साहित्य
- जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
- लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
Friday, May 26, 2023
सत्ता खोने के डर से वर्तमान लोकसभा अपने निर्धारित कार्यकाल से पहले भंग होने की आशंका-नन्दलाल वर्मा (सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
Wednesday, May 24, 2023
मैं गुनाहगार हूं- अखिलेश कुमार अरुण
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अखिलेश कुमार 'अरुण' ग्राम- हज़रतपुर जिला-लखीमपुर खीरी मोबाईल-8127698147 |
Friday, May 12, 2023
उचक्के-अखिलेश कुमार 'अरुण'
(लघुकथा)
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अखिलेश कुमार अरुण ग्राम हजरतपुर परगना मगदापुर जिला लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश मोबाइल 8127698147 |
मैं अपने घर से निकली ही थी कि बाईक सवार
दो उचक्के एक राह चलती महिला के दाहिने हाथ की कान की बाली पर हाथ साफ़ कर गए थे।
दौड़कर उस महिला के पास पहुंची जो मारे दर्द के चीख-चिल्ला रही थी, कान की लोर
लहूलुहान थी। देखते-ही देखते 10-१२ लोग जमा हो चुके थे जितने मुहँ उतनी बातें. “बहन, जी सोने के कुंडल थे क्या?”
भर्राए गले से बोली “नहीं नहीं भईया, इस महंगाई के ज़माने में
....आर्टिफीसियल ज्वेलरी पहनने को मिल जाए यही बहुत है।”
भीड़ से किसी ने कहा,
“अपराधी तो दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं।”
पीड़ित महिला बोल
पड़ी, “गलती उनकी नहीं है, मेरे भी तीन बेटे हैं, पूरा जीवन पेट काट-काट कर
उनको पढ़ाया कि दो-चार पैसे के आदमी बन जायेंगे, बड़ा बेटा 30 वर्ष का होने को आया
है....खाली पड़ा रहता है...समाज-परिवार से अलग-थलग, यह भी होंगे उन जैसे बच्चों में
से कोई एक?”
सब लोग जा चुके थे
मेरे भी दो बेटे हैं, बड़े ने दो साल पहले एम०टेक० पास किया है और दुसरे ने इस साल
पालीटेक्निक.......?
बुर्का-मिन्नी मिश्र
पढ़िये आज की रचना
शेर का परिवार-अखिलेश कुमार अरुण
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