साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Monday, July 25, 2016

शिक्षा व्यवस्था



(एक सच्चाई यह भी)

Image result for SCHOOL CHALO ABHIYANए०के०’अरुण’

उ०प्र० की शिक्षा व्यवस्था को क्या कहें ग़ालिब ..........जुलाई में तो फल मिल जाता है, किताब नहीं मिलती. यह चंद लाईनें किसी शायर की नहीं बल्कि कुशीनगर के खण्ड शिक्षा अधिकारी व्हाट्स एप्स लिखें है. और उनकी शामत इसलिए बन आई है की वे वर्तमान सरकार में अच्छे ओहदे पर होते हुए उ०प्र० की शिक्षा व्यवस्था पर एक कुटिल सत्य को लिखने का साहस किया है. उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था. जिसकी थाली में खाओ उसकी थाली में छेद तो न करो भाई जो जैसा है वैसा चलने दो क्योंकि आप सरकार की नजरों से नहीं बच सकते वह बात अलग है की कत्ल, बलात्कार, चोरी, राहजनी करनें वालों की कोई खोज कबर नहीं है. वे घटना को अंजाम देकर मस्ती करते रहते हैं जब तक की पीड़ित आकर ऍफ़.आई.आर. लिखने के लिए चार चक्कर न लगाये.
उ०प्र० में गिरती शिक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी कमी प्रशासन तन्त्र की सबसे बड़ी लापरवाही है. मैं समय-समय पर इससे समन्धित लेख लिखता रहा हूँ. और आज भी उसी को दोहरा रहा हूँ की ऐसे शिक्षा से क्या लाभ जब की छात्र प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर सही तरीके से लिखने-पढनें की इल्म न ले सकें दूसरी भाषाओँ की जिक्र करना छोड़ दें उन्हें हिंदी का भी शुद्ध ज्ञान नहीं है. उसे पढ़ा-लिखा गंवार नहीं तो और क्या कहेंगे और उनसे हम देशहित का क्या स्वप्न सज़ा सकते हैं जबकि उसका खुद ही जीवन अँधेरे में हो.
यहाँ पर शिक्षा के नाम पर प्रत्येक दिन इस प्रकार की जानकारी आला अफ़सर को दी और ली जाती है कि आज फलां-फलां स्कूल में XYZ बच्चों की संख्या थी. XYZ के लिए कुल इतना अल्पाहार बनाया गया दूध फल आदि बटवाये गये. परन्तु सरकारी तंत्र की लापरवाही के चलते कभी इस प्रकार की जानकारी को हासिल किये जाने का प्रयास नहीं किया गया कि मासिक, त्रैमासिक छमाही कोर्स पूरा किया गया कि नहीं बच्चों को कक्षा में कितना पढ़ाया गया. और कोई अन्य क्रियाविधि करायी गयी की नहीं आदि-आदि.
Image result for SCHOOL CHALO ABHIYAN     घटिया मजाक किया जाता है. किसी नें खूब कहा है, ‘’स्वस्थ मस्तिष्क में स्वस्थ मन और बुद्धि का वास होता है.’’ परन्तु वे पोशाक पहनकर निरे बुद्धू लगते हैं. वर्तमान समय में स्कूली कपड़ो के ढेर सारे विकल्प हैं. उन आला मुलाजिमों से मेरा एक यही सवाल है कि बच्चों की खाखी वर्दी जिसमें शर्ट-पेंट, और स्कर्ट को क्या अपने बच्चों को भी उतने ही चाव से पहनाएंगे जितना इन ग़रीब-मुजलिमों के बच्चों को पहनने के लिए बाँटते है. जुलाई में स्कूल खुलने के बाद महीनो बीत जातें है किताब बटते-बटते तब तक परीक्षा आ चुकी होती है. स्कूली-पोशाक के नाम पर बचों के साथ
अब इस प्रकार की सच्चाई को उजागर करना सरकार की बुराई करना है या फिर .........इसका निर्णय पाठक वर्ग ख़ुद-ब-ख़ुद करें..

