साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Wednesday, October 12, 2022

ईडब्ल्यूएस आरक्षण की पृष्ठभूमि कांग्रेस ने तैयार की थी,किंतु सामाजिक-राजनीतिक नुकसान के डर से उसने कदम पीछे खींच लिए थे, लेकिन बीजेपी ने सही वक्त पर फेंका पांसा-प्रोफेसर नन्दलाल वर्मा

   विमर्श   
एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर)
वाणिज्य विभाग
वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी
2005 में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सत्ता में आई तो उसने 10 जुलाई 2006 को  रिटायर्ड मेजर जनरल एसआर सिन्‍हो की अध्यक्षता में तीन सदस्‍यीय आयोग गठित किया। आयोग ने 2010 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी, लेकिन इस आयोग की रिपोर्ट पर यूपीए की सरकार ने वोट बैंक के खिसकने के डर से उस पर अमल करने के बारे में निर्णय नही ले स्की। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राजनीतिक नुकसान के डर से रिपोर्ट पर मौन साधते हुए इसे ठंडे बस्ते में डाल देना ही उचित समझा, जबकि उनकी यूपीए सरकार के पास अभी कार्यकाल के चार साल बचे थे।

1990 में मंडल कमीशन की सरकारी नौकरियों में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की घोषणा करने के बाद से ही आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की जमीन कांग्रेस द्वारा तैयार कर ली थी, लेकिन उसे कभी अमल में लाने की कोशिश यूपीए शासनकाल के दौरान नहीं हुई जिसे बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग कर लिया। 

वर्तमान में क्यों चर्चा में आया  : वैसे तो यह मामला मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट से भी जुड़ा रहा है, लेकिन इसको जानने के लिए 2019 में चलते हैं। इस साल बीजेपी की केंद्र सरकार ने 103वॉ संविधान संशोधन कर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण देने की घोषणा की थी। फिर केंद्र सरकार ने 29 जुलाई 2021 को नीट परीक्षा में आरक्षण को लेकर एक फैसला लिया। केंद्र सरकार ने कहा कि अंडर ग्रैजुएट या पोस्ट ग्रैजुएट मेडिकल कोर्सेज में ओबीसी समुदाय को 27% और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लोगों को 10% आरक्षण का लाभ मिलेगा। इस फैसले के आने के बाद नीट परीक्षा की तैयारी कर रहे तमाम छात्र सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। याचिका लगाकर कहा कि केंद्र सरकार का फैसला सुप्रींम कोर्ट के इंदिरा साहनी बनाम केंद्र सरकार (1992) में दिए गए फैसले के खिलाफ है जिसमें कहा गया है कि आरक्षण की सीमा 50% से ऊपर नहीं होनी चाहिए। यह भी कहा गया कि सरकार ओबीसी वाला इनकम क्राइटेरिया ईडब्ल्यूएस पर कैसे लागू कर सकती है? 21अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण निर्धारित करने के लिए कोई मानदंड स्थापित किए गए हैं? ईडब्ल्यूएस आरक्षण के निर्धारण में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र को ध्यान में रखा गया? जिसको लेकर केंद्र सरकार ने अपना जवाब दाखिल किया। सरकार ने ईडब्ल्यूएस के लिए आठ लाख रुपए की आय सीमा के क्राइटेरिया सेट करने को सही ठहराया है। केंद्र की तरफ से कहा गया है कि सिंहों कमीशन की रिपोर्ट पर यह फैसला लिया गया है। केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि आठ लाख रुपये की सीमा बांधना संविधान 14,15 और 16 के अनुरूप है। 

