साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Thursday, May 27, 2021

नन्दीलाल के दोहे

नन्दीलाल के दोहे

 

भाव प्रबल रसपूर्ण हो, शाश्वत छंद अनूप।
कविता का प्रारूप होज्यों वनिता का रूप।।
   
मेघ घिरे पुरवा चली, रिमझिम पड़ी फुहार ।
तपती वसुधा का जहाँकुछ कम हुआ बुखार।।
    
ज्यों-ज्यों बैरी दिन चढ़े, जेठ सताये खूब।
सराबोर अँगिया हुईगई स्वेद से डूब।।
  
रुचि- रुचि कर एड़ी रँगे, वर माँगे भर कोछ।
लत्ता धरे सँभाल कर, पाँव महावर पोछ।।
  
मोम हृदय पर पीय कालेती चित्र उकेर।
बहुत कठिन है दिल जहाँ, हो पत्थर का ढेर।।
  
खत में  उनकी ओर से, लिख करके पैगाम।
डाल दिया फिर डाक में, खुद ही अपने नाम।।
 
यह समाज का बन गया, कुत्सित कलुषित रोग।
हो हल्ला कर चार दिन, चुप हो जाते लोग।।
 
पहले से ही तंग थी, और हो गई तंग।
भीग श्वेद में कंचुकी, चिपक गई सब अंग।।

पूनम की आभा कभी, लगे भोर की धूप।
निर्मल निर्झर सा झरे, तरुणाई में रूप।।
 
मैं कितना धनहीन हूँवह कितने धनवान।
उनके भी भगवान हैं, अपने भी भगवान।।
 
रूपवती का रात में, लख श्रृंगार अनूप।
गजब गुजारे शशि प्रभानखत निहारें रूप।।
 
घी की चुपड़ी रोटियाँथाली भर-भर भात।
घर की परसन हार फिर, हो अँधियारी रात।।
 
को पहिचानै पीर का, समझै कौनु सुभाव।
मूरुखु मनई कै रहा, चाँटि- चाँटि फिरि घाव।।
 
सब विधि से संपूर्ण हैदे यश वैभव ज्ञान।
मंदिर के भगवान सेभीतर का भगवान।।
 
अंतर्मन निर्मल रखे, दे मेहनत पर ध्यान।
अपने पावन देश काहै भगवान किसान।।
 
होता है मजदूर भीएक सहज इंसान।
मंदिर मस्जिद सब जगह, है उसका भगवान।।
 
एक लिखोअच्छा लिखो, घोंचो नहीं पचास।
कुछ तो कविता से नया, हो मन को आभास।।
 
जंगल में चारों तरफ, धूम मच गई धूम।
हँसकर लिया बिलार ने, केहर का मुख चूम।।
 
अलग-अलग संसार का अलग-अलग व्यवहार।
कोई सब कुछ जीतकर, सब कुछ जाता हार।।
 
धन के लालच में गया, सहज आदमी डूब।
हरियाली पर चल रहेआज कुल्हाड़े खूब।।
 
सब पर है भारी प्रभू, एक आपका नाम।
संकट करिए दूर सब ,जग प्रति पालक राम।।
 
क्या बतलाऊँ पीय को, कैसे लगी खरोंच।
छत पर थी,कल गाल पर, मार गया खग चोंच।।
 
खेल-कूद कर प्यार से, विभावरी के अंक।
शीश झुकाये प्रात में, छुपने चला मयंक।।
 
शगुन करे हँस हाथ से, चूड़ी धरे उतार।
कनक कलाई प्यार से, सहलाए मनिहार।।
 
काम निगोड़ा कब थका,  करके जी भर तंग।
फागुन बीता खेल कर, खूब पिया सँग रंग।।
 
जीत गए तो जंग है,हार गए तो खेल।
धीरे धीरे चल रही, जीवन रूपी रेल।।
 
ऊँच-नीच छोटा-बड़ा, हो ब्रहमन या शेख ।
मेटे से मिटता नहीं, हाथ लिखा विधि लेख।।
 
लगते हैं थोड़े बहुत, कुछ लक्षण कुछ योग।
मैं इतना पागल नहीं, जितना समझें लोग।।
 
सूख गई बंधुत्व की, एक नीरदा और।
राजनीति तरु पर खिला कूटनीति का बौर।।
 
चाक देख डंडा हँसा ,माटी देख कुम्हार।
