साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Thursday, March 31, 2022

क्या काॅमेडी और कमेडियन सचमुच खतरे में है-अजय बोकिल


अजय बोकिल
दुनिया के प्रतिष्ठित 94 वें आॅस्कर अर्वाड्स समारोह में हाॅलीवुड के जाने-माने अभिनेता विल स्मिथ ने अपनी पत्नी के गंजेपन को लेकर मंच पर की गई टिप्पणी पर कमेडियन क्रिस राॅक को थप्पड़ मारने के बाद अब माफी जरूर मांग ली है। लेकिन सोशल मीडिया पर यह मुद्दा जिंदा है और इस ‘अभूतपूर्व’ वाकए’ पर फिल्म जगत दो भागों में बंट गया है। कुछ का मानना है कि स्मिथ की जगह और कोई भी होता तो वही करता जो स्मिथ ने किया तो कुछ अन्य का मानना है कि क्रिस ने जेनेट के गंजेपन पर महज मजाक किया था और उसे उसी रूप में लिया जाना चाहिए था। क्योंिक कमेडी का मकसद तंज के साथ मनोरंजन करना ही है। उसमें दुर्भावना को तलाशना सही नहीं है। इस बीच बाॅलीवुड के जाने-माने अभिनेता, पूर्व भाजपा सांसद और अच्छे कमेडियन परेश रावल ने स्मिथ-क्रिस प्रकरण पर ट्वीट किया कि आज पूरे विश्व में कमेडियन खतरे में हैं। फिर चाहे क्रिस राॅक हों या यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की। इसे कुछ और बढ़ा दें तो इनमें भारत के कमेडियन कुणाल कामरा और मुनव्वर फारूकी का नाम भी शामिल किया जा सकता है। थप्पड़ खाने वाले क्रिस तो मशहूर स्टैंड अप कमेडियन हैं। पूरे प्रकरण का निहितार्थ यही है कि अब दुनिया में मजाक करना भी खतरे से खाली नहीं रहा। लोगो की भावनाएं इतनी नाजुक और कांच के माफिक  हो गई हैं कि कब कहां, और किस वजह से किसकी भावना आहत हो जाए, कहा नहीं जा सकता। राजनीतिक, धार्मिक और नस्ली दुराग्रहों ने हंसी की उदात्त दुनिया को और तंग कर दिया है। अब तो खुद पर हंसना भी दूभर है। हालात ये हैं कि आप अगर हंसना- हंसाना भी चाहते हैं तो आपको‍ ‍िकसी एजेंडे के पोर्टल पर ही चलना होगा। वरना फांसी का फंदा आपके लिए तैयार है। 
गौरतलब है कि विल स्मिथ ने ‘किंग रिचर्ड’ में रिचर्ड विलियम्स की भूमिका के लिए अपना पहला सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का ऑस्कर पुरस्कार जीता। पुरस्कार लेने जैसे ही स्मिथ मंच पर पहुंचे तो कॉमेडियन क्रिस रॉक ने उनकी पत्नी जेडा पिंकेट-स्मिथ के गंजेपन को लेकर चुटकुला सुनाया जिस पर स्मिथ भड़क गए और उन्होंने कॉमेडियन को थप्पड़ जड़ दिया।
बहुतों के मन में यह सवाल कौंध रहा है कि आॅस्कर अवाॅर्ड्स समारोह में मंच पर मौजूद क्रिस राॅक को विल स्मिथ की पत्नी के गंजेपन पर तंज करने की क्या जरूरत थी ? वो इससे बच भी सकते थे। क्योंकि विल की पत्नी जेडा पिंकेट का गंजापन की किसी दुसाध्य रोग के कारण है, शौकिया नहीं। लिहाजा यह कोई मजाक का विषय नहीं है। फिर भी क्रिस ने ये दुस्साहस क्यों किया ? किसी के जज्बात को आहत करना तो मजाक कमेडी नहीं हो सकती। हालांकि क्रिस के मजाक पर पहले तो स्मिथ ने महीन