-अखिलेश कुमार 'अरुण'
सेना की आन्तरिक गतिविधियों के चलते जवान इतना पीड़ित हो जाता है कि उसका हिम्मत जवाब दे जाता है। न्याय पाने के लिये वह किस कदर आँसू बहाता है यह तो आप सेना के जवान तेज बहादुर यादव और कमलेष कुमार जाधव गोकुल के वायरल विडियो को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं। दोनों की समस्याओं में समानता है। एक सैनिकों के खाने को लेकर तो दूसरा छूआ-छूत, अपने जैसे और न जाने कितने सैनिको के साथ हो रहे भेद-भाव को लेकर, इसमें दोनों सैनिक अपनी समस्याओं से पीड़ित नहीं हैं बल्कि अपने जैसे न जाने कितने सैनिकों की समस्याओं को लेकर पीड़ित हैं। सैनिकों का मुख्य कत्र्तव्य देष की रक्षा करना है, उनका न कोई अपना धर्म-मजहब, समाज़, जाति होता है, जिस दिन वे सेना को ज्वाईनकर लेते हैं उसी दिन से उनका सब कुछ सेना ही हो जाता है, यहाँ तक कि परिवार भी और अपना सर्वस्व सेना के कृत्र्तव्यों का निर्वहन करते हुये, प्राणें की बाजी लगाकर देष के नाम कुर्बान कर देते हैं। लेकिन वे देष की रक्षा क्या करेगें जो खुद ही पीड़ित हों। किसी ने खूब लिखा है-
भूखे पेट भजन न होई गोपाला।
यह लेओ आपन कण्ठी-माला।।
वास्तव में दोनों ही सैनिक भूखे हैं एक गुणवत्ता परक भोजन का और दूसरा अपने मान-सम्मान का, सैनिको में देष सुरक्षा की भावना के लिये इन दोनों का होना अति आवष्यक है। जहाँ अच्छा भोजन उन्हें पौरुषत्व देता है वहीं प्रेम से बोले गये दो शब्द जातिवाद से ऊपर मानवीयता का व्यवहार मानसिक रुप से शक्ति प्रदान करता है। कमलेष कुमार जैसे जवान देष की सेवा क्या खाक करेगें जिस देष के लोग उसे नीच जाति का समझते हों, सवर्ण सैनिक अधिकारी उसे जाति के नाम पर दुत्कारते हों किन्तु इतना सब होने के बाद भी वह सैनकि रो रो कर नयाय इसलिये मांग रहा हे कि वह देष की सेवा कर सके।एक जगह यह सैनिक अपने मान-सम्मान पर सवाल करते हुये दिख रहा है कि मुझे दुष्मन की गोली लगने का उतना दुःख नहीं होगा जितना कि इस समय जातिवाद के नाम पर अपतानित होने का दुःख है।
बीते कुछ दिन पूर्व सोषल साईट पर 26 राष्ट्रीय रायफल, अल्फा कम्पनी कुमाऊँ रेजीमेन्ट, जम्म्ूा एण्ड काष्मीर में तैनात एक जवान कमलेष कुमार जाधव गोकुल भाई, जूनागढ़ सोमनाथ गुजरात का निवासी है। इस जवान ने दो विडियो वायरल किये हैं एक-एक दिन के अन्तराल पर तथा भविष्य में विडियो न वायरल करने की भी बात कह रहा है। जवान के द्वारा विडियो वायरल किये जाने का मुख्य कारण डायनिंग हाल में खाना खाने को लेकर किया गया, जहाँ जवान को सबके साथ खाना इसलिये खाने से मना कर दिया जाता है कि वह अछूत जाति का शूद्र है, अपने साथ हुई घटना को लेकर अपने उच्च अधिकरी (शायद कोई शाहू जी हैं) के पास जाता है वह भी लताड़ कर इसलिए भगा देता है कि जवान अछूत है और उसके आने से महोदय का निवास स्थान अपवित्र हो जाता है फिर खेल शुरु होता है मानसिक रुप से प्रताड़ित किये जाने