दोनों मिल रचने लगे ,एक नया संसार।।
 
बिन प्रीतम के पा रही, तरुणाई आनंद।
आँगन होली खेलती, भावज और ननंद।।
 
जिन्हें देख अच्छे भले, मन में जायें काँप।
धारण करके केचुली, बने केंचुए साँप।।
 
महुआरी की गंध से, कर फागुन अनुबंध।
कोयल के स्वर में लिखे, मधुरिम छंद प्रबंध।।

रंग न देखो रूप पर ,लगे हजारों शूल।
यौवन में अच्छे लगे,काँटेदार बबूल।।
 
रत्न जड़ित चूनर गया, कोई तन पर डाल।
है धरती की देह पर, प्राची मले गुलाल।।
 
भीगे तन सौंदर्य की, निखरी छटा अनूप।
अँजुरी में भर नीर जब, गोरी निरखे रूप।।
 
शंक्व,वृत्त,आयत,त्रिभुज, वर्ग, कोण, घन चित्र ।
है तन की रेखा गणित ,अपनी बड़ी विचित्र।।
 
पात- पात से रस चुये,अंग- अंग से प्यास।
तन झुलसाने  आ गया ,फिर बैरी मधुमास।।
 
है फागुन करने लगा, पल छिन नये कमाल।
दाई बैठी धूप में, बाबा चूमें गाल।।
 
गोरी बैठी सेज पर, प्रात सँवारे रूप। 
बाहर खिड़की खोल कर, झाँक रही है धूप।।
 
बंद लिफाफे में रखा, मन का प्रेम प्रसून।
बाँच सके तो बाँच ले ,तू खत का मजमून।।
 
अनियारे से नैन है, अलसाये सब अंग।
बिखरे बिखरे केस ज्यों, भरे रूप में रंग।।
 
जितने तेरे कर्म हैं, उतने तेरे रूप।
नारी तेरा विश्व में, हर किरदार अनूप।।
 
उछल कूद करता फिरे, इत उत मारे माथ।
मानो दर्पण लग गया ,जो बंदर के हाथ।।
 
अंगराग से हो गया, चंद्रप्रभा सा रूप।
मन पागल है देख कर, आनन अजब अनूप।।
 
शब्द शब्द से छंद की, झलक रही औकात।
वाह वाह की बात है, वाह वाह क्या बात।।
 
चाहे जितना मोल ले, चूड़ी का इस बार।
एक एक कर प्यार से, पहना रे मनिहार।।
 
अधिकारी को यश मिला, चपरासी को डाँट।
सरकारी धन का हुआ, खुल कर बंदर बाँट।।
 
आतुर है ऋतुराज जो, करने को अभिसार।
पतझड़ में पाकर खड़ी, तन से वस्त्र उतार।।
 
रूप -सिंधु में आ गई, सुंदरता की बाढ़।

देखे अपने आप को, फागुन आँखें काढ़।।

 


नन्दी लाल

पता-हनुमान मंदिर के पीछे लखीमपुर रोड

गोला गोकर्णनाथ खीरी, 991887993

Wednesday, May 26, 2021

कविता, महामारी

 

महामारी

महामारी ! महामारी !

बख़्श दे अब जान हमारी।


पहले से तबाह थे,

महंगाई और बेरोजगारी की आफतों से,

अब तूने दिखाई न भागने की लाचारी।

कब तक मास्क पहने, घर में बैठें-

दूरी बनाएं, अस्पताल जाएं-

अब सरकार से दूरी हुई हमारी।

 

कोरोना का उतना रोना नहीं,

जितना शासन की लापरवाही का ।

महामारी से उतनी लाशें हुईं नहीं,

जितनी लाचार चिकित्सा एवं दवाई से।

भूख, भय, अपनों से दूरी-

एवं अस्पतालों की अत्याचारी से,

संकट वक्त है महामारी का।

 

लाशों पर राजनीति और बिजनेस,

लाशों की कोई कदर नहीं,

श्मशानों, कब्रिस्तानों में जगह नहीं,

नदी किनारे कुत्ते नोचें, रोड किनारे कौए-गिद्ध,

अपनों ने लाशों को त्यागा,

कर्मकांड हो कैसे सिद्ध।

 