मुस्कान देकर अनदेखा करने की कोशिश की। लेकिन दूसरे ही क्षण उन्हें लगा कि यह उनकी पत्नी का अपमान है तो उनका पति धर्म जागा और उन्होंने ताड़ से क्रिस का गाल लाल कर दिया। इस हिंसक प्रतिक्रिया से भौंचक क्रिस ने कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की। अलबत्ता यह अप्रत्याशित सीन देखकर दुनिया हैरान रह गई और विश्व भर में कमेडियनों के दुर्दिनों पर बहस शुरू हो गई। गनीमत यह रही कि इस थप्पड़ कांड में शामिल दोनो व्यक्ति अमेरिकी अश्वेत हैं, वरना यह घटना नस्ली संघर्ष का नया शोला भी बन सकती थी। 
घटना के दूसरे दिन विल स्मिथ ने अपने किए पर अफसोस करते हुए बाकायदा माफी नामे के रूप में एक चिट्ठी जारी की। उसमें उन्होंने लिखा कि ‘हिंसा किसी भी रूप में सही नहीं है। मैंने क्रिस के साथ जो किया, वह अस्वीकार्य है। मैं इसके लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगता हूं। उन्होंने यह भी कहा कि ‘प्यार आपको पागल कर देगा।‘ स्मिथ ने जो कहा उसका आशय ही था ‍िक उन्हें मंच पर ऐसा नहीं करना चाहिए था। बल्कि संयम बरतना था। उधर हर साल लाॅस एंजेल्स में आॅस्कर समारोह का आयोजन करने वाली संस्था एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज (एएमपीएएस) ने कहा कि अकादमी किसी भी तरह की हिंसा का समर्थन नहीं करती है। 
इस घटना पर अमेरिकी कमेडियन और  एक्ट्रेस कैथी ग्रिफिन ने विल स्मिथ पर निशाना साधते हुए लिखा- स्टेज पर चलते हुए जाना और कॉमेडियन को मारना, यह बहुत बुरा है। अब हमे इस बात की चिंता करना चाहिए कि कॉमेडी क्लबों और थिएटर्स में अगला विल स्मिथ कौन बनना चाहेगा? यहां असल मुद्दा काॅमेडी और कमेडियनों के वजूद पर मंडराते खतरे का है। हंसना और हंसाना मनुष्य को ईश्वर से मिली अनुपम देन है। वरना अन्य प्राणियों में तो केवल डाॅल्फिन ही हंसना जानती है और वो भी समुद्र में रहते हुए। ऐसा लगता है कि हमारे जीवन से उन्मुक्त हंसी का स्पेस खत्म होता जा रहा है। हंसने का अर्थ अब मजाक के बजाए मजाक उड़ाना या फिर प्रतिशोध भर हो ने लगा है। जबकि हंसना-गुदगुदाना समाज को स्वस्थ रखने की एक सांस्कृतिक औषधि रहती आई है। भारतीय परंपरा में भी लोक नाट्यो और प्रहसनो में एक विदूषक जरूर हुआ करता था, जो राजा से लेकर प्रजा तक और देवताअों से लेकर प्रकृति तक हर मुद्दे पर तंज किया करता था। लोग पेट पकड़कर हंसते थे। विदूषक के साहस की दाद देते और फिर सब भूल जाते थे। मजाक को मजाक की तरह ही लिया जाता था। 
