साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Tuesday, October 31, 2023

सोशल मीडिया पर नंगे होने की होड़ - रमाकान्त चौधरी


           रमाकान्त चौधरी           
ग्राम -झाऊपुर, लन्दनपुर ग्रंट, 
जनपद लखीमपुर खीरी उप्र।
सम्पर्क -  9415881883

    
    जैसे ही मनुष्य के हाथ में मोबाइल आया तो यूं लगा की सारी दुनिया उसकी मुट्ठी में आ गई। मोबाइल क्रांति ने मनुष्य के जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन कर दिया, जो कार्य करने में काफी लंबा सफर तय करना पड़ता था वही काम कुछ पलों में होने लगा।  सोने पर सुहागा तब हुआ जब सोशल मीडिया ने दस्तक दी , यू ट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सएप, ईमेल, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे दर्जनों प्लेटफार्म आ गए जहां मनुष्य अपने विचारों का एक दूसरे से आदान-प्रदान करने लगा।  गरीब से गरीब व्यक्ति जो सीधे-सीधे शासन प्रशासन से अपनी बात, अपना दुख दर्द नहीं  कह पाता था वह इन सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म के माध्यम से अपनी बात शासन प्रशासन तक पहुंचाकर अपना मन हल्का  करने का रास्ता खोज निकाला। और तो और वर्षों बिछड़े पुराने मित्र जिनसे शायद दोबारा कभी मिलने की उम्मीद न थी सोशल मीडिया के माध्यम से वह सभी लोग मिलने लगे और मनुष्य अपनी जिंदगी का पूर्ण आनंद सोशल मीडिया पर ढूंढने लगा। जीवन में अपने सगे संबंधी से ज्यादा सगेपन की जगह इस अदने से प्लास्टिक के टुकड़े ने ले ली। वर्तमान समय में समाजनीति से लेकर राजनीति  व धर्मनीति का प्रचार प्रसार करने का माध्यम सोशल मीडिया से बेहतर दूसरा कोई नहीं है।  जैसे-जैसे देश दुनिया ने प्रगति की वैसे-वैसे छोटे बड़े हर हाथ में मोबाइल पहुंचने लगा।  फिर एक दौर ऐसा भी आया कि बड़ों से ज्यादा बच्चे एवं किशोर मोबाइल का उपयोग करने लगे, जो जानकारी चाहो मोबाइल से पूछो तुरंत हाजिर, किंतु सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक चीज यह हुई कि एक प्रश्न पूछने पर दस उत्तर हाजिर हो गए।  साथ साथ सोशल मीडिया के उपरोक्त तमाम प्लेटफार्म  वीडियो रील्स आदि बनाकर अपलोड करने के बदले अपने नियम शर्तों के मुताबिक अच्छा खासा  एमाउंट भी दे रहे हैं । मोबाइल फोन सोशल मीडिया लोगों के पैसा कमाने का एक बेहतरीन जरिया भी साबित हुआ। जहां एक और हर आदमी अखबार खरीद कर नहीं पढ़ पा रहा था और घर पर बैठकर टीवी पर समाचार देखने का समय नहीं था वहीं  व्यक्ति को अपने कार्य करते हुए भी  युटुब चैनलों के माध्यम से क्षेत्र से लेकर देश-विदेश तक की खबरें देखने का जानने का बेहतर प्लेट फार्म मिल गया।
 किन्तु  इन तमाम फायदों के साथ  अप्रत्याशित कार्य यह भी हुआ कि बहुत सारी वह भी चीजें मोबाइल पर खुलकर सामने आने लगी जिन्हें किशोर एवं बच्चों को नहीं देखना चाहिए।  किंतु जब सामने आई है तो फिर देखने व जानने की जिज्ञासा बढ़ जाना लाजिमी है।  इसी जिज्ञासा ने  पढ़ने वाले हाथों को अनावश्यक चीजे सर्च करने पर मजबूर कर दिया परिणाम स्वरूप जिन चीजों को जानने की अभी बिल्कुल आवश्यकता नहीं थी वह भी जानने लगे।  इसका प्रभाव यह रहा कि किशोरों द्वारा यौन अपराधों में अकल्पनीय वृद्धि हो गई । जिस कोरी स्लेट पर मानवता की इबारत लिखी जानी चाहिए थी उस स्लेट पर उम्र से पहले वे चीजें लिख गईं जो उनके जीवन के लिए अहितकर साबित हो रही हैं। आज  जो बच्चे व किशोर यौन अपराधी बन रहे हैं देखा जाए तो  मोबाइल एवं सोशल मीडिया की इस बिगड़ती सामाजिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका साबित हो रही है। किन्तु सबसे अहम परिवर्तन जो हुआ उसके विषय में सोच कर ही रूह कांप जाती है, पढ़ाई करने वाले, कैरियर बनाने वाले, कैरियर की फिक्र करने वाले युवा व किशोर  जिस तरह से रील्स बना बनाकर मोबाइल पर अपलोड करने में व्यस्त हैं वह भविष्य के लिए ठीक नहीं साबित होगा। जहां एक ओर फिल्मी गानों पर युवक युवतियां अर्धनग्न होकर वीडियो रील्स बना रहे हैं तो वहीं  दूसरी ओर आजकल  स्तनपान कराने वाली माताएं बच्चों को स्तनपान कराते हुए अर्द्धनग्न होकर रील्स बनाकर अपलोड कर रही हैं, जहां मातृत्व होना चाहिए वहां अश्लील तरीके से स्वयं को माताएं परोस रही हैं। जैसे ही सोशल मीडिया का कोई भी प्लेटफॉर्म खोला जाए कोई न कोई वीडियो रील्स जो फूहड़ता से लवरेज होगी, सामने खुलकर आ जाएगी। ऐसा लग रहा है कि मोबाइल सिर्फ इसी कार्य के लिए बनाया गया है। बच्चे, किशोर, युवा सभी नंगे होने की होड़ में लगे हुए हैं। इन्हीं नंगी पुंगी रील्स बनाने वाले हाथों में कल देश दुनिया का भविष्य  होगा, यह एक चिंतनीय व विचारणीय विषय है।