मंडल कमीशन: साल 1990 जिसे भारतीय सामाजिक इतिहास में ‘वाटरशेड मोमेंट’(ऐतिहासिक क्षण) कहा जा सकता है। अंग्रेज़ी के इस शब्द का मतलब है कि वह क्षण जहां से कोई बड़ा परिवर्तन शुरू होता है। हाशिए पर पड़े देश के बहुसंख्यक तबके से इतर जातीय व्यवस्था में राजनीतिक चाशनी जब लपेटी गई तो हंगामा मच गया। समाज में लकीर खींची और जातीय राजनीति के धुरंधरों के पौ बारह हो गए। 7 अगस्त 1990, तत्तकालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान संसद में किया तो देश जातीय समीकरण के उन्माद से झुलसने लगा। मंडल कमीशन की सिफारिश के मुताबिक पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरी में 27% आरक्षण देने की बात कही गई। जो पहले से चले आ रहे अनुसूचित जाति-जनजाति को मिलने वाले 22.5 % आरक्षण से अलग था। वीपी सिंह के इस फैसले ने देश की पूरी सियासत बदलकर रख दी। सवर्ण जातियों के युवा सड़क पर उतर आए। आरक्षण विरोधी आंदोलन के नेता बने राजीव गोस्वामी ने आत्मदाह कर लिया जो खुद ओबीसी की श्रेणी में आता था। कांग्रेस पार्टी ने वीपी सिंह सरकार के फैसले की पुरजोर मुखालफत की और राजीव गांधी मणिशंकर अय्यर द्वारा तैयार प्रस्ताव लेकर आए, जिसमें मंडल कमीशन की रिपोर्ट को पूरी तरह से खारिज किया गया। जिस मंडल कमीशन लागू करने के बाद बीजेपी और कांग्रेस ने वीपी सिंह सरकार के खिलाफ मतदान किया और उनकी सरकार गिर गई और उसके बाद आई नरसिंह राव सरकार।

इंदिरा साहनी केस : किसी भी प्रकार के आरक्षण पर बहस हो और इस मामले का जिक्र न हो, ऐसा हो नहीं सकता है। इंदिरा साहनी दिल्ली की पत्रकार थी। वीपी सिंह ने मंडल कमीशन को ज्ञापन के जरिये लागू किया था। इंदिरा साहनी इसकी वैधता को लेकर 1 अक्टूबर 1990 को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। तब तक वीपी सिंह सत्ता से जा चुके थे और चंद्रशेखर नए प्रधानमंत्री बन गए थे, लेकिन उनकी सरकार ज्यादा दिन चली नहीं। 1991 के चुनाव में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई और पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। 25 सितंबर 1991 को राव ने सवर्णों के गुस्से को शांत करने के लिए आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण का प्रावधान कर दिया। नरसिम्हा राव ने भी आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था एक ज्ञापन के जरिये ही लागू की थी। इन दोनों ज्ञापनों पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों वाली संवैधानिक पीठ बनी। जिसके सामने आरक्षण के आधार, संविधान के अनुच्छेद 16 (4) और 16 (1) और 15 (4) व 16 (1) के पछड़ा वर्ग की समानता जैसे सवाल थे। बता दें कि संविधान के 14 से लेकर 18 तक के अनुच्छेद में जो मजमून लिखा है उसे हम समानता के अधिकार के नाम से जानते हैं। इसमें लिखा गया है कि सरकार जाति, धर्म या लिंग के आधार पर किसी भी किस्म का भेदभाव नहीं कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इंद्रा साहनी केस में फैसला देते समय आर्थिक आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण को खारिज कर दिया। नौ जजों की बेंच ने कहा था कि आरक्षित स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50% से अधिक नहीं होना चाहिए अर्थात आरक्षण की सीमा 50% से ज्यादा नही होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इसी ऐतिहासिक फैसले के बाद से कानून बना था कि 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता।

आयोग बनाने के पीछे मकसद:  जुलाई 2006 में सिंहों आयोग के गठन का बड़ा कारण चार महीना पहले यानी 5 अप्रैल 2006 को तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह द्वारा केंद्र सरकार के उच्च शिक्षा संस्थानों में ओबीसी के लिये 27% आरक्षण लागू करने की घोषणा थी। 2005 में ही संविधान संशोधन को जमीन पर उतारने की घोषणा की थी, लेकिन इसके खिलाफ भारी विरोध खड़ा हो गया। उत्तर भारत के कई शहरों में डॉक्टरों और मेडिकल के छात्र इसको लेकर सड़कों पर उतर आए और यहां तक कि विरोध स्वरूप मरीजों का इलाज भी बंद कर दिया गया था। जिस वजह से दवाब में आकर कांग्रेस की तरफ से सवर्णों के गुस्से पर मरहम लगाने के लिए आयोग बनाने वादा एक राजनीतिक दांव खेला गया, लेकिन इसकी रिपोर्ट और सुझाव वर्षों तक धूल फांकते रहे।