अब मजाक पहले खांचो में फिट कर देखा जाता है। उसके हिसाब उसकी स्वीकार्यता अस्वीकार्यता और प्रतिक्रिया तय होती है। क्रिस ने तो विल की पत्नी पिंकेट के गंजेपन पर ही तंज किया था। लेकिन कमेडियन कई बार राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक व्यंग्य भी करते हैं। आज सबसे मुश्किल राजनीतिक- धार्मिक कमेडी करने वालो की है। उनका धंधा बंद होने की कगार पर है। वैसे भी इस तरह की कमेडी की गुंजाइश सिर्फ लोकतांत्रिक देशों होती है। धार्मिक कट्टरपंथी, तानाशाह और कठोर वामपंथी देशों में इसकी कोई जगह नहीं है। लेकिन अब लोकतांत्रिक देशों में भी मजाक को प्रतिशोध के चश्मे से ज्यादा देखा जाने लगा है। उदारता प्रति-उदारता के तराजू में तौली जाने लगी है। एक तरह से हंसना हंसाना भी रिमोट कंट्रोल से संचालित होने लगा है। हमारे ही देश में कुणाल कामरा की कमेडी में वामपंथी रूझान तलाशा गया तो मुनव्वर फारूकी के कई शो इसीलिए रद्द हो गए क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पंजाब में रद्द हुई रैली पर तंज किया था। बंगाल जैसे कुछ राज्यों में कार्टूनिस्ट भी सत्ताधीशों के निशाने पर रहे हैं। 
यूं कलाकार राजनीति में भी अपने झंडे गाड़े, ऐसा कम ही होता है। क्योंकि कला और राजनीति की संवेदनाएं अलग अलग होती हैं। उनके तकाजे और चुनौतियां भी जुदा जुदा होती हैं। राजनीतिज्ञ भले ‘कलाकार’ हों, लेकिन कलाकारों को राजनेता के रूप में कम ही स्वीकारा जाता है। इस लिहाज से यूक्रेनी जनता का स्टैंड अप कमेडियन जेलेंस्की को राष्ट्रपति चुनना असाधारण बात है। 
जेलेंस्की आक्रामक पुतिन से जिस तरह लोहा ले रहे हैं, वो भी हैरान करने वाला है। यह शायद एक कमेडियन की ‍जिजीविषा है। जेलेंस्की नाटो की शह पर यह सब कर रहे हैं या यूक्रेन की संप्रभुता के लिए लड़ रहे हैं यह बहस का विषय है, लेकिन यह सवाल मार्के का है कि क्या एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में यूक्रेन को अपनी नीति तय करने का अधिकार भी नहीं है ? यकीनन जेलेंस्की अभी जो कर रहे हैं, वो यकीनन काॅमेडी तो नहीं ही है। 
इसमें संदेह नहीं कि दुर्भावना काॅमेडी की आत्मा नहीं हो सकती। वह जज्बात को छूती हुई निकल जाती है, पर घाव नहीं करती। वो गुदगुदाती है, गला नहीं पकड़ती। सच्ची काॅमेडी इंसान को संकीर्णताअों से सेनेटाइज करती है। लेकिन सब ऐसा नहीं सोचते। उनका मानना है कि स्मिथ के हाथों थप्पड़ खाने के बाद क्रिस आइंदा किसी की भी बीवी पर तंज कसने पर दो बार सोचेंगे। भीड़ का न्याय यही कहता है। बावजूद इसके कि काॅमेडी कोई चरित्र हत्या नहीं है। विल स्मिथ ने भी पत्नी पर तंज करने वाले क्रिस को तुरंत सबक तो सिखाया, लेकिन बाद में उन्हें अहसास हुआ कि काॅमेडी का जवाब प्रति काॅमेडी तो हो सकता है, थप्पड़ नहीं हो सकता। थप्पड़ प्रकरण में भी अभिनेता स्मिथ का अफसोस जताना पति स्मिथ से आगे की पायदान पर रखता है। उन्होंने ऐसा किसी के दबाव में किया या फिर अंतरात्मा के कहने पर किया, कहना मुश्किल है। लेकिन ऐसा करके उन्होंने मानवता के उस गुण को जरूर बचा लिया है, जो मनुष्य को दूसरे प्राकणियों से अलग करता है। विवेकशीलता को प्रतिष्ठित करता है।  
वरिष्ठ संपादक 
‘राइट क्लिक’
( ‘सुबह सवेरे’ में दि. 31 मार्च 2022 को प्रकाशित)

