी ने सबको बेचैन किया। इसलिए भी क्योंकि आम हमारे लिए केवल एक फल भर नहीं है। वह मांगल्य का प्रतीक भी है। न सिर्फ फल बल्कि आम की पत्तियां वंदनवार के लिए जरूरी हैं। आम की लकड़ी हवन में समिधा के रूप में काम आती है। कच्चा आम भी कई रूपों में खाया जाता है तो आम की छांव लू को शीतल करने का काम करती है। आम ‍इस देश में सदियों से होता रहा है। क्योंकि भारत ही आम का घर है। होली की मस्ती खत्म होते ही महकते आमों की

आमद शुरू हो जाती है। बाजार में बादाम, दशहरी, लंगड़ा, चैसा, हापुस आदि आम लोगों को ललचाने लगते हैं। वैसे आमों के नामकरण की भी दिलचस्प कहानी है। बनारस का लंगड़ाआम लंगड़ा क्यों कहलाता है, इस बारे में बहुतों को पता नहीं है। क्योंकि कोई फल लंगड़ाकैसे हो सकता है? इसके पीछे दास्तान ये है कि करीब ढाई सौ साल पहले बनारस के एक शिव मंदिर में एक साधु आम के दो पौधे लेकर आया। मंदिर से लगी जमीन में उसने ये आम पौधे लगा दिए और पुजारी से कहा कि इसका रहस्य किसी को न बताए। कुछ साल बाद उनमें आम लगने लगे। बात राजा तक पहुंची और जल्द ही इस पौधे की कलमे कई जगह लगीं। लोगों को यह आम खूब पसंद आया। जो साधु ये पौधे लेकर आया था, वो लंगड़ा था। इसलिए आम भी लंगड़ाकहलाने लगा। इसी तरह दशहरी आम वास्तव में लखनऊ के पास स्थि‍त दशहरी गांव की उपज है। कहते हैं कि चैसा का नामकरण शेरशाह सूरी ने मुगल बादशाह हुमायूं को हराने की खुशी में किया था। रत्नागिरी का अल्फांजो पुर्तगाली अपने साथ लेकर आए थे। आजकल हाइब्रिड वेरा‍यटियो के नाम भी सुंदर-सुंदर नाम रखे जाते हैं। जैसे कि आम्रपाली, गुलाब खस वगैरह।

पूरी दुनिया के आम उत्पादन का 40 फीसदी केवल भारत में होता है। हम सबसे बड़े आम निर्यातक भी हैं। एपीडा के अनुसार भारत ने साल 2018-19 में 406.45 करोड़ रुपए का 46510.23 मीट्रिक टन आम निर्यात किया था। जबकि पिछले साल देश में 2 करोड़ 10 लाख टन आम पैदा हुआ था, लेकिन इस साल 10 लाख टन कम पैदावार हुई बताई जाती है। देश में आम की डेढ़ हजार से ज्यादा किस्में पैदा होती हैं। स्वाद के मामले में भारतीय आमों की बात ही अलग है। वैसे आम और मानसून का भी अजीब रिश्ता है।

हापुस और बादाम जैसे आम लू में भी गर्मी से लोहा लेते हैं, लेकिन प्री मानसून की फुहारें पड़ते ही वो गर्मी से मुकाबला करने वाली अग्रिम चैकियों से पीछे हट जाते हैं। उनकी जगह दशहरी, लंगड़ा, चैसा, तोतापरी आदि आम लेते हैं। इसके अलावा रसीला सफेदा भी मोर्चा संभाल लेता है। आजकल देसी चूसने वाले आम कम मिलते हैं। वरना कुछ बरस पहले तक रस का आम ही आम रस का स्रोत हुआ करता था। क्योंकि आम का शेक भी बनता है, यह लोगों को पता न था। इस बार लाॅक डाउन के चलते बड़ी तादाद में आम न तो बाजारों में और न ही घरों तक पहुंच पाया। ऐसे में आम की तमाम किस्मों को जीआई टैग दिलवाने के प्रयास तेज हो गए हैं। लखनऊ के सेंट्रल इंस्टीट्यूट फार सबट्रापिकल हार्टिकल्चर ( सीआईएसएच) ने अब बनारसी लंगड़ा, चैसा और रटौल आमों की खास किस्मों के जीआई ( ज्यो‍ग्राफिकल इंडिकेशन) टैग हासिल करने की कोशिशें तेज कर दी है। जीआई टैग उन उत्पादों को दिया जाता है जो किसी क्षेत्र विशेष में पैदा होते हैं और उनकी स्थानीय पहचान इससे संरक्षित होती है। इसके पूर्व जीआई टैग पाने वालों में लखनऊ का दशहरी आम रत्नागिरी का अल्फांजो ( हापुस), गुजरात के गीर और महाराष्ट्र के मराठवाडा में होने वाला केसर, आंध्र प्रदेश का बंगनापल्ली, भागलपुर का जर्दालू, कर्नाटक का अप्पामिडी और बंगाल के मालदा के हिमसागर शामिल है। जी आई टैग मिलने से इन आमों को बेहतर दाम मिलते हैं, साथ ही इस क्षेत्र के उत्पादकों का इस पर एकाधिकार रहता है।