कहीं अंग निकासी, इलाज पर लूट-

न ऑक्सीजन और न जीवन पर छूट।

आमजन ने सब कुछ खोया,

इस महामारी में-

कभी घर में, अस्पतालों में रोया

तो कभी हो लाचार जीवन की लाचारी में।

 

हौसला रखें, सावधानी रखें।

संभव हो एक दूजे को आगे आएं।

अंधभक्ती न करें सरकारी।

महामारी ! महामारी !

तेरे निश्चित ‘अंत’ की है, बारी ।।




संतोष कुमार अंजस

लखीमपुर-खीरी(उ०प्र०)

बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष "बुद्ध का संदेश 'अप्प दीपो भवः'

बुद्ध का संदेश 'अप्प दीपो भवः'

“बुद्ध ने 'अप्प दीपो भवः' का शाश्वत संदेश देते हुए कहा था कि अपना दीपक स्वयं बनो। उठो, बैठो, चलो, खाओ, पियो, सोओ, विश्राम करो, जागरण के सूत्रों को अपने भीतर धारण करो। जिस दिन से हमारे जीवन में जागृति आएगी, उसी दिन से हमारा सच्चा जीवन शुरू होगा।”

 

                                                                                                                           देवेन्द्रराज सुथार

बुद्ध पूर्णिमा को गौतम बुद्ध के अवतरण दिवस के रूप में बौद्धों द्वारा मनाया जाता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, बुद्ध 29 वर्ष की आयु में घर छोड़कर संन्यास का जीवन बिताने लगे थे। उन्होंने एक पीपल वृक्ष के नीचे करीब 6 वर्ष तक कठिन तपस्या की। वैशाख पूर्णिमा के दिन ही बुद्ध को पीपल के वृक्ष के नीचे सत्य के ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बुद्ध को जहां ज्ञान की प्राप्ति हुई वह जगह बाद में बोधगया कहलाई। इसके पश्चात महात्मा बुद्ध ने अपने ज्ञान का प्रकाश पूरी दुनिया में फैलाया और एक नई रोशनी पैदा की। महात्मा बुद्ध का महापरिनिर्वाण वैशाख पूर्णिमा के दिन ही कुशीनगर में 80 वर्ष की आयु में हुआ था। बुद्ध का जन्म, सत्य का ज्ञान और महापरिनिर्वाण एक ही दिन यानी वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुआ। इस कारण वैशाख महीने में पूर्णिमा के दिन ही बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है।

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चित्रकार-विजय वीर 

 

दरअसल, बुद्ध एक नाम नहीं बल्कि एक उपाधि है। बुद्ध हमें धर्म का सही पालन करना सिखाते हैं। हम सभी गलत धारणाओं और अशुद्धियों - घृणा, लालच, अज्ञानता द्वारा निर्मित भ्रम के कोहरे में रहते हैं। लेकिन बुद्ध इस घने कोहरे से मुक्त होने की अवस्था है। बुद्ध ने 'अप्प दीपो भवः' का शाश्वत संदेश देते हुए कहा था कि अपना दीपक स्वयं बनो। उठो, बैठो, चलो, खाओ, पियो, सोओ, विश्राम करो, जागरण के सूत्रों को अपने भीतर धारण करो। जिस दिन से हमारे जीवन में जागृति आएगी, उसी दिन से हमारा सच्चा जीवन शुरू होगा। अचेतन और यांत्रिक जीवन को अपना जीवन कहना सही नहीं है, यह समय काटने के अलावा और कुछ नहीं है। ऐसे जीवन में कोई आनंद नहीं है। यह सिर्फ दुखों की एक शृंखला है। श्री श्री रवि शंकर के अनुसार, तुम बुद्ध के जितना निकट जाओगे तुम्हें उतना ही अधिक आकर्षण मिलेगा, तुम ब्रह्मज्ञानी से कभी ऊबते नहीं। तुम जितना समीप जाओगे तुम्हें उतनी ही अधिक नवीनता और प्रेम का अनुभव मिलता है। एक अथाह गहराई की तरह है।