Thursday, October 26, 2023

बलत्कृत रूहें-सुरेश सौरभ

 (कविता)
  सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7376236066


कुछ लोग कहते हैं
कि युद्ध थल पर
जल पर
नभ पर 
और साइबर पर होते हैं
पर ऐसा नहीं? कदापि नहीं?
युद्ध तो होते हैं, 
हम औरतों की छातियों की विस्तृत परिधियों पर
हमारे मासूम बच्चों के पेटों 
और उनकी रीढ़ों के भूगोलों पर 
जब तमाम बम, मिसाइलें गिरतीं हैं 
ऊंची-ऊंची इमारतों पर
रिहायशी इलाकों पर
रसद और आयुध पर
तब मातमी धुएं और घनी धुंध में,
चारों दिशाओं में हाहाकार-चीत्कार उठता है
लोग मरते हैं,घायल होकर तड़पते हैं 
लाशों चीथड़ों से सनी-पटी धरती का      
 कलेजा लाल-लाल हो 
घोर करूणा से चिंघाड़ता-कराहता है।
तब उन्हीं लाशों चीथड़ों के बीच तड़पड़ते हुए 
लोगों के बीच से
परकटे परिन्दों सी बची हुई घायल-चोटिल लड़कियों को, 
औरतों को मांसखोर आदमखोर गिद्ध उन्हें नोंच-नोंच कर तिल-तिल खाने लगते हैं।
आदमखोर वहशी गिद्ध बच्चों को भी नहीं बख्शते 
उनकी मासूमियत को नोंच डालते हैं
 हिटलरों के वहशीपन की तरह
जार-जार रोती उन स्त्रियों की, बच्चों की, 
रोती तड़पती रूहों की, 
कातर आवाजें आकाश तक गूंजती रहती हैं, 
पर अंधे बहरे लोभी धर्मांध सियासतदां
 उन्हें नहीं सुन पाते, नहीं देख पाते।
अगर न यकीं हों तो इस्राइल फलस्तीन के
युद्ध को देख समझ सकते हैं 
जहां धूं धूं कर जलती इमारतों के बीच से वहशियों से लुटती, पिटती, घिसटती
स्त्रियों के घोर करूण दारूण चीखों को सुन सकते हैं। 
कोई जीते कोई हारे, 
पर हम स्त्रियां की रूहें युद्ध में बलत्कृत होती रहेंगी, 
हमेशा लहूलुहान होती रहीं हैं 
और होती रहेंगी।

Thursday, October 05, 2023

विशेष सत्र केवल महिला आरक्षण बिल तक सिमट जाना,कई अहम सवाल खड़े कर गया:नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

