साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Saturday, September 02, 2023

यदि संविधान बदला तो एससी-एसटी और ओबीसी की गति उस लोहार जैसी ही होगी जिसे भेंट में मिले चंदन के बाग-नन्द लाल वर्मा (सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)

चिंतनीय_आलेख
नन्दलाल वर्मा
(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
युवराज दत्त महाविद्यालय
लखीमपुर-खीरी 

         एक बार एक राजा ने एक लोहार की कारीगरी से खुश होकर उसे चंदन का बाग इसलिए भेंट कर दिया कि वह चंदन की बेशकीमती लकड़ी बेचकर धनवान बन जाये।
उस लोहार को चंदन के पेड़ की कीमत और उपयोगिता का कोई अंदाजा नहीं था। इसलिए उसने अपने पेशे की उपयोगिता के हिसाब से चंदन के पेड़ो को काटकर उन्हें भट्टी में जलाकर कोयला बनाकर अपने काम में और अपने पेशेवर साथियों को बेचना शुरू कर दिया। ऐसा करते-करते, धीरे-धीरे एक दिन बेशकीमती चंदन का पूरा बाग कोयला के रूप में तब्दील होकर बिक और उसकी भट्टी में जल गया।
          एक दिन राजा घूमते हुए उस लोहार के घर के बाहर से गुजर रहे थे तो राजा ने सोचा अब तो लोहार चंदन की लकड़ी बेच-बेचकर बहुत अमीर हो गया होगा। सामने देखने पर लोहार की स्थिति जैसे की तैसी ही बनी हुई नजर आई। यह देखकर राजा को बहुत आश्चर्य हुआ। अनायास राजा के मुँह से निकला यह कैसे हो सकता है! राजा ने अपने जासूसों से सच का पता लगावाया तो पाया चंदन के बाग की बेशकीमती लकडी को तो उसने कोयला बनाकर बेच दिया और अपनी भट्टी में प्रयोग कर लिया है। यह सुनकर राजा ने अपना माथा पीटते हुए कहा कि उपहार,भेंट और दान किसी पात्र व्यक्ति को ही देना चाहिए। तब राजा ने लोहार को बुलाकर पूछा,तुम्हारे पास चंदन की एकाध लकडी बची है या सबका कोयला बनाकर बेच दिया? लोहार के पास कुल्हाडी में लगे चंदन के बेंट के अलावा कुछ भी नहीं था,उसने वह लाकर राजा को दे दिया।
          राजा ने लोहार की कुल्हाड़ी का बेंट लेकर लोहार को चंदन के व्यापारी के पास भेज दिया, वहाँ जाकर लोहार को कुल्हाड़ी के बेंट के बदले अच्छे खासे पैसे मिल गये। यह देखकर लोहार भौचक रह गया, उसकी आंखो में आंसू आ गये। उसकी स्थिति " अब पछताये होत क्या,जब चिड़ियां चुंग गयी खेत " जैसी हो गयी थी। वह बहुत पछताया और फिर उसने रोते हुए आँसू पोछकर राजा से एक और बाग देने की विनती की। तब राजा ने उससे कहा कि " ऐसी भेंट जीवन में बार-बार नहीं मिलती हैं बल्कि, एक बार ही मिलती है।"
         अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को संविधान प्रदत्त अधिकार विशेषकर मतदान का अधिकार चंदन के बाग की भेंट की तरह मिले हुए हैं। इन्हें पांच किलो मुफ्त राशन, सब्सिडी पर मिल रही घरेलू गैस,शौचालय एवं किसान सम्मान निधि के नाम पर मिल रही चन्द आर्थिक सहायता के लालच में बेचा जा रहा है। अगर संविधान प्रदत्त अधिकारों के संरक्षण के लिए एकजुट होकर सड़क से लेकर संसद तक विरोध-प्रदर्शन नहीं किया गया तो एससी-एसटी और ओबीसी की हालत उस लोहार जैसी होने में देर नहीं लगेगी। लोकतंत्र के आवरण में छुपी वर्तमान तानाशाह प्रवृत्ति की सत्ता की नीयत साफ नहीं लग रही है। यदि 2024 के लोकसभा चुनाव में आरएसएस से निकले मनुवादी भाजपाई एक बार फिर संसद में कब्जा करने में सफल हो जाते हैं तो डॉ आंबेडकर का न्याय पर आधारित संविधान बदलना तय है। डॉ.