साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Saturday, July 23, 2016

वंचित वर्ग का भविष्य



   वंचित वर्ग का भविष्य 

                                                             -ए०के० 'अरुण'

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हमारे वर्तमान समय के राजनेताओं आदि ने सम्वादिकीय स्तर को इतना निचे गिरा दिया है कि एक सभ्य समाज को घिन्न आती है अपने को उन्हें राजनेता कहते हुए. देश-समाज के भावी भविष्य पर बोलना हो तो मौन हो जाते हैं उन्हें सांप सूंघ जाता है, दिनों-दिन महंगाई,बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, कदाचार, व्यभिचार आदि में पर्याप्त बढोत्तरी हो रही है मजाल कि इसे रोकने का उपाय किसी के द्वारा सुझाया जाय? सुझाये भी तो कहाँ से जब उस स्तर की जानकारी हासिल किये हो तब न अमर्यादित बयानबाजी करने के लिए स्कूल तो जाना नहीं होता खुद ब ख़ुद जेहन में आ जाता है.
एक तरफ़ जहाँ केन्द्र सरकार अपने को दलित प्रेम बहाने में लगी हुई है वह्नी उसके अपने ही नेता रोज आये दिन भड़काऊ बयानबाजी करके शुर्खियों में रहना अपनी शान समझते हैं और इसकी सबसे बड़ी कमी दलिओं का एक नहोना है कुछ दिन पहले जर्नल वि.के.सिंह ने कहा था कि दलित कुत्ते के सामान हैं. अभी इससे उबर ही नहीं पाए की दयाशंकर का बयान जलते आग में घी डालने जैसा था उसने मायावती जी की तुलना एक वैश्या से कर बैठा.
जगह-जगह दलितों पर अत्याचार किये जा रहे है. अमानुषिक व्यवहार से जीव आज़िज हो उठा है. राजस्थान जैसे शहर में दलित मसुमों को जिन्दा जलाया जा रहा है, तो गुजरात में उनको इसलिए पिटा गया की वे मरी गाय की खाल को निकाल रहे थे. (गाय जैसे जीव पर दिखावा राजनीती किया जाना ठीक नहीं है वास्तव में उसे बचाना है तो अपने देश को ब्रीफ निर्यातक देश की श्रेणी में कोई स्थान नहीं होना चाहिए लेकिन ठीक इसके उल्टा है भारत ब्रीफ निर्यात में पहले स्थान पर है.) नोएडा में वहसी भीड़ ने दिन में ही एक मुसलमान का बेरहमी से कत्ल इसलिए कर दिया गया की वह मांस खा रहा था. लेकिन किसी ने यह जरुरी नहीं समझा की जिस गाय की खाल निकाली जा रही थी वह मरी थी या जिन्दा और जो मांस खा रहा था वह गाय का या था किसी अन्य जंतु का ये सब किसी मौन क्रांति को जन्म तो नहीं दे रहें है जो आने वाले समय में भारत कई खंडो में विभक्त होकर रह जाए. और तो और यहाँ जीवन जीने के लिए गद्दाफी के शासन का प्रारम्भ हो जाये और व्यक्ति अपने घर में कैद होकर मृत्यु के अंतिम काल की प्रतिक्षा करे.
वास्तव में यही स्थिति रही तो लोगो का लोकतंत्र से विश्वास उठ जाएगा. राजनीति का स्तर अतिनिम्न हो जायेगा. देश अपने विकाश के लक्ष्य को कभी नहीं पा सकेगा किन्तु ढोल-नागडे पिटे जायेंगे मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत, साक्षर भारत आदि आदि का परिणाम सिफ़र. किसका विकाश किसके लिए जब व्यक्ति सुकून से जिन्दा ही न रह सकें अपनी इज्जत, मान-सम्मान को ही न पा सके धिक्कार है ऐसे ...........

Tuesday, July 19, 2016

hindilitrature: चिकित्सकीय धर्म क्या है? सच्चाई

hindilitrature: चिकित्सकीय धर्म क्या है? सच्चाई: चिकित्सकीय धर्म क्या है? सच्चाई कैप्शन जोड़ें हम आप सभी जानतें हैं कि धरती पर ईश्वर का रूप डॉक्टर होता है. जिस पर आँखें बंद ...