 

बुद्ध प्रत्येक मनुष्य को शांत और सुखी बनाकर उसके दुख और व्याकुलता को दूर करना चाहते थे और एक समतावादी समाज की स्थापना करना चाहते थे, जिसमें सभी को विकसित होने, न्याय पाने, उच्च और निम्न के भेदभाव को समाप्त करने, लोकतांत्रिक अधिकार स्थापित करने का अवसर मिले। समुदायों के बीच असंतोष समाप्त किया जाना चाहिए। बुद्ध ने न तो अपनी शिक्षाओं की प्रशंसा को अधिक महत्व दिया और न ही आलोचकों की निंदा की। बुद्ध की लोकतांत्रिक मूल्यों में अटूट निष्ठा थी। उन्होंने सरकारी अधिकारियों को सलाह दी कि कानूनों और नियमों के अनुसार काम किया जाना चाहिए और यदि नियमों और कानूनों को बदलना है, तो वहां से संसद में बहस को मंजूरी दी जानी चाहिए। शासन के विभिन्न विभागों में तालमेल होना चाहिए और आपसी अविश्वास की स्थिति नहीं होनी चाहिए। उनके द्वारा स्थापित भिक्षु और भिक्षुणी दोनों संघ पूरी तरह से लोकतांत्रिक तरीके से चलाए जाते थे।

 

ओशो कहते हैं, यदि कोई व्यक्ति जीवन का अनुभव करता है, तो उसका आनंद हर दिन बढ़ना चाहिए। बुद्ध से किसी ने पूछा, तुम कौन हो? क्योंकि इतने सुंदर थे! देह तो उनकी सुंदर थी ही, लेकिन ध्यान ने और अमृत की वर्षा कर दी थी। एक अपूर्व सौंदर्य उन्हें घेरे था। एक अपरिचित आदमी ने उन्हें देखा और पूछा, तुम कौन हो? क्या स्वर्ग से उतरे कोई देवता? बुद्ध ने कहा, नहीं। तो क्या इंद्र के दरबार से उतरे हुए गंधर्व? बुद्ध ने कहा, नहीं। तो क्या कोई यक्ष? बुद्ध ने कहा, नहीं। ऐसे वह आदमी पूछता गया, पूछता गया, क्या कोई चक्रवर्ती सम्राट? बुद्ध ने कहा, नहीं। तो उस आदमी ने पूछा, कम से कम आदमी तो हो! बुद्ध ने कहा, नहीं। तो क्या पशु पक्षी हो? बुद्ध ने कहा, नहीं। तो उसने फिर पूछा थककर कि फिर तुम हो कौन, तुम्हें कहो? तो बुद्ध ने कहा, मैं सिर्फ एक जागरण हूं। मैं बस जागा हुआ, एक साक्षी मात्र। वे तो सब नींद की दशाएं थीं। कोई पक्षी की तरह सोया है, कोई पशु की तरह सोया है। कोई मनुष्य की तरह सोया है, कोई देवता की तरह सोया है। वे तो सब सुषुप्ति की दशाएं थीं। कोई स्वप्न देख रहा है गंधर्व होने का, कोई यक्ष होने का, कोई चक्रवर्ती होने का। वे सब तो स्वप्न की दशाएं थीं। वे तो विचार के ही साथ तादात्म्य की दशाएं थीं। मैं सिर्फ जाग गया हूं। मैं इतना ही कह सकता हूं कि मैं जागा हुआ हूं। मैं सब जागकर देख रहा हूं। मैं जागरण हूं, मात्र जागरण! जो समाधि को उपलब्ध है, वही जागा हुआ है। इसलिए ओशो ने समाधिस्थ लोगों को बुद्ध कहा है।

 