Wednesday, March 30, 2022

भैया जी ने इण्टर के बाद एम.ए. किया-सुरेश सौरभ

(हास्य-व्यंग्य)  
सुरेश सौरभ

भैया जी को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि वह हल्के नेता नहीं है। उनके भारी-भरकम शरीर की तरह उनका ज्ञान और विज्ञान भी बहुत भारी और भरकम है। जहां जाते हैं, बस वहीं अपनी अमिट छाप छोड़ कर चले आते हैं और चर्चा-ए-आम हो जाते हैं। बचपन में उन्होंने पहले कक्षा आठ पास किया था, बाद में लोगों के कहने पर कक्षा पांच भी पास कर लिया। मंचों पर वह अक्सर कहते थे, मैं वह एमए फर्स्ट डिवीजन पास हूं। उनकी लच्छेदार बातों पर लोगों को जब शक होने लगा, तब एक दिन विपक्षियों ने उनसे डिग्री मांगी, कहा, दिखाओ तब माने, फिर तो उन्होंने टालमटोली करनी शुरू कर दी। जब विरोधियों ने उनकी नाक में नकेल डाल कर बहुत परेशान करना शुरू किया, तो एक दिन बाकायदा उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके, अपने 'नक्षत्र विज्ञान' से एमए पास करने की डिग्री, उस समय की दिखाई जब नक्षत्र विज्ञान का कोर्स किसी विश्वविद्यालय में न था। जब इस पर, पत्रकारों ने उनसे सवाल उठाए तो वह बोले कि बस वही इतने काबिल छात्र थे जिनकी काबिलियत के दम पर फलां विश्वविद्यालय ने अकेले उनके लिए वह कोर्स चलाया था और फिर उनके कोर्स कम्पलीट करने के बाद, वह कोर्स बंद कर दिया। इसलिए उस समय वह डिग्री पाने वाले, वही एक मात्र छात्र हैं। यह भी बताया कि उन्होंने कि वह डिग्री जब हासिल की, तब इंटर के बाद डायरेक्ट एमए होता था। अब वह मंत्री पद पर रहते हुए खूब मन लगा कर, पढाई करके आगे बीए भी कर लेंगे। उनकी दूरदर्शी दृष्टि पर सभी अभिभूत हुए। आजकल वह नेता जी सत्ता की चाशनी दिन-रात चाटते हुए स्कूल कॉलेज के नौनिहालों को, युवकों को और देश की एडवाइजरी विभाग को अपने दुर्लभलतम ज्ञान से आलोकित करते हुए, अपने मन की बातों और विचारों से देश का बहुत उद्धार करने वाले सबसे टॉप क्लास के नेता बन चुकें हैं।


निर्मल नगर लखीमपुर खीरी पिन-262701
मो-7376236066

चाबी का गुच्छा-सुरेश सौरभ

    लघुकथाएं                                                                                                                                सुरेश सौरभ      
चाबी का गुच्छा

   रेंगते-रेंगते वो चाबी का गुच्छा उसकी पत्नी के पास पहुँचा। जिस पर लिखा था ‘आई लव यू मनोज।’ पत्नी ने हैरत से कहा-अरे! ये क्या?
      पति-कोंचिग की एक बच्ची ने दिया है।
      पत्नी-कैसे-कैसे बेवड़े बच्चे हैं आजकल के।
      पति-जैसे माँ-बाप होंगे वैसे बच्चे होंगे।
      पत्नी-आप तो गुरु हैं? गुरु तो पितातुल्य होता है...यह जलता सवाल पति के कलेजे पर धक्क से लगा। अब वह अपनी आँखे चुराते हुए, घर्र...ऽऽऽ..तुरन्त मोटर साइकिल स्टार्ट की...धप्प से बैठ, कालेज की ओर तेजी से चल पड़ा।
       निरुउत्तर हो, चोर आँखों से, पति को जाता देख, उसे अंदर तक सालता रहा, काफी देर तलक। अब सामने पड़ा, वह चाबी का गुच्छा उसकी आँखों में किसी किनकी सा खरक रहा था।...पर चुभन दिल में थी।