का, भूखे-प्यासे रहकर जवान अपने ऊपर हो रहे जुल्मों को दो दिन तक सहन करता है। न्याय न मिल पाने की आष में सोषल साईट का सहारा लेता है औररो रो कर अपनी व्यथा माननीय प्रधनमंत्री मोदी जी को संबोधित करते हुये न्याय की गुहार सुश्री बहन कु0 मायावती जी से भी लगाता है। यह जातिवाद, छूआ-छूत का खेल आखिर कब तक चलता रहेगा। यह सवाल है सरकार से एक तरफ जहाँ वंचितों का मत पाने के लिये शूद्र राष्ट्रपति को चुनाव मैदान में उतारा जाता है वहीं आये दिन सरकारी विभागों, स्कूल-कालेजों, भरतीय सेंनाओं में छूआ-छूत का खेल अपने चरम पर है। यह अपने 21 वीं सदी का भारत मानवता का चादर कब ओढ़ेगा।
सेना के उच्चाघिकारी अपने को किसी राजा से कम नहीं आंकते हैं। उनकी अपनी शानो-सौकत की बात ही निराली है। उनके खाने-पीने की व्यवस्था भी सामान्य सैनिकों से भिन्न होती है जिसकी मांग सिपाही.....एक मेस एक खाना की कर चुका है कि पता तो चले कि उनके खाने में और सैनिकों के खाने में कितनी समानता है। मेरे मत से यह माँग जायज भी तभी तो खाने की गुणवत्ता में सुधार आयेगा और सैनिकों के भोजन में भ्रष्टाचार के खेल पर पाबंदी लगाई जा सकेगी।
सैनिकों में जातिवाद के आधार पर उनके हौसले, जज्बा को प्राथमिकता दी जाती है, तो यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है अपने भारतीय सैन्य का, पहली बार अंग्रेज दबे-कुचले वंचितों की ताकत को पहचाना था। जिसने अपने सैन्य व्यवस्था और सरकारी तन्त्र में इनको शामिल किया और सैनिक ताकत और योग्यता के बल पर 200 सौ सालों तक भारत में राज किया। यही ताकत अगर भारतीय राज-रजवाड़े पहले पहचान गये होते तो देष कभी गुलाम ही नहीं हुआ होता। वीरता की कहानी इनकी भी लिखी जाती किन्तु दुर्भाग्य इनके सारे सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक अधिकारों पर पाबंदी लगा दी गयी थी जिसके कारण नेतृत्व के आभाव में कुर्बानी देते रहे और गुमनाम वीरों की श्रेंणी में शहीद होते रहे।
देष के आजाद होने के बाद भारतीय संविधान में इस आषय के नीति नियमों को उपबन्धित किया गया कि भारत में निवास करने वाले सभी जन विना भेद-भाव, छूआ-छूत, ऊँच-नीच के समान रुप से देष के विकास में सहयोग दे सकें यथा-
अनु0 15(2)-धर्म, मूलवंष, जाति, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर किसी नागरिक को विभेद का प्रतिषेध जोचार्टर एक्ट 1833 के सरकारी आदेष का मूलअंष है।
अनु0 16 लोकनियोजन के विषय में समान अवसर की समानता।
अनु0 17- अस्पृष्यता का अन्त।
उपरोक्त उपबन्धित भारतीय संविधान में अनुच्छेद सैनिको के सन्दर्भ में या अन्य जो भी इस प्रकार की घटनाओं के षिकार होते हैं उनके लिये यह एक मजाक बन कर रह गया है। अगर प्रताड़ना का यह क्रम निरन्तर यूँ ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब सैनिक देष की रक्षा के लिये हथियार बाद में पहले अपने मान-सम्मान, आस्तित्व के लिये उठायेगा।