बुद्धत्व की संभावना प्रत्येक व्यक्ति के भीतर है। संक्षेप में प्रत्येक व्यक्ति बोधिसत्व है। बुद्ध को जिस घटना ने विचलित किया था, और उसके बाद उनका पूरा जीवन बदल गया था। ऐसी ही घटना हमारा भी जीवन बदल सकती है। ध्यान लगाने के लिए अब हमें जंगल में जाने की जरूरत नहीं है। हम अपने कार्यस्थल व बीच बाजार में भी ध्यान लगा सकते हैं। बुद्धत्व के बारे में ओशो कहते हैं, 'बुद्धत्व को उपलब्ध व्यक्ति एक अभिनेता ही है। वह इससे अन्यथा हो ही नहीं सकता। वह जानता है कि वह शरीर नहीं है, फिर भी वह इस तरह व्यवहार करता है, जैसे मानो वह शरीर ही हो। वह जानता है कि वह मन नहीं है, फिर भी वह इस तरह उत्तर देता है, जैसे वह मन ही हो। वह जानता है कि वह न तो एक छोटा बच्चा है, न ही एक युवा और न एक वृद्ध व्यक्ति ही, न वह पुरुष है और न स्त्री, फिर भी वह इस तरह व्यवहार करता है, जैसे कि वह वही है। बुद्धत्व को उपलब्ध व्यक्ति को अभिनेता बनने की आवश्यकता नहीं है, अपने बुद्धत्व से ही वह अपने को अभिनेता पाता है और कोई दूसरा विकल्प वहां है ही नहीं।'

 

देवेन्द्रराज सुथार

- देवेन्द्रराज सुथार

पता- गांधी चौक, आतमणावास, बागरा,

जिला-जालोर, राजस्थान, 343025

मोबाइल नंबर- 8107177196

कोविड-19, टीकाकरण

 

यह फैसला तो पहले ही हो जाना चाहिए था

(प्रकाशित दैनिक सुबह-सवेरे में मध्यप्रदेश से  दिनांक- 26/05/2021)

 “ऐसा नहीं है कि टीकाकरण स्टाफ ठीक से काम नहीं कर रहा या फिर राज्य सरकारों की नीयत में कोई खोट है। मुख्य् मुद्दा तो टीकों की पर्याप्त संख्या में अनुपलब्धता का ही है। मध्यप्रदेश की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। फर्क इतना है कि गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री टीके के टोटे की बात सार्वजनिक रूप से कहतें हैं और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री अपना दर्द सार्वजनिक रूप से कह भी नहीं पाते।”

अजय बोकिल

देश में कोविड 19 टीकाकरण की गति तेज करने और टीके बर्बाद होने से बचाने के लिए केन्द्र सरकार ने 18 साल से ऊपर वालों के  टीकाकरण सेंटर पर ही रजिस्ट्रेशन करने का जो फैसला अब किया है, वह एक माह पहले ही हो जाना चाहिए था। क्योंकि आॅन लाइन ‍रजिस्ट्रेशन की शर्त के चलते 18 साल से ऊपर वाले ज्यादातर युवाअों को टाइम स्लाॅट ही नहीं मिल रहे थे। जिन्हें मिले भी तो उनमे से कई को टीकाकरण सेंटर से खाली हाथ लौटना पड़ा, क्योंकि वैक्सीन ही उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में बहुतों ने शहर से बाहर जाकर गांवों में स्लाॅट बुक करना शुरू कर दिया, जो असल में गांव वालो का हक मारना था। हालांकि गांवों में कोरोना टीके को लेकर अभी भी बहुत गलतफहमियां हैं। इससे निपटना अलग चुनौती है, लेकिन देश में टीकाकरण महाभियान को जिस व्यवस्थित तरीके से और केन्द्र तथा राज्यों के आपसी सहयोग से चलाने की जरूरत है, वह अभी भी नदारद है। जनता में संदेश यही है कि दोनों की दिलचस्पी टीकाकरण में कम, इस पर राजनीति करने में ज्यादा है। इस रवैए से टीकाकरण की उन व्यावहारिक दिक्कतों पर भी पर्दा पड़ रहा है, जिन्हें आपस में बैठकर सुलझाया जाना चाहिए। दुनिया में शायद ही कोई दूसरा देश होगा, जहां जनस्वास्थ्य से जुड़े टीकाकरण के संजीदा मसले पर भी ऐसी सियासत होती होगी।

 Coronavirus-Covid-19-Corona Vaccine Slots Is Not Available For 18 Years  Above From 23 May 2021 In Big Cities Of UP-18+ के लोग UP में वैक्सीन लगवाने  के लिए जाने से पहले पढ़ लीजिए