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रंगों के बहाने 

         होली एक समरसता का त्योहार है। प्रेम और धार्मिक सौहार्द को यह त्योहार बढ़ाता है।, ‘‘मम्मी! ओ मम्मी! आगे क्या लिखूँ? कुछ समझ में नहीं आ रहा है?, अपनी नोटबुक पर निबंध लिखते हुए विवेक अधीरता से बोला, ‘‘आज ही यह होली पर निबंध पूरा करके ऑनलाइन एक कम्पीटीशन में भेजना है, पाँचवी कक्षा में पढ़ने वाला विवेक, अपनी माँ से जिद करके पूछ रहा था।
      अपने काम में लगी माँ से, जब यह सवाल विवेक ने किया, तो उसको जैसे शॉक सा लगा। बदरंग यादों के दरीचें पर्त-दर-पर्त खुलते चले गये।
       तब उसकी शादी का वह चौथा साल लगा था। उस दिन, होली का दिन था। पति कहीं काम से गये थे। सास भी कहीं गईं थीं। दो साल का विवेक अपने खेल में मस्त था। घर के काम में वह व्यस्त थी, तभी घर की कुंडी बजी। खिड़की से झांका तो रंग गुलाल से सराबोर उसके दूर के, रिश्ते के तीन देवर नमूदार हुए।. . हा.. हा.. हा.. भाभी दरवाजा खोलो.... अनुनय-विनय शुरू की...नहीं नहीं तुम्हारे भैया हैं नहीं हैं? फिर आना कभी? अरे! अरे! आप तो खामखा नाराज हो रहीं हैं। होली है, इतनी दूर से आएं हैं हम। भला आप के पैर छूए बगैर कैसे चलेे जाएँगे।...नहीं नहीं फिर आना कभी? घर में अभी  कोई नहीं है।... आप की कसम रंग बिलकुल नहीं लगाएंगे हम..बच्चों सा गिड़गिड़ाने लगे वे।
       स्त्री हृदय पिघल गया। दरवाजा खोला, चट-पट हुरियारे अंदर आ गये। हा हा हा... नहीं नहीं, देखो मैंने पहले मना किया था, रंग न लगाना, देखो रंग न लगाना बाकी सब ठीक है.. हमसे बुरा कोई न होगा.. झीनाझपटी-धींगामुश्ती शुरू हुई.. फिर एक ने दोनों हाथ पकड़े, एक ने पैर, गिरा दिया एक कमजोर चिड़िया को। फिर फिर रंग रंग रंग..। वह गिगिड़ाती रही, तड़पती रही, पैर छूने वाले, आशीर्वाद माँगने वाले, देवर अपनी भाभी के जिस्म के हर हिस्से की जबरदस्ती पैमाइश कर रहे थे. बहाना था रंग रंग रंग होली...होली... होली...
       ‘‘मम्मी! ओ मम्मी! कसके विवेक ने झिझोड़ा तो उसकी तंद्रा भंग हुई। यादों की गहरी चुभन टीस लिए वह बोली-लिखो इस समरता के त्योहार को कुछ लुच्चे लफंगे गंदा कर देते हैं। कुछ आवारा शोहदों ने इसे बिलकुल्ल घिनौना बना दिया है...इसलिए महिलाओं को होली में हुड़दंगियों  से बचना चाहिए.. विवेक निबंध पूरा करते हुए एक बारगी कनखियों से माँ को देखा। उनकी आँखों में जल की एक महीन रेखा न जाने क्यों उभरती चली आ रही थी, जिसे वह समझ पाने में अक्षम था।


-सुरेश सौरभ
निर्मलनगर लखीमपुर-खीरी
मो-7376236066

जल तुम्हें बचाना है-विकास कुमार

   कविता  

जीवन बचाना चाहते हों तो, इस मीठी जल को तुम्हे बचाना होगा।
खुद में सुधार लाकर हम सबको, अच्छी आदत को अपनाना होगा।।