भीमराव आंबेडकर जी के अथक प्रयासों से पिछड़े समाज को जो सांविधानिक अधिकार मिले हैं जिनकी वजह से उसका एक बड़ा हिस्सा सामाजिक,राजनीतिक और आर्थिक रूप से एक सशक्त मध्यम वर्ग बनकर उभरा है। यह वर्ग अच्छा खा रहा है, उनके बच्चे देश विदेश की प्रतिष्ठित संस्थाओं में पढ़ और रिसर्च कर रहे हैं, सूट,बूट और टाई पहनकर मूछों पर ताव देकर आज़ादी से घूम रहा है, घोड़ी पर चढ़कर बारात निकाल रहा है, अच्छे मकानों और हवेलियों में रह रहा है, बड़ी बड़ी कारों में घूम रहा है, शिक्षित होकर बौद्धिक वर्ग विभिन विषयों और मुद्दों पर सड़क से लेकर उच्च संस्थाओं में सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ सीना तानकर लिख और दहाड़ रहा है, जिन्हें आज़ादी से पहले चारपाई पर बैठने का अधिकार नहीं था, वे आरक्षण की वजह से बड़े-बड़े अधिकारी बन रहे हैं, ऐसा होने से मनुवादियों को लग रहा है कि वे उनके सिर पर बैठ रहे हैं, ये सब मनुवादियों को अच्छा नहीं लग रहा है। संविधान बदलने के बाद वही पुरानी मनुस्मृति की व्यवस्था लागू होने की पूरी सम्भावना है जो सामाजिक व्यवस्था में ऊंच-नीच और भेदभाव से भरी जाति व्यवस्था फिर से कायम होने की पूरी सम्भावना दिख रही है। डॉ.आंबेडकर की सोच की दूरदर्शिता की वजह से राजनैतिक आरक्षण के माध्यम से जो एससी और एसटी के 131 सांसद हर लोकसभा में पहुंच रहे हैं, संविधान बदलने के बाद एससी और एसटी एक भी सांसद बनाने के लिए तरस जाएगा। बहुजन समाज को मिल रहे चुनावी प्रलोभनों से निजात पानी होगी। बहुजन समाज (एससी- एसटी और ओबीसी) की सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि सारे सामाजिक और राजनीतिक द्वेष और दुराग्रह दरकिनार कर 2024 के लोकसभा चुनाव में संविधान,लोकतंत्र और उसके सामाजिक न्याय की पक्षधर पार्टियों के गठबंधन को ही जिताने में अपनी सारी राजनीतिक ऊर्जा लगाएं और समाज को भी प्रेरित व जागरूक करें।
        जब डॉ.आंबेडकर ने भारतीय संविधान की रचना की थी,वह मनुवाद पर आंबेडकर द्वारा किया गया करारा प्रहार था। इसलिए मनुवादी आंबेडकर और उनके संविधान से घोर नफ़रत करते हैं और उन्होंने ऐलानिया तौर पर भारतीय संविधान को स्वीकार करने से मना भी कर दिया था। सांविधानिक व्यवस्थाओं को देखकर मनुवादियों को सांप सूंघ गया था। संविधान ने एससी -एसटी और ओबीसी को केवल आरक्षण ही नहीं दिया,उसने बहुजन समाज को बहुत कुछ दिया है, जैसे आठ घण्टे का कार्य दिवस, महिलाओं को मातृत्व अवकाश और महिलाओं को तो डॉ आंबेडकर ने इतना दिया है, जितना उन्हें देश के सारे समाज सुधारक नहीं दे पाए। इसके बावजूद देश की 50प्रतिशत आबादी को डॉ.आंबेडकर के योगदान का एहसास नहीं है। देश के वंचित वर्ग के जीवन में जो भी बदलाव आया है वह सिर्फ डॉ.आंबेडकर और उनकी सांविधानिक व्यवस्थाओं से ही सम्भव हो पाया है। जिन्हें डॉ.आंबेडकर और उनके संविधान से प्रेम या लगाव नहीं है,अर्थात उससे नफ़रत करते हैं तो वे संविधान के माध्यम से डॉ.आंबेडकर द्वारा दी गयी सारी सुविधाओं और लाभों को त्याग दें,तब उन्हें संविधान की अहमियत पता चल जाएगी। इसलिए वर्तमान सत्ता द्वारा संविधान के बदलाव की संभावना से उपजने वाले गम्भीर दुष्प्रभावों को भांपते हुए बहुजन समाज को समय रहते ही सावधान और सजग हो जाना चाहिए और उस लोहार को मिली चंदन की लकड़ी की कीमत की तरह अपने सांविधानिक अधिकारों की कीमत पहचान कर संविधान की रक्षा करने की दिशा में आज से ही गम्भीर विचार-विमर्श के माध्यम से सामाजिक व राजनीतिक स्तर पर सार्थक प्रयास शुरू कर देना चाहिए अन्यथा लोहार की तरह बेशकीमती चीज खो जाने के बाद पछतावे और हाथ मलने के सिवा कुछ हासिल नहीं होने वाला। भारतीय संविधान की अनमोल विरासत देश के हर वर्ग और नागरिक के हित में है। इसलिए इसके सरंक्षण की जिम्मेदारी भी सभी नागरिकों की बनती है। वर्तमान सत्त्तारुढ़ दल द्वारा बिना एजेंडे के संसद का विशेष सत्र बुलाने के गूढ़ निहितार्थ को समझने की जरूरत है। राजनीतिक और बौद्धिक गलियारों में संभावित बिंदुओं पर प्रकाश डालने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है, लेकिन इस सत्र के एजेंडों की असलियत सत्र शुरू होने के बाद ही सामने आ पाएगी।

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