चिकित्सकीय धर्म क्या है? सच्चाई




चिकित्सकीय धर्म क्या है? सच्चाई

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हम आप सभी जानतें हैं कि धरती पर ईश्वर का रूप डॉक्टर होता है. जिस पर आँखें बंद कर विश्वास करना लाज़िमी ही है. न चाहते हुए भी करना पड़ता है जब कोई अपना सगा-संबंद्धि हो तब तो शत-प्रतिशत की बात हो जाती है. पुराने समय से ही डॉक्टरी के पेशा को परम-पुण्य के पेशा का दर्ज़ा प्राप्त है. व्यक्ति को अपने इस चार दिन के जीवन में कभी न कभी चिकित्सक के दर जाना ही पड़ता है, लेकिन अब के समय में जीवन के दो दिन डॉक्टर्स के ही शरण में गुजारना है और यही सार्वभौमिक सत्य है. डॉक्टर्स हैं तो जीवन है नहीं तो कुछ भी नहीं ‘जीवन का लंबा साथ चाहिए तो चिकित्शालय आईये’ बशर्ते आप पर कुबेर का आशीर्वाद बना रहे. तभी तो बड़े लोग अब अपने दिल तक को बदल देतें हैं नहीं तो मजाल कोई अपने दिल के साथ ये गुस्ताखी कर गुजरने की हिकारत करता. सब कुछ बदल जाता था लेकिन दिल नहीं. कंहा उलझ गए महोदय आज का मुद्दा है चिकत्सकीय पेशा हाँ यह वही पेशा है जो लोगों को धर्म से जोड़ कर रखे हुए था मजाल था कोई इस पेशे से घिनौनी हरकत करता मरते दम तक अपने कर्म को धर्म से जोड़े रखता और अपने अडिग अंगद के पैर को विचलित न होने देता.
परन्तु आज का समय बदल गया है. चिकित्सक कुबेर देवता की पूजा में स्वंय को सौंप चुका है जाने-अनजाने पल-प्रतिपल ऐसे घिनौनें कार्य कर बैठता है जो चिकित्सक के लिए कहीं से भी उचित नहीं है.सामन्य व्यक्ति शर्म से डूब मरता है. चिकित्सालय के बाहर साफ़-साफ़ अक्षरों में फलां-फलां कार्य करवाना गैरकानूनी है और बाद रुपये की आडं में वही सब होता है. अर्थात रूपये कमाने का पेशा बन चुका है कोई मरे या जिए इससे मतलब नहीं है. चिकित्सक मरीज के जीतेजी तो कमाता ही है परन्तु मरीज का मरना भी उसके लिए कुबेर का दबा धन मिलने के बराबर है. मरीज के सगे सम्बन्धी हर हालत में उसे जीवित देखना चाहतें हैं और चिकित्सक पूरा भरोसा दिलाता है. यही सबसे बड़ी कमी है दोनों की जिसका पूरा फायदा उठा ले जाता है एक चिकित्सक हफ़्ते भर तक बर्फ़ पर लिटाये अत्याधुनिक मशीनों यथा आई.सी.यु.सी.,वेंटीलेटर और न जाने क्या-क्या एक दुधमुंहें बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सबके लिए लाजिम है. जिसका प्रयोग कर कुछ ही दिनों में लाखों ऐंठ लेता है और हम ठगे से मुंह बाए खड़े रह जाते है जब-तक जानकारी होती है तब तक सर्वस्व लुट चुका होता है और अपने प्रिय को पाने की चाहत में मिलती है दरिद्रता, दर-दर की खाने को ठोकरें और उसकी लाश पर बहानें को आंसू मन मसोसकर अस्पताल से लाते हैं और उसकी काया को फूंक-तापकर पश्चाताप के आंसू बहाकर जिन्दा रहते हैं. उसके गम में नहीं हुए धन की बर्बादी पर कि डाक्टरों ने कंही का नहीं छोड़ा आखिर कब चेतेंगे चिकित्सक की उनका अपाद-धर्म क्या है, लोगों के विश्वाश की मूरत पर पुते हुए कालिख़ के नकाब हैं.
                                                                   -ए०के०’अरुण’

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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