आयोग की रिपोर्ट में क्या कहा गया:    आयोग की रिपोर्ट में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग  के लिए एक श्रेणी देने की सिफारिश की थी, जिसको ओबीसी या अन्य पिछड़ा वर्ग के समान लाभ मिलेगा। लाभार्थियों की पहचान के लिए जिन आधार को शामिल किया गया उसमें पूछा गया कि क्या वे करों का भुगतान करते हैं, वे एक वर्ष में कितना कमाते हैं और कितनी भूमि के मालिक हैं? आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ राज्यों में सामान्य श्रेणी और ओबीसी की निरक्षरता दर 'लगभग समान' है, हालांकि सामान्य जातियों में अशिक्षा की स्थिति एससी/एसटी/ओबीसी की तुलना में कम है। जबकि सामान्‍य वर्ग की सामाजिक-आर्थिक स्थिति एससी-एसटी से बहुत आगे थी और ओबीसी से बेहतर थी। इस कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में एक जगह यह भी लिखा है कि सवर्ण (जनरल कैटेगरी) गरीबों की पहचान करने के लिए आय सीमा वही रखी जा सकती है, जो ओबीसी नॉन क्रीमी लेयर की सीमा है। 

सुप्रीम कोर्ट का सरकार से एक गम्भीर सवाल: क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण से मेरिट के 50% की अनारक्षित वर्ग के हिस्से में कटौती नहीं होगी- प्रोफेसर नन्दलाल वर्मा