Saturday, July 23, 2016

वंचित वर्ग का भविष्य



   वंचित वर्ग का भविष्य 

                                                             -ए०के० 'अरुण'

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हमारे वर्तमान समय के राजनेताओं आदि ने सम्वादिकीय स्तर को इतना निचे गिरा दिया है कि एक सभ्य समाज को घिन्न आती है अपने को उन्हें राजनेता कहते हुए. देश-समाज के भावी भविष्य पर बोलना हो तो मौन हो जाते हैं उन्हें सांप सूंघ जाता है, दिनों-दिन महंगाई,बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, कदाचार, व्यभिचार आदि में पर्याप्त बढोत्तरी हो रही है मजाल कि इसे रोकने का उपाय किसी के द्वारा सुझाया जाय? सुझाये भी तो कहाँ से जब उस स्तर की जानकारी हासिल किये हो तब न अमर्यादित बयानबाजी करने के लिए स्कूल तो जाना नहीं होता खुद ब ख़ुद जेहन में आ जाता है.
एक तरफ़ जहाँ केन्द्र सरकार अपने को दलित प्रेम बहाने में लगी हुई है वह्नी उसके अपने ही नेता रोज आये दिन भड़काऊ बयानबाजी करके शुर्खियों में रहना अपनी शान समझते हैं और इसकी सबसे बड़ी कमी दलिओं का एक नहोना है कुछ दिन पहले जर्नल वि.के.सिंह ने कहा था कि दलित कुत्ते के सामान हैं. अभी इससे उबर ही नहीं पाए की दयाशंकर का बयान जलते आग में घी डालने जैसा था उसने मायावती जी की तुलना एक वैश्या से कर बैठा.
जगह-जगह दलितों पर अत्याचार किये जा रहे है. अमानुषिक व्यवहार से जीव आज़िज हो उठा है. राजस्थान जैसे शहर में दलित मसुमों को जिन्दा जलाया जा रहा है, तो गुजरात में उनको इसलिए पिटा गया की वे मरी गाय की खाल को निकाल रहे थे. (गाय जैसे जीव पर दिखावा राजनीती किया जाना ठीक नहीं है वास्तव में उसे बचाना है तो अपने देश को ब्रीफ निर्यातक देश की श्रेणी में कोई स्थान नहीं होना चाहिए लेकिन ठीक इसके उल्टा है भारत ब्रीफ निर्यात में पहले स्थान पर है.) नोएडा में वहसी भीड़ ने दिन में ही एक मुसलमान का बेरहमी से कत्ल इसलिए कर दिया गया की वह मांस खा रहा था. लेकिन किसी ने यह जरुरी नहीं समझा की जिस गाय की खाल निकाली जा रही थी वह मरी थी या जिन्दा और जो मांस खा रहा था वह गाय का या था किसी अन्य जंतु का ये सब किसी मौन क्रांति को जन्म तो नहीं दे रहें है जो आने वाले समय में भारत कई खंडो में विभक्त होकर रह जाए. और तो और यहाँ जीवन जीने के लिए गद्दाफी के शासन का प्रारम्भ हो जाये और व्यक्ति अपने घर में कैद होकर मृत्यु के अंतिम काल की प्रतिक्षा करे.
वास्तव में यही स्थिति रही तो लोगो का लोकतंत्र से विश्वास उठ जाएगा. राजनीति का स्तर अतिनिम्न हो जायेगा. देश अपने विकाश के लक्ष्य को कभी नहीं पा सकेगा किन्तु ढोल-नागडे पिटे जायेंगे मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत, साक्षर भारत आदि आदि का परिणाम सिफ़र. किसका विकाश किसके लिए जब व्यक्ति सुकून से जिन्दा ही न रह सकें अपनी इज्जत, मान-सम्मान को ही न पा सके धिक्कार है ऐसे ...........

Tuesday, July 19, 2016

hindilitrature: चिकित्सकीय धर्म क्या है? सच्चाई

hindilitrature: चिकित्सकीय धर्म क्या है? सच्चाई: चिकित्सकीय धर्म क्या है? सच्चाई कैप्शन जोड़ें हम आप सभी जानतें हैं कि धरती पर ईश्वर का रूप डॉक्टर होता है. जिस पर आँखें बंद ...

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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