अब बात चीन की। तकरीबन हर तरह के प्राणियों का भक्षण करने वाले चीनियों को आम का स्वाद पहले पता न था। कहते हैं कि 1968 में पहली बा र पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री सैयद शरीफुददीन पीरजादा चीन यात्रा पर जाते समय खास आम की 40 पेटियां बतौर तोहफा साथ ले गए थे। चीनी नेता माओ त्से दंग को ये आम बेहद भाए। उन्होंने इन्हें मजदूर नेताओं को भिजवा दिया। इसके बाद चीन में भी आम पैदा होने लगा। अब वही चीन हमे आम उत्पादन और निर्यात के मामले में खुली चुनौती दे रहा है। हालांकि भारतीय आम गुणवत्ता और साख के मामले में बहुत आगे हैं। लेकिन निर्यात के जो इन्फ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स चीन के पास हैं वैसे भारत के पास वे नहीं हैं। यहां तक कि फिलीपींस भी इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। ये देश आमों की नई प्रजातियां विकसित कर रहे हैं। वहां आम पर काफी शोध और अनुसंधान हो रहा है। इसके विपरीत हमारे देश में आम पर शोध और अनुसंधान करने वाला एकमात्र संस्थान है लखनऊ का सेंट्रल इंस्टीट्यूट फाॅर सबट्रापिकल हार्टिकल्चर। वह भी केवल आम के लिए नहीं है। इस क्षेत्र में कुछ काम निजी क्षेत्र में जरूर हो रहा है।

कहते हैं कि आम ऐसा फल है, जो आम के साथ अपनी गुठलियों के दाम भी दिलवा जाता है। लेकिन उसके लिए आमों का ठीक से संवर्द्धन, देखभाल और व्यापक अनुसंधान की जरूरत होती है। भारतीय आम सचमुच फलों का राजाबना रहे, इसके लिए जरूरी है कि हम आम को भी खासकी तरह लें। क्योंकि आम स्वदेशीका भी हरकारा है। उसका स्वाद, रंग, रस, मंगल भाव और आर्थिक मू्ल्य यूं ही कायम रहे,इसके लिए जरूरी है कि सरकार इसे पूरी गंभीरता से ले। कम से कम ये बाजार तो चीन हमसे छीन न सके।

(वरिष्ठ संपादक दैनिक सुबह सवेरे मप्र-9893699939)

Wednesday, April 28, 2021

पैनिक न हो अतीत के संक्रमणों से कोरोना ज्यादा घातक नहीं।

पैनिक न हो अतीत के संक्रमणों से कोरोना ज्यादा घातक नहीं।

लॉकडाउन जरूरी, आइसोलेशन न होने पर प्लेग से मरे थे हजारों लोग - Education  AajTak
प्लेग १८३३-१८४५

