साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Thursday, November 10, 2022

धरती पुत्र की गैरहाजिरी में समाजवादी पार्टी की बढ़ सकती हैं कई प्रकार की चुनौतियां/मुश्किलें और कठिन परीक्षा से भी गुजरना पड़ सकता है:

राजनीति चर्चा 
एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर)
वाणिज्य विभाग
वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी
      
मुलायम सिंह यादव विगत कई सालों से अपनी पार्टी के संरक्षक की भूमिका में थे लेकिन, सामाजिक और राजनीतिक अवसरों पर उनकी उपस्थिति और मौजूदगी अखिलेश यादव और लाखों कार्यकर्ताओं के लिए एक ऐसे वटवृक्ष के समान थी जिसकी छत्रछाया में सपाईयों को " जिसने न कभी झुकना सीखा, उसका नाम मुलायम है" का नारा लगाने में एक अलग तरह की अनुभूति और गर्व महसूस होता था।
         मुलायम सिंह की रिक्तता से सपा की आगे की राजनीतिक राहें कितनी मुश्किल होंगी या सपा की यात्रा कितनी आसान और लम्बी होगी, बहुत कुछ उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी अखिलेश यादव के सियासी कौशल पर निर्भर करेगा। अब भविष्य का राजनीतिक सफर उन्हें पिता की छत्रछाया के बिना ही तय करना है जिसकी डगर थोड़ी कठिन जरूर दिखती है जो समाजवादी पार्टी के लिए चुनौती भरी हो सकती है। नेताजी के रहते चाचा शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान दिखी भूमिका और नाराज़गी तथा मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव के बीजेपी में चले जाना बहुत कुछ समाजवादी पार्टी की राजनीतिक दिशा और दशा तय होने पर असर डालने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
माननीय मुलायास सिंह शोक-सभा
         