    विमर्श   
एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर)
वाणिज्य विभाग
वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी
        ईडब्ल्यूएस को सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सरकार से कई सवाल पूछे। कोर्ट ने कहा, आरक्षण की अधिकतम 50% की सीमा का मतलब है कि बाकी 50% ओपेन या अनारक्षित कैटेगरी के लिए विशुद्ध रूप से मेरिट के आधार पर होगा जिसमें आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी भी जगह पा सकते हैं। अगर उसमें से 10% ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षित कर दिया जाता है तो क्या इससे मेरिट के हिस्से में कटौती नहीं होगी? सुप्रीम कोर्ट का एक और सवाल था कि ओबीसी की क्रीमीलेयर जिसे 27% आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है, वह भी 50% की ओपन कैटेगरी में प्रतिस्पर्धा करता है। अगर उसमें से 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण दे दिया जाता है तो ओपन कैटेगरी के लिए सिर्फ 40% हिस्सा ही बचेगा, ऐसी स्थिति में किसका हिस्सा कटेगा? स्पष्ट है कि ओबीसी के क्रीमी लेयर के हिस्से में ही कटौती के साथ सभी आरक्षित श्रेणी के मेरिटधारियों के हिस्से में कटौती होगी।
ईडब्ल्यूएस आरक्षण के विरुद्ध दलीलें:
          मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस दिनेश महेश्वरी, जस्टिस एस. रविंद्र भट, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। पीठ ने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण के विरुद्ध दलीलें दी गई हैं कि इससे एससी-एसटी और ओबीसी के गरीबों को जाति के आधार पर ईडब्ल्यूएस आरक्षण से बाहर रखा गया है और इस प्रकार ईडब्ल्यूएस आरक्षण संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन करता है।
          केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यहां पर किसी कानून को नहीं, बल्कि संविधान संशोधन को चुनौती दी गई है और संविधान संशोधन को संवैधानिक प्रावधानों पर नहीं, बल्कि संविधान के मूल ढांचे के आधार पर परखा जाएगा। याचिकाकर्ताओं को साबित करना होगा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है।
         कोर्ट ने मेहता से पूछा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू करने का क्या प्रभाव है, सरकार के पास राज्यों के आंकड़े होंगे? उन्होंने कहा कि इतनी जल्दी आंकड़े पेश करना मुश्किल होगा। इस पर पीठ ने कहा कि उन्होंने कुछ राज्यों से आंकड़े मांगे हैं। सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश सरकार की ओर से जब कानून का समर्थन करते हुए दलीलें दी जा रही थीं और यह कहा गया कि राज्य ने गरीबों को 10% आरक्षण लागू कर दिया है तो कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील महेश जेठमलानी से कहा कि इसे लागू करने का क्या अनुभव रहा है? ईडब्ल्यूएस आरक्षण का क्या प्रभाव है, उसका असर किस किस पर कैसा और कितना पड़ा है? इस बारे में आंकड़े पेश करिए। याचिकाकर्ताओं की ओर से यह भी दलील दी गयी कि आरक्षण व्यवस्था गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है। आर्थिक गरीबी आज है, कल नहीं रह सकती है, अर्थात आर्थिक गरीबी एक अस्थायी विषय है, जबकि सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन अरसे से चले आ रहे ऐतिहासिक अन्याय का परिणाम है और सामाजिक पिछड़ापन स्थायी विषय है। आरक्षण व्यवस्था सामाजिक प्रतिनिधित्व की बात करता है। सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी और वंचित जातियों के प्रतिनिधित्व का द्योतक माना जाता है, आरक्षण। सरकार के पैरोकार ईडब्ल्यूएस आरक्षण को आर्थिक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के संदर्भों में देख रहे है और गरीबों की गरीबी दूर करना सरकार के संवैधानिक उत्तदायित्व की बात करते हैं। व्यवस्था के हर स्तर पर सामान्य वर्ग के प्रतिनिधित्व की कमी का सवाल ही नही है। जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से सामान्य वर्ग की जातियां ओवर रिप्रेजेंटेड हैं। इसलिए आर्थिक गरीबी के आधार पर केवल सामान्य वर्ग की कुछ जातियों को 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के घोर खिलाफ जाती दिख रही हैं।
          केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बुधवार को दोहराया कि ईडब्ल्यूएस को आरक्षण देने का प्रावधान करने वाला 103वां संविधान संशोधन संविधान सम्मत है और कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए। यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता। ईडब्ल्यूएस को आरक्षण देकर उन्हें गरीबी से ऊपर उठाने की कोशिश की गई है और यह सरकार का संवैधानिक दायित्व भी है। सरकार का ईडब्ल्यूएस आरक्षण उसी दिशा में उठाया गया एक क्रांतिकारी कदम है।
         उन्होंने कहा कि यह आरक्षण का एक नवीन और भिन्न रूप है जिसमें सामान्य वर्ग के ईडब्ल्यूएस को 10% आरक्षण दिया गया है। यह आरक्षण एससी-एसटी और ओबीसी को दिए जाने वाले आरक्षण से भिन्न है। ईडब्ल्यूएस आरक्षण संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन नहीं करता है। गरीबों को गरीबी से ऊपर उठाना सरकार का संवैधानिक दायित्व है। एससी-एसटी और ओबीसी को पहले ही 49.5% आरक्षण मिला हुआ है, उन्हें ईडब्ल्यूएस की श्रेणी में शामिल करने से सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50% की सीमा का हनन होगा। ईडब्ल्यूएस को 10% आरक्षण सामान्य वर्ग के 50% आरक्षण से दिया गया है, इसलिए इसमें सीमा का उल्लंघन नहीं होता। संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 46 व 47 में गरीबों को गरीबी से ऊपर उठाना सरकार का दायित्व बताया गया है। यहां उल्लेखनीय है कि सामान्य वर्ग के लिए 50% आरक्षण नहीं है, बल्कि यह अनारक्षित या ओपेन टू आल होता है जिसमें सभी कैटेगरी के अभ्यर्थी मेरिट के आधार पर जगह ले सकते हैं। जैसे लोकसभा, विधानसभा और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में आरक्षित वर्ग का कैंडिडेट सम्बंधित आरक्षित सीट पर तो चुनाव लड़ ही सकता है और वह यदि चाहे तो अनारक्षित/सामान्य सीट पर भी चुनाव लड़ सकता है, लेकिन सामान्य या अनारक्षित वर्ग का कैंडिडेट सिर्फ सामान्य या अनारक्षित सीट पर ही चुनाव लड़ सकता है,वह किसी आरक्षित सीट पर चुनाव नहीं लड़ सकता है।

Monday, October 10, 2022

चौथे स्तम्भ पर भाजपा क्यों हुई हमलावर-सुरेश सौरभ

   अपराध   

उस दिन दुनिया गांधी जयंती मना रही थी। सत्य अहिंसा के पुजारी गांधी जी को नमन कर रही थी। लखीमपुर नगर के पत्रकार विकास सहाय अपने विज्ञापन व्यवस्थापक दिनेश शुक्ला के  साथ लाल बहादुर शास्त्री पार्क में समाचार संकलन के लिए गये थे। ब
ताते हैं कि वहां लखीमपुर नगर  पालिकाध्यक्षा निरूपमा बजपेई  जेई संजय कुमार, सर्वेयर अमित सोनी के साथ पालिकाध्यक्षा का प्रतिनिधि रिश्तेदार शोभितम मिश्रा भी मौजूद था। भाजपा की चेअरमैन साहिबा की, शास्त्री जी पर माल्यार्पण करते हुए विकास फोटो खींचना चाह रहे थे, तभी गुस्से में चेअरमैन साहिबा ने कहा-मेरे खिलाफ खबर लिखते हो, यह तुम अच्छा नहीं कर रहे हो विकास?  तभी उनका रिश्तेदार  खुद को भाजपा कार्यकर्ता बताने वाला शोभितम मिश्रा अपने मोबाइल की स्क्रीन विकास को दिखाते हुए रोब में बोला-नगर पालिका के बारे में फेसबुक पर अनाप-शनाप कविता लिखते हो? यह कहते-कहते शोभितम ने विकास को जोर से धक्का दे दिया। चटाक....विकास सिर के बल जमीन पर गिर गये,  फिर वह फौरन विकास के सीने पर चढ़, विकास की गर्दन अपने गमछे से कसने लगा, साथ ही विकास को गालियां देने लगा। चंद सेकेंडों में हुए जानलेवा हमले को विकास के साथ आए दिनेश समझ न पाए.. फौरन वह विकास को छुटाने की गरज से शोभितम की ओर दौड़े। इधर धींगामुश्ती  चल रही थी, विकास की जिंदगी बचाने की, उधर चेअर मैन साहिबा और ईओ विकास को तड़पते हुए देखकर मजे ले रहे थे। अहिंसा के पुजारी गांधी जी जयंती पर चेअरमैन के उकसाने पर हिंसक हुए शोभितम के चंगुल से विकास को, दिनेश, बड़ी मुश्किल से छुटा पाए। तब शोभितम वहां से फौरन भाग लिया। इधर विकास की गर्दन कसने  से उन्हें मूर्छा आने लगी, सांसें फूलने लगी, जोर-जोर से खांसी आने लगी। उधर कुटिल मुस्कान चेअरमैन साहिबा  और ईओ के चेहरे पर बिखरती जा रही थी, इधर लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ जमीन पर पड़ा दर्द से छटपटा रहा था। इतनी क्रूर भाजपा की चेयरमैन हो सकती है, यह चिंतनीय है। पिछले वर्ष तीन अक्टूबर को तिकुनियां में केद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्र टैनी के सुपुत्र अशीष मिश्र  ने कई किसानों को रौदते कर मारते हुए एक पत्रकार रमन कश्यप को भी  मार डाला था। भाजपा के द्वारा पत्रकारों पर यह दूसरा हमला है।  
पीड़ित पत्रकार/लेखक विकास सहाय, लखीमपुर-खीरी
       विकास पर आत्मघाती हमले के बाद तमात पत्रकार सदर कोतवाली के लामबंद हुए, तब घटना के करीब के घंटे बाद प्रभारी निरीक्षक चन्द्रशेखर की त्वरित कार्यवाही के बाद आरोपी शोभितम गिरफ्तार हुआ।आई पीसी की धारा'323/504/506/151 सीआरपीसी जैसी धाराएं लगा कर आरोपी को जेल भेज दिया गया। बताते भाजपा के रसूख के दम पर शोभितम दो दिन बाद छूट गया और आजकल अपने गांव में  मस्ती से विचरण कर रहा है।      बकौल विकास, उन्होंने नगरपालिका के बंदरबांट पर कुछ समीक्षात्मक खबरें छापीं थीं जिससे चेअर मैन साहिबा और उनका रिश्तेदार पिछलग्गू शोभितम नाराज चल रहा था। उसके जानलेवा हमले से मैं और मेरा पूरा परिवार काफी भय के साये में जी रहा हैं, मै किस भय और मानसिक पीड़ा में खबर लिख रहा हूं यह बता नहीं सकता। तिस पर चेअर मैन साहिबा के पति तथाकथित समाजसेवी डा. सतीश कौशल बाजपेयी, मुलायम सिंह का सा संवाद  दोहराते हुए मुझसे कहते हैं शोभितम बच्चा है, जाने दो, माफ कर के किस्सा खत्म करो। बच्चों से गलतियां हो जाती हैं। वे कैसे डाक्टर हैं पता नहीं? उन्हें मेरे घाव पर मरहम लगाना चाहिए जबकि वे नमक लगा रहे है। इस संदर्भ में वंचित, शोषित, सामाजिक संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष, चन्दन लाल वाल्मीकि कहते हैं मैं पत्रकार विकास सहाय को, विगत 18 सालों से जानता हूं, विकास जी जन समस्याओं को  निर्भीक, निडर, सच्चाई के साथ छापते हैं। एक जनप्रतिनिधि के सामने उनके साथी का, विकास पर घातक जानलेवा हमले की सभी ने निंदा की है, घटना की जानकारी होते ही कोतवाली में न्याय के लिए तमाम पत्रकारों के अलावा संभ्रांत व्यक्तियों  का हुजूम, विकास की कलम की लोकप्रियता को दर्शाता है। बरेली के वरिष्ठ पत्रकार गणेश पथिक का कहना है, यह अति निंदनीय, स्तब्धकारी और सर्वथा अस्वीकार्य है हमला है। ऐसे अवांछित व्यक्ति को  लखीमपुर खीरी समेत यूपी के सभी पत्रकारों, पत्रकार संगठनों को संत पुरुष  विकास के विरुद्ध अशिष्ट बर्ताव करने वाले शोभितम पर कठोरतम कार्रवाई सुनिश्चित कराने के लि‌ए सभी पत्रकारों को लामबंद होकर आंदोलन करने की जरूरत है।
शोध छात्र युवा कवि विजय बादल, विकास पर हुए हमले की निंदा करते हुए कहते हैं, "पत्रकार एवं साहित्यकार जनता की आवाज़ होते हैं, वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार विकास चन्द्र सहाय जी के साथ हुई अभद्रता जनता  की आवाज़ दबाने का कुत्सित प्रयास लगती है,  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन करते हुए इस असंवैधानिक कृत्य की जितनी भर्त्सना की जाये कम है‌।
   
सामूहिक चित्र, लाल घेरे में आरोपी शोभितम

 बुजुर्ग शिक्षाविद्  सत्य प्रकाश 'शिक्षक' कहते हैं,मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। एक मीडिया ही है, जिसके माध्यम से सबको सच्चाई का पता चलता है, अतः मीडिया से जुड़े हर व्यक्ति का सम्मान करना हर नागरिक का प्रथम कर्तव्य है‌।  दैनिक जागरण के लब्ध प्रतिष्ठित पत्रकार एवं शायर विकास सहाय, जो निहायत सीधे और सरल व्यक्तित्व के धनी हैं, हमेशा अपने कर्तव्यों पर अडिग रहने वाले जुझारू व्यक्तित्व हैं। ऐसे व्यक्ति पर 'वार्ड नामा' स्तंभ के कारण हाथ उठाना, मारपीट करना ,गला दबाना, शोभितम की कायराना हरकत है।  आरोपी को ऐसा दंड मिले  जो पूरे देश में  मिसाल बने। 
           शिक्षक  राजकिशोर गौतम और कवि रमाकांत चौधरी ऐसी घटनाओं को बाबा साहब के संविधान में दी गई अभिव्यक्ति की आजादी पर किया हमला बताते हैं। खीरी के वरिष्ठ पत्रकार सत्य कथा लेखक साजिद अली चंचल इस मामले में  कहते हैं ,लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की स्वतंत्रता पर प्रहार करने का घिनौना खेल खेलने से बाज नहीं आ रहें हैं भ्रष्टाचारी। लखीमपुर खीरी के निडर निर्भीक पत्रकार विकास सहाय के साथ, जो जुल्म की होली खेलकर उनकी (पत्रकारिता की) आवाज को दबाने का प्रयास नगर पालिकाध्यक्ष के प्रतिनिधि द्वारा किया गया, घोर निंदनीय एवं अक्षम्य हैं,  ऐसे बेहद संवेदनशील मामले में योगी जी ठोस कदम उठाएं ताकि अभिव्यक्ति की आजादी बची रही।
रिपोर्ट
सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर खीरी
उत्तर प्रदेश
मो-7376236066

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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