    आज का वर्तमान कभी का भूत भी रहा है और हमारे भविष्य का द्योतक भी है। गुजरे वषों में हम लाल बुखार, चिकनगुनिया और भी न जाने कितनी संक्रमित बिमारियों की भयावहता की त्रासदी को हमने झेला है उन सबकी अपेक्षा कोरोना कहीं अधिक व्यापक स्तर पर आज हाबी है पर हमारे कन्टोल में है क्योंकि हम विज्ञान के युग में जी रहे हैं।  अगर यही बिमारी कहीं 1346-53 के बीच आती या उस जैसा हमारा आज का वर्तमान होता तो उस समय प्लेग से विष्व में मरने वालों की संख्या 7.05 से 20 करोड़ थी,  उसकी अपेक्षा आज अरबों में पहुच जाते, संक्रमण काल में अब तक मरने वालों की सबसे बड़ी संख्या है। भारत में सन् 1898 से 1918 तक इसने एक करोड़ प्राणों की बलि ली थी। सन् 1675 से 1684 तक उत्तरी अफ्रीका, तुर्की, पोलैंड, हंगरी, जर्मनी, आस्ट्रिया में प्लेग का एक नया उत्तराभिमुख दौरा शुरु हुआ, जिसमें सन् 1675 में माल्टा में 11,000 सन् 1679 में विएना में 76,000 और सन् 1681 में प्राग में 83,000 प्राणों की आहुति देनी पड़ी। इस चक्र की भीषणता की कल्पना इससे की जा सकती है कि 10,000 की आबादीवाले ड्रेस्डेन नगर में 4,397 नागरिक इसके शिकार हो गए। सन् 1833 से 1845 तक मिस्त्र में प्लेग का तांडव होता रहा। विज्ञान के विकास के साथ ही साथ हमने इन संक्रमणों से बचने के चिकत्सकीय उपाय इजाद कर लिये किन्तु संक्रमणीय बिमारी अब नये रुप में हमारे सामने आ खड़ी हुई है। इससे बचने के लिये हमारी तैयारी क्या विष्व की तैयारी भी जीरो है। वर्तमान ही हम नहीं बना सके तो भविष्य की बात करना मूर्खता होगा। कुछ ऐसा ही आज कोरोना के रुप में देखने को मिल रहा है। संक्रमण तेजी से फैलता जा रहा है, एक के बाद एक कोरोना की चपेट में लोग आते जा रहे हैं कहीं-कहीं तो पूरा का पूरा परिवार कोरोना की चपेट में आकर काल के गाल में समाने को तैयार बैठा है ऐसे में कोरोना से मुक्ति का उपाय अब केवल और केवल साकारात्मक सोच और आपके आत्मबल में समाहित है। लाख कोषिष करने के बाद भी लोग कोरोना की चपेट में आ ही जा रहे हैं, घर-परिवार में दवा-दारु और खाने-पीने की वस्तुओं को लेने बाहर जाना ही पड़ता है, परिवर में भूखों मरने तक आप अपने घर में नहीे रह सकते। ऐसे में आप अपने व अपने परिवार को कोरोना की उन खबरों से दूर रखें जो आपको मानसिक रुप से कमजोर बनाती हैं। मनोचिकित्सकों का कहना है कि आपका पैनिक होना आपके स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित नहीं हैं यह आपके एम्यूनीटि को कमजोर करता है।

coronavirus safety tips: Coronavirus se bachne ke tarike - 14 दिन  क्वारंटाइन के बाद भी बरतें ये सावधानियां, परिवार में नहीं फैलेगा कोरोना  संक्रमण - Navbharat Times

    सोशल मिडिया पर घूम रहीं खबरें जाने-अनजाने आपकों कोरोना के मुंह में ढकेल रहीं हैं। सोषल मीडिया के प्रयोगकर्ता खबरों को शेयर करने से पहले उनकी सच्चाई की तह में जाना नहीं चाहते ऐसा नहीं है कि सोषल मिडिया की सारी खबरें अफवाह हैं कुछ सच्चाई को भी अपने में समाहित किये हुए हैं अन्य बिमारियों से मरने वालों की संख्या की गिनती भी आज कोरोना में ही की जा रही है अतः कोरोना अपने भंयकर रुप को धारण कर लिया है। हमारे आपके मिलने-जुलने वालों में कोई अगर कालकवलित हो गया है तो उसे अपने तक ही सीमित रखा जाय। सोषल मिडिया पर शेयर करने से बचा जाय ऐसा करके हम अपने और अपने लोगों को मानसिक अवसाद के षिकार होने से बचा सकते हैं।

    आज इस महामारी के प्रकोप से जो लोग पीड़ित हैं वे अपने आत्मबल को गिरने न दें, स्वस्थ परिवार के सदस्य अफवाह की खबरों से दूर रहकर अपनी सारी उर्जा अपने परिवार के पीड़ित लोगों को एहतियात बरतते हुए। उनके स्वस्थ होने तक उनका साथ देते रहें। ठीक हो सकते हैं और ठीक कर सकते हैं बस एहतियात बरतने के साथ ही साथ आत्मबल और विष्वास बनाए रखने की जरुरत है क्योंकि अपने देश का निजाम आपको, आपके भरासे पर छोड़कर खुद सत्ता का सुख भोगने में व्यस्त है कोरोना के नाम पर सरकार द्वारा मदद कम दिखावा ज्यादा किया जा रहा है पर अब यह जरुर है कि सरकार कुम्भकर्णी नींद से जा चुकी है हर-सम्भव प्रयास किये जा रहे हैं देर आओ किन्तु दुरुस्त आओ जनता को अब न लगे कि उनके साथ छल हो रहा है, राज्य सरकारों का आरोप-प्रत्यारोप जारी है। ऐसे में कोरोना से निपटने की पुरी जिम्मेदारी अब हमारी अपनी है, कोरोना के इस महामारी से हम बहुत जल्दी ऊभर जायेगे बस धैर्य बनाए रखिए।