पूरे देश में कोरोना टीकाकरण जिस गति और प्रबंधन से चल रहा है, उसे देखकर यही लगता है कि यह अव्यवस्था और अदूरदर्शिता से भरा महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। अभी हालत यह है कि आधा दर्जन राज्यों ने अपने यहां टीकाकरण कार्यक्रम स्थगित कर दिया है, क्योंकि उनके पास टीके के डोज ही नहीं है। इसमें देश की राजधानी दिल्ली और भाजपा शासित कर्नाटक जैसे राज्य भी शामिल है। मध्यप्रदेश की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। फर्क इतना है कि गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री टीके के टोटे की बात सार्वजनिक रूप से कहतें हैं और भाजपाशासित राज्यों के मुख्यमंत्री अपना दर्द सार्वजनिक रूप से कह भी नहीं पाते। यूं केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में अपनी टीकाकरण नीति का हवाला देते हुए दावा किया था कि यह पूरी तरह संविधान सम्मत है और विचारपूर्वक बनाई गई है।

 

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री अभी भी डाॅ.हर्षवर्द्धन दावा करतें हैं कि राज्यों के पास पर्याप्त टीके के डोज हैं, वितरण व्यवस्था गड़बड़ है। सरकार भाग दौड़ कर रही है। जल्द ही सब ठीक होगा। उधर राज्यों की शिकायत है कि केन्द्र जरूरत के हिसाब से सप्लाई ही नहीं कर रहा है। हम क्या करें ? उधर भारतीय टीका निर्माता कंपनियों ने हाथ खड़े कर दिए हैं कि वो इतनी जल्दी इतने बड़े पैमाने पर टीके तैयार कर सप्लाई  नहीं कर सकती। यानी जुलाई तक अतिरिक्त टीके मिलने की संभावना नहीं के बराबर है। इस बीच कुछ राज्यों ने सीधे ग्लोबल टेंडर निकाल कर विदेशी कंपनियों से वैक्सीन मंगवाने की कोशिश की। लेकिन वह भी बेकार गई, क्योंकि वैक्सीन निर्माता कंपनियों ने साफ कह दिया कि वो राज्यों को सीधे सप्लाई नहीं करेंगे। अगर भारत सरकार उनसे टीका मंगवाए तो देने को तैयार हैं। इस पर केन्द्र सरकार की कोई प्रतिक्रिया अभी नहीं आई है। यानी मामला सुलझने की बजाए और उलझ गया है। अब राज्यों के सामने संकट यह है कि देश में वैक्सीन उपलब्ध होने में दो तीन महिने लगेंगे और विदेशी कंपनियां सीधे वैक्सीन देने तैयार नहीं है। ऐसे में वो वैक्सीन कहां से लाएं ? केन्द्र और राज्य सरकारों के आंकड़ों-आंकड़ोंके खेल में परेशान आम लोग हो रहे हैं। इसकी किसी को चिंता ही नहीं है।

 

गौरतलब है कि देश में 18 साल से ऊपर तक की पूरी आबादी यानी करीब 110 करोड़ लोगों को दो डोज के हिसाब से कुल 220 करोड़ टीके लगने हैं। ताकि कोविड की तीसरी लहर से यथासंभव बचा जा सके। अब तक की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 20 करोड़ लोगों का ही टीकाकरण हो सका है। देश में आम लोगों को टीका लगने का काम फरवरी में शुरू हो गया था। यानी चार माह में 20 करोड़ की आबादी ही टीकाकृत हो पाई है। ऐसे में 220 करोड़ डोज लगने में लोगों को कितना इंतजार करना पड़ेगा, यह आसानी से समझा जा सकता है।

 

ऐसा नहीं है कि टीकाकरण स्टाफ ठीक से काम नहीं कर रहा या फिर राज्य सरकारों की नीयत में कोई खोट है। मुख्य् मुद्दा तो टीकों की पर्याप्त संख्या में अनुपलब्धता का ही है। केन्द्र सरकार ने 80 फीसदी आबादी को टीका लगाने की मुहिम तो जोर-शोर से शुरू कर दी, लेकिन इतनी बड़ी तादाद में और समय पर  टीके आएंगे कहां से, इसकी कोई ठोस प्लानिंग पहले ही की जानी थी, वो अभी तक तो नहीं दिख रही है। हालत यह है कि घर में मुट्ठी भर आटा है और पूरे मुहल्ले को खाने का न्यौता दे डाला है। 