जल को मानिए अमृत हमसब थोडा–थोडा सा करके प्रयोग करे।
वर्षा के जल को बचाकर हम जल संरक्षण का लोग उपयोग करें।।

नदियों में कूड़ा–कचरा न डाले, जल को प्रदुषित ना करना होगा।
जीवन बचाना चाहते हों तो, इस मीठी जल को तुम्हे बचाना होगा।।

नीर, वारी, तोय, सलिल कितने सारे अनेको नाम है इसके।
साधारण सा दिखता है कितने सारे महत्वपूर्ण काम है इसके।।

जल के महत्व को जो ना समझें, उसे भी एक दिन पछताना होगा।
जीवन बचाना चाहते हों तो इस मीठी जल को तुम्हे बचाना होगा।

जल भी एक सीमित साधन है, करते हमसब मिलकर आराधन है।
हर बूंद है कीमती जल की, यह भविष्य का ही सबसे बड़ा धन है।।

साधारण ना समझे इसको, विशेष रूप से इसको समझना होगा।
जीवन बचाना चाहते हों तो, इस मीठी जल को तुम्हे बचाना होगा।

         


      दाऊदनगर औरंगाबाद बिहार
       मो :– 8864053595


प्यारी सी तितली रानी-विकास कुमार

   बाल-कविता  
विकास कुमार

आई आई नई नवेली, रंग बिरंगे तितली रानी।
देखने में लगती है बहुत अच्छी और मस्तानी।।

देखने से लगे छोटी, लेकिन इसकी बड़ी कहानी।
जितनी सीधी लगती है, कही उससे ज्यादा शैतानी।।

इसके है छोटे–छोटे से बाल–बच्चे अच्छे दिवाने।
कोई इसकी चाल–चलन को भी नही पहचाने।।

कोई बोले तितली रानी, कोई बोले पंख उड़ान।
इसमे ओ जादू है जिससे भटकाये बच्चो का ध्यान।।

रंग बिरंगे पंख है मेरे, जिससे मैं समझाना चाहती हूं।
एसे ही जिवन के सुख दुख है जिसे मैं बताना चाहती हूं।।

उड़ तुम भी सकते हो मानव, जोर ताकत तुम लगाओ।
अपने इस हौसले को, मेरी तरह सब को तुम दिखाओ।।

               
दाऊदनगर, औरंगाबाद  बिहार

Wednesday, March 09, 2022

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस और महिलाओं पर पुरुषवादी, दकियानूसियत कहर के ख़िलाफ़ समाज का सच कुछ ऐसा है-नन्द लाल वर्मा (असोसिएट प्रोफेसर)

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष:
नन्द लाल वर्मा 
08मार्च,2022 
सत्ता और समाज का एक बड़ा तबका आज भी औरतों को उपभोग की वस्तु से ऊपर उठकर नहीं समझ पा रहा है। यह समाज की पुरातनी/पारंपरिक/दकियानूसी सोच या उसके माइंड सेट का परिचायक लगती है।आज महिलाओं के प्रति अन्याय,अश्लीलता,यौन शोषण/दुष्कर्म और उसके बाद जघन्य हत्या जैसी घटनाएं दिन प्रतिदिन जिस कदर बढ़ती जा रही हैं,उसके पीछे जो सबसे बड़ा सामाजिक कारण लगता है,वह शायद यह है कि जिनके साथ ऐसी घटनाएं घटित होती हैं,वे और उनके परिजन सामाजिक बदनामी के डर,जटिल/ असंवेदनशील/भ्रष्ट  प्रशासनिक और न्यायिक प्रक्रिया की वजह से चुप्पी साध लेना उनकी विवशता बन जाती है और समाज के जिम्मेदार लोग भी उन्हें चुप हो जाने की ही नसीहत देना ही उचित समझने लगते हैं। सभ्य और शिक्षित समाज का शिक्षक,साहित्यकार,बुद्धिजीवी और मां बाप क्यों नहीं बोल पा रहे हैं? समाज के जिम्मेदार लोगों को जहां सच बोलना चाहिए ,वे वहां बोल नहीं पा रहे हैं। आज के दौर में बुद्धिजीवियों में भी उचित अवसर पर सच बोलने का साहस खत्म होता जा रहा है। बड़ी बड़ी प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाओं के जिम्मेदार, बुद्धिजीवी वर्ग,संसद में बैठी महिला सांसद,लोकतंत्र का प्रहरी और चौथा स्तंभ कहा जाने वाला देश का निष्पक्ष व स्वतंत्र मीडिया और यहां तक कि "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" का नारा देने वाली सत्तारूढ़ पार्टी के संवैधानिक पदों पर बैठे मर्द और महिलाएं तक भी नहीं बोल पा रहे हैं। आम आदमी सड़क पर उतर कर सही बात क्यों नहीं बोल पा रहा है,पूरा देश चुप क्यों है? महिला के हर सवाल या समस्या पर उसका खुद न बोलना और न ही किसी अन्य का बोलना या बोलने न देना,इस देश की परम्परा सी पनपती जा रही है।