-अखिलेश कुमार ‘अरुण’

Tuesday, April 27, 2021

कोरोना की दवा साकारात्मकता और आपका आत्मबल

कोरोना की दवा साकारात्मकता और आपका आत्मबल

(स्वतंत्र दस्तक के जौनपुर संस्करण में २७ अप्रैल २०२१ को प्रकाशित)

बनाएं रखें सकारात्मक सोच, क्योंकि मन के जीते जीत हैं....। sakaratmak soch

लाल बुखार, चिकनगुनिया और भी गुजरे जमाने संक्रमित बिमारियों की भयावहता कुछ ऐसा ही होता होगा जो आज कोरोना के रुप में देखने को मिल रहा है। संक्रमण तेजी से फैलता जा रहा है, एक के बाद एक कोरोना की चपेट में लोग आते जा रहे हैं कहीं-कहीं तो पूरा का पूरा परिवार कोरोना की चपेट में आकर काल के गाल में समाने को तैयार बैठा है ऐसे में कोरोना से मुक्ति का उपाय अब केवल और केवल साकारात्मक विचार, सोच, संदेश, आत्मबल में ही समाहित है। लाख कोशिश करने के बाद भी लोग कोरोना की चपेट में आ ही जा रहे हैं, घर-परिवार में दवा-दारु और खाने-पीने की वस्तुओं को लेने बाहर जाना ही पड़ता है, परिवर में भूखों मरने तक आप अपने घर में नही रह सकते। ऐसे में आप अपने व अपने परिवार को कोरोना की उन खबरों से दूर रखें जो आपको मानसिक रुप से कमजोर बनाती हैं।

सोशल मिडिया पर घूम रहीं खबरें जाने-अनजाने आपकों कोरोना के मुंह में ढकेल रहीं हैं। सोशल मीडिया के प्रयोगकर्ता खबरों को शेयर करने से पहले उनकी सच्चाई की तह में जाना नहीं चाहते ऐसा नहीं है कि सोशल मिडिया की सारी खबरें अफवाह हैं कुछ सच्चाई को भी अपने में समाहित किये हुए हैं अन्य बिमारियों से मरने वालों की संख्या की गिनती भी आज कोरोना में ही की जा रही है अतः कोरोना अपने भंयकर रुप को धारण कर लिया है। हमारे आपके मिलने-जुलने वालों में कोई अगर कालकवलित हो गया है तो उसे अपने तक ही रखा जाय सोशल मिडिया पर शेयर करने से बचा जाय ऐसा करके हम अपने और अपने लोगों को मानसिक अवसाद के शिकार होने से बचा सकते हैं।

आज इस महामारी के प्रकोप से जो लोग पीड़ित हैं वे अपने आत्मबल को गिरने न दें, स्वस्थ परिवार के सदस्य अफवाह की खबरों से दूर रहकर अपनी सारी उर्जा अपने परिवार के पीड़ित लोगों को एहतियात बरतते हुए उनके स्वस्थ होने तक उनका साथ देते रहें ठीक हो सकते हैं और ठीक कर सकते हैं बस एहतियात बरतने के साथ ही साथ आत्मबल और विष्वास बनाए रखने की जरुरत है क्योंकि अपने देश का निजाम आपको, आपके भरासे पर छोड़कर खुद सत्ता का सुख भोगने में व्यस्त है कोरोना के नाम पर सरकार द्वारा मदद कम दिखावा ज्यादा किया जा रहा है पर अब यह जरुर है कि सरकार कुम्भकर्णी नींद से जा चुकी है हर-सम्भव प्रयास किये जा रहे हैं देर आओ किन्तु दुरुस्त आओ जनता को अब न लगे कि उनके साथ छल हो रहा है, राज्य सरकारों का आरोप-प्रत्यारोप जारी है। ऐसे में कोरोना से निपटने की पुरी जिम्मेदारी अब हमारी अपनी है।

अखिलेश कुमार  ‘अरुण’

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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