विशेष सत्र का एजेंडा अभी भी गुप्त
नन्दलाल वर्मा
(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर)
युवराज दत्त महाविद्यालय
लखीमपुर-खीरी 
                प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा संसद का विशेष सत्र बुलाने का हिडेन एजेंडा क्या था,वह आज भी मीडिया, विपक्ष,राजनीतिक विश्लेषकों और एकेडेमिक्स से जुड़े लोगों के लिए एक रहस्य के तौर पर देखा जा रहा है। विशेष सत्र केवल महिला आरक्षण बिल पारित कराने के लिए बुलाया गया, यह बात सहज रूप से स्वीकार नहीं हो रही है। महिला आरक्षण बिल जो जातिगत जनगणना और परिसीमन की लम्बी प्रक्रिया के बाद लागू होना है और इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम दस साल का समय लग सकता है, मात्र उस बिल को पास कराने के लिए मोदी जी द्वारा विशेष सत्र के बुलाये जाने की बात राजनीतिक गलियारों में गले नहीं उतर रही है। मीडिया,विपक्ष,राजनीतिक विश्लेषकों और एकेडेमिक्स में इस बात पर गहन अध्ययन और चिंतन चल रहा है और कई तरह की आशंकाओं को रेखांकित कर केवल महिला आरक्षण बिल पास करने के नाम पर बुलाये गए विशेष सत्र के लिये मोदी जी द्वारा तय किये गए गुप्त एजेंडों पर भी गहन अध्ययन जारी है,क्योंकि बिल के लागू होने के समय के हिसाब से यह बिल आगामी शीतकालीन सत्र में भी आसानी से पास हो सकता था।  तो फिर बिल को लेकर इतनी छटपटाहट क्यों थी। मीडिया,विपक्ष,राजनीतिक विश्लेषकों और एकेडेमिक्स में गुप्त एजेंडों को लेकर माथापच्ची जारी है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि मोदी जी इस विशेष सत्र में कुछ बड़ा करने वाले थे,लेकिन पांच राज्यों के विधानसभाओं के आसन्न चुनावों का राजनैतिक माहौल अनुकूल महसूस न होने/ हार की आहट और घबराहट या जातिगत जनगणना की मांग और उसके अनुरूप आरक्षण विस्तार जैसी राजनीतिक परिस्थितियों को भांपते हुए अपने मूल एजेंडे पर फ़ोकस न कर देश की पचास प्रतिशत आबादी नारी शक्ति का वंदन  के नाम पर उनके साथ राजनीतिक रूप से भावनात्मक रूप से जोड़ने की नीयत से  33% राजनैतिक आरक्षण देने के बिल तक सिमटना पड़ा। बौद्धिक क्षेत्र में यह भी चर्चा है कि मोदी जी इस बिल पर विपक्ष की ओर से ना नुकुर या विरोध या हो -हल्ला की उम्मीद लगाए बैठे थे। यदि बिल के पास कराने पर विपक्ष कोई हंगामा या बखेड़ा खड़ा कर देता तो मोदी जी विपक्ष पर नारी या महिला विरोधी होने की मोहर और मानसिकता का आगामी लोके सभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रचार- प्रसार कर देश की महिलाओं का वोट बैंक अपने पक्ष में करने की कवायद में सफल होने की रणनीति तय करते दिखाई देते, लेकिन विपक्ष की ओर से बिल पर किसी तरह का विरोध न आने से मोदी जी की सारी रणनीति और योजना धराशायी होती दिखी। महिला आरक्षण बिल जो पारित हुआ है, उसमें एससी-एसटी महिलाओं के आरक्षण की स्थिति स्पष्ट नहीं बताई जा रही है। चर्चा यहां तक है कि इस बिल में एससी-एसटी का राजनैतिक आरक्षण यथावत जारी रहने की बात कही गयी है,लेकिन ओबीसी और ओबीसी की महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था  नहीं की गई है, यह शत प्रतिशत सही है। यदि बिल में एससी-एसटी वर्ग की महिलाओं का क्षैतिज आरक्षण होता तो ओबीसी की महिलाओं को भी क्षैतिज आरक्षण देना पड़ता,यह तभी सम्भव होता जब ओबीसी को एससी-एसटी की तरह पहले सही आरक्षण व्यवस्था चली आ रही होती या इस बिल में नई व्यवस्था होती,जो कि दोनों  नहीं है। ऐसी स्थिति में ओबीसी की महिलाओं को आरक्षण मिलने की कोई सम्भावना नही लग रही है।

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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