 

दूसरी बड़ी समस्या स्लाॅट लेकर भी टीका लगवाने नहीं पहुंचने वालों की है। इससे भी लाखों की संख्या में टीके बेकार हो रहे हैं। इसकी बड़ी वजह आॅन लाइन स्लाॅट बुकिंग की शर्त रही है। जबकि बहुत से लोग सीधे सेंटरों पर जाकर टीका लगवाने को तैयार हैं, जिनमें वो लोग भी हैं, जिनके लिए आॅन लाइन स्लाॅट बुकिंग अभी भी दिक्कत वाला काम है। केन्द्र सरकार ने आॅन लाइन बुकिंग की अनिवार्यता की जो शर्त रखी थी, उससे यही संदेश जा रहा था ‍कि सरकार को आम खाने से ज्यादा पे़ड़ गिनने की चिंता है। जो भी हो, कम से कम उसे अब हकीकत समझ आई है। आखिर हमारा पहला लक्ष्य है टीका लगाना न कि किस व्यवस्था से लगवाना। जो आए, उसे लगाएं। इससे टीकाकरण की रफ्तार यकीनन बढ़ेगी। आम लोगों को भी राहत मिलेगी। खास कर उन युवाअो को जो, स्लाॅट बुकिंग के लिए रोज परेशान हो रहे थे।

 

दूसरी चिंता की बात गांवों में टीकाकरण को लेकर फैले भ्रमों को दूर करने की है। मप्र में मुख्यमंत्री के पैतृक गांव में भी लोग टीका लगाने से बच रहे हैं। कई गांवों में लोगों को गलतफहमी है कि इससे मौत हो जाएगी। गांव वाले टीकाकरण टीम को देखते ही भाग जाते हैं। मानो यह कोई हौआ हो। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। निश्चय ही कुछेक मामलो में टीका लगवाने के बाद लोगों की मौत हुई है, लेकिन वह टीका लगवाने से हुई, इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। दूसरे, देश में कोरोना से मौतों का सिलसिला अभी घटा नहीं है और इसकी कोई शर्तिया दवा भी अभी तक नहीं है। ऐसे में कोरोना वैक्सीन ही एकमात्र उम्मीद की किरण है। दूसरी तरफ गांवो में कोरोना तेजी से पैर पसार रहा है। यह अजीब‍ विडबंना है कि लोग कोरोना से मरने को तैयार हैं, लेकिन उससे बचने के लिए वैक्सीन लगवाने को तैयार नहीं है। यह सोच ही अपने आप में  आत्मघाती और अंधविश्वास से भरी है। हालांकि इसमें राजनीति भी दोषी है।

अब तो कोरोना से बचाने के‍ लिए  बच्चों को भी वैक्सीन लगाने की बात चल रही है, लेकिन जब बड़ों को ही वैक्सीन  नहीं लग पा रही तो बच्चों तक वह कब और कैसे पहुंचेगी, सोचा जा सकता है। हालात का तकाजा यही है कि जब अन्य देशो में वैक्सीन की मांग घटेगी, तभी हमें पर्याप्त वैक्सीन मिल पाएगी। यूं सरकार ने अब देश में कई कं‍पनियों को वैक्सीन उत्पादन के लायसेंस दिए हैं, लेकिन वहां भी उत्पादन शुरू होने में वक्त लगेगा। वैसे भी वैक्सीन उत्पादन कोई नदी किनारे रेत खनन तो है नहीं कि जब जितना चाहा खोद लिया।

 

बहरहाल 18 प्लस वालों के सेंटरों पर ही टीकाकरण का फैसला टीकों की बर्बादी को तो बचाएगा, लेकिन इससे टीको की मांग और जल्दी बढ़ेगी, उससे सरकार कैसे निपटेगी, यह देखने की बात है। क्योंकि बुनियादी सवाल तो टीकों की जरूरत के मुताबिक उपलब्धता का ही है।

 

अजय बोकिल


 वरिष्ठ संपादक (दैनिक सुबह सवेरे)

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