      आज से लगभग नौ साल पहले निर्भया कांड पर आम लोग राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक सड़क पर उतर आए थे। अखबार और पत्रिकाओं से लेकर टीवी चैनलों पर खबरों की बाढ सी आ गई थी। जब संसद से लेकर न्यायपालिका तक हलचल हुई तो सज़ा का कानून बदला और सख्ती भी हुई और महिलाओं से जुड़े संवेदनशील मुद्दे राष्ट्रीय राजनीति की  मुख्यधारा में गंभीर चर्चा के विषय बनते देर नहीं लगी थी और उस समय ऐसा लगा था कि शायद अब लोगों की चुप्पी टूट रही है,किन्तु आठ साल बाद गार्गी कॉलेज की घटना पर ऐसा फिर लगा,कि अब फिर हम सब चुप क्यों हो गए हैं? चुप्पी सिर्फ न बोलने तक ही सीमित नहीं होती है,बल्कि यह एक अप्रत्यक्ष संदेश समेटे इस बात की धमकी भी होती है,कि देश में अभी भी मर्दों का ही राज चलता है।

         दिल्ली के गार्गी महिला कालेज में हुई शर्मनाक घटना ने देश के जिम्मेदार लोगों की कलई खोलकर रख दी है। छात्राओं के साथ ऐसी अश्लील घटनाएं हुई जिनकी सभ्य समाज में चर्चा करना ही अश्लीलता मानी जाती है। दिल को झकझोर देने वाली घटना की खबर कैंपस से बाहर प्रशासन और मीडिया तक न पहुंच पाना,वहां की जिम्मेदार प्राचार्य,कॉलेज प्रशासन और शिक्षिकाओं की असंवेदनीलता और कायरता या भय की एक बदसूरत बानगी देखते सिर शर्म से झुक जाता है। जेएनयू से पढ़ी लिखी देश की महिला वित्तमंत्री ने अपने 2020-21 के बजट के तीसरे सेगमेंट में इसी तरह की " केयरिंग सोसायटी" के निर्माण की संकल्पना की दुहाई देते हुए बजट सत्र में देश की जनता से संवाद क़ायम किया था। गार्गी जैसी घटना पर देश की मीडिया केंद्रित राजधानी जैसे शहर दिल्ली में आवाज तक न उठने के अत्यंत व्यापक व गंभीर निहितार्थ है,कि देश में आज भी महिलाओं की सामाजिक और राजनीतिक औकात में अपेक्षित बदलाव नहीं आ पाया है!"