 निकट भविष्य में में अखिलेश यादव को कई बड़े व कड़े राजनीतिक फैसलों और इम्तहानों से गुजरना होगा। उन्हें एक बड़ी सत्ताधारी भाजपा के साथ चाचा शिवपाल सिंह यादव और उनकी पार्टी से भी निपटने के लिए बेहद राजनैतिक कौशल,संयम और दूरदर्शिता के साथ पेश आना पड़ेगा। मुलायम सिंह की मृत्यु से रिक्त हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव भी होना है। निकाय चुनाव भी निकट है और पार्टी के लिए सबसे बड़ी परीक्षा तो 2024 का लोकसभा चुनाव है। ‘नेता जी’ के न रहने से सपा कार्यकर्ताओं को उनके भीतर उपजे सदमे से भी उबारना है और उन्हें भविष्य में होने वाले चुनावों के लिए नयी ऊर्जा और आत्मविश्वास के साथ तैयार करना सपा के लिए एक बड़ी चुनौती और परीक्षा हो सकती है। अखिलेश यादव के सामने पार्टी के आधार वोट बैंक के साथ ही अपने वृहद राजनीतिक कुनबे को साधना और संभालना बड़ी चुनौती है। उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव काफी समय से खफा चल रहे हैं लेकिन, बीच-बीच में मुलायम सिंह यादव उन्हें शांत कर दिया करते थे। इसी कारण वह विधानसभा चुनाव में सपा के साथ तो दिखाई देते थे लेकिन,बेमन जैसी स्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता है। फ़िलहाल,मुलायम सिंह के बाद अब परिवार में कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई नहीं देता है जो सबको साधकर चल सके,यह बड़ी जिम्मेदारी भी अखिलेश यादव पर ही होगी।
           मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की भिन्न राजनीतिक पृष्ठभूमि और सियासी रणनीति के दृष्टिगत एक बहुत ही स्वाभाविक सवाल खड़ा होता है कि ‘नेताजी’ के साथ कार्यकर्ताओं व समर्थकों के लंबे अरसे से कायम उनके भावनात्मक रिश्ते की डोर को अखिलेश यादव कितनी मजबूती के साथ पकड़कर रख पाते हैं? इसके लिए उन्हें नए सिरे से बेहद सावधानी से व्यापक स्तर पर रणनीति तैयार करनी होगी। मुलायम सिंह यादव के साथ लंबे अरसे से काम करते आ रहे बुजुर्ग नेताओं के साथ अखिलेश यादव सामंजस्य स्थापित कर अपने नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ‘नेताजी’ की विरासत को आगे बढ़ा सकती है। हालांकि, मुलायम सिंह यादव कई अवसरों पर अखिलेश यादव को आशीर्वाद देकर स्थिति साफ कर चुके हैं जिससे उनके राजनीतिक उत्तराधिकार व विरासत को लेकर कोई संशय नही रह जाता है। इसके बावजूद मुलायम सिंह के न रहने पर ऐसी अप्रत्याशित राजनैतिक घटनाक्रम की संभावना से भी इनकार नही किया जा सकता है,जो मुलायम सिंह की उपस्थिति मात्र से अंकुरित होने का साहस नही जुटा पाती थीं क्योंकि, सत्ता और पैसा की राजनीति में सब सम्भव माना जाता है अर्थात अपनों को छोड़कर दुश्मन से हाथ मिलाने और दुश्मन को आप से हाथ मिलाने की कब और कैसी परिस्थितियां पैदा हो जाएं, वर्तमान राजनीति में ऐसी सम्भावनाएं सदैव बनी रहती है।
           मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव से होगी अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह की राजनीतिक परिपक्वता और एकता की परीक्षा। एकजुट रहेगी या बंट जाएगी मुलायम सिंह की राजनीतिक विरासत ? इस सीट पर मुलायम सिंह यादव का उत्‍तराधिकारी कौन होगा,यह आने वाले कुछ दिनों में एक ऐसा प्रश्‍न बनने वाला है जिससे अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह दोनों की राजनीतिक परिपक्‍वता,दूरदर्शिता और एकता की परीक्षा हो जाएगी। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि मैनपुरी सीट से मुलायम सिंह के राजनीतिक उत्‍तराधिकारी के चयन में यादव परिवार से कई विकल्प हो सकते,लेकिन सबसे ज्यादा सम्भावना धर्मेंद्र यादव पर जाकर टिकती नज़र आ रही है, क्योंकि सपा के आंदोलनों में वह सबसे अधिक सक्रिय रहते हैं। यह सीट मुलायम खानदान के पास लंबे समय से रही है और वर्तमान में इसी एक सीट की वजह से लोक सभा में यादव परिवार का प्रतिनिधित्व बचा था। इसलिए सपा के लिए यह सीट बचाना उसकी और यादव परिवार की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ अतिमहत्वपूर्ण विषय माना जाता है है।  गुजरात, हिमाचल आदि राज्य में विधानसभा चुनाव के साथ मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव होने की उम्मीद है। समाजवादी पार्टी और यादव परिवार की इस रिक्त सीट को बचाने की एक बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि इससे पहले हुए उपचुनावों में एक मजबूत आधार वोट बैंक के बावजूद रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा सीट पर सपा मात खा चुकी है। इसके साथ ही कुछ दिनों बाद होने वाले नगर निकाय चुनाव में पार्टी के जनाधार को बरकरार रखना भी एक बड़ी चुनौती है।
           निःसंदेह, अखिलेश यादव की राजनीतिक तुलना मुलायम सिंह यादव से नहीं हो सकती है ,लेकिन अपनी लम्बी सियासी यात्रा में मुलायम सिंह यादव ने कई राजनीतिक और कूटनीतिक मानक गढ़े और चौंकाने वाले निर्णय भी लिए। मुलायम सिंह यादव जमीनी राजनीति के माहिर खिलाड़ी थे। वह ज़मीनी कार्यकर्ताओं के माध्यम से जनता की नब्ज बखूबी पहचानते थे। कोई नाराज हो गया तो उसे मना लेना उन्हें बखूबी आता था। विरोधी दलों के नेताओं से भी उन्होंने हमेशा निजी रिश्ते बनाकर ही राजनीति की। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित तमाम अन्य बीजेपी और अन्य दलों के नेता मुलायम सिंह यादव से अपने निजी रिश्तों की दुहाई देते दिखाई देते हैं। उम्मीद है कि अखिलेश यादव अपने पिता जी की राजनीतिक विरासत से बहुत कुछ सीखकर उनके नक्शे कदम पर चलकर उनकी राजनीतिक विरासत को आगे ले जाकर उसको अनवरत समृद्ध करने की दिशा में प्रयासरत रहेंगे। बदले राजनीतिक परिवेश में सियासी गलियारों में अखिलेश यादव के सियासी परीक्षा में पास और फेल होने की चर्चाएं होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
            हिंदुस्तान में कई नेताओं के दुनिया से जाने के बाद उनके राजनैतिक वारिसों ने विरासत में मिली सियासत को एक नई ऊर्जा और स्फूर्ति के साथ स्थापित और तराशकर बुलंदियों पर ले जाने का काम किया है। मुलायम सिंह यादव के जाने के बाद अखिलेश यादव सपा के लिए नया अवतार होंगे या नहीं, यह तो वक्त बताएगा,लेकिन आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी के जाने के बाद उनके बेटे जगनमोहन रेड्डी की पैदल यात्रा से आंध्र प्रदेश की सियासत बदलने का एक अच्छा उदाहरण भी हमारे सामने है जिससे अखिलेश यादव बहुत कुछ सीख सकते हैं।
इति

No comments:

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

सबसे ज्यादा जो पढ़े गये, आप भी पढ़ें.