          मेरे विचार से महिला अपराधों के विरुद्ध किसी भी सामाजिक या अन्य सार्वजनिक संगठनों द्वारा पीड़ितों की आवाज बनकर आंदोलन का रूप न दे पाना, अपराधियों के दुस्साहस को बढ़ाने जैसा ही है। देश की निष्पक्ष और स्वतंत्र कही जाने वाली मीडिया के बड़े हिस्से की वर्तमान स्थिति/भूमिका से समाज में एक अदृश्य भय या कायरता जैसी स्थिति पनपती नजर आती है। 

         "मेरे विचार से जिस देश का मीडिया निष्पक्षता निडरता और स्वतंत्रता के साथ एक सजग प्रहरी की भूमिका निभाता है,उस देश का लोकतंत्र और समाज के सभी अवयवों के सेहतमंद,सुरक्षित और सजग रहने की संभावनाएं बनी रहती है।

         समाज,प्रशासन और न्यायपालिका में किसी महिला के साथ हुए अपराध की सजा,उस अपराध की प्रकृति के हिसाब से नहीं,बल्कि अपराधी की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक हैसियत के हिसाब से तय होती है। "गरीब हुआ तो फांसी पर लटका दिया जाता है और यदि हैसियतदार/ओहदेदार हुआ तो बाहर आने पर उसका फूल मालाओं से स्वागत किया जाता है।"

          बीते कई सालो में इस विषमता और मर्दवादी सोच व व्यवस्था में महिलाओं को अपने लिए शिक्षा,नौकरी, पेशा/धंधा और आत्मसम्मान हासिल करने के लिए एक लंबा सफर तय करना पड़ा है और उन्हें आज भी कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। महिलाओं द्वारा अपने लिए बोलना,संघर्ष और लड़ना सीख लेने के बावजूद, देश के मर्दों की मर्दानगी की स्क्रिप्ट अभी भी नहीं बदली है। वह बेशर्मी और अहंकार के साथ हर चौराहे पर अश्लीलता करता हुआ आज भी खड़ा नजर आता और लड़कियां शर्म और डर से झुकी हुई नजर आती हैं।बदले परिवेश में ऐसे मर्दों के लिए एक नई स्क्रिप्ट के लिखे जाने की आवश्यकता है। जाहिर है कि वे मर्द नहीं लिखेंगे,जिन्हे व्यवस्था में बेशर्म और बेलगाम अप्रत्यक्ष अनगिनत अदृश्य अधिकार प्राप्त है। समय आने पर "महिला अपराधों और अन्यायों के खिलाफ नई स्क्रिप्ट उन्हीं महिलाओं द्वारा लिखी जाएगी,जिन्हे ऐसे मर्दों की मर्दानगी से पीड़ित और अपमानित होकर जहर पीना पड़ता है और फिर समाज के ही जिम्मेदारों द्वारा उन्हें चुप रहने के लिए विवश किया जाता है या नसीहत दी जाती है।"
  लखीमपुर- खीरी उत्तर-प्रदेश।

पूछ रहा है घायल-रमाकान्त चौधरी एडवोकेट

मुद्दे की बात 

रमाकान्त चौधरी एडवोकेट
लोकतंत्र का हनन हुआ है तानाशाही जारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 

समता और समानता वाले केवल भाषण होते हैं। 
जनता को बहकाने के अच्छे आकर्षण होते हैं। 
भीमराव के सपनों का भारत लुटा दिखाई देता है। 
 नेहरू पटेल गांधी का सपना टुटा दिखाई देता है। 
प्रस्तावना रो देती उस दम  सारे एक्ट लजाते हैं। 
संविधान निर्माता को जब अनपढ़ गाली दे जाते हैं। 
ग़द्दारों द्वारा संविधान के जब पृष्ठ जलाये जाते हैं। 
उनके समर्थन के खातिर जयघोष कराये जाते हैं। 
कोई रेपिया संसद जा कर मंत्री पद पा जाता है। 
और माफिया गुंडा आ अधिकारी पर रौब जमाता है। 
एक अनपढ़ नेता के आगे  प्रशासन झुक जाता है। 
शोषित पीड़ित वंचित को तब न्याय नहीं मिल पाता है। 
पूछ रहा है घायल भारत इतनी क्यों लाचारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 

अन्न उगाने वालों पर ऐसी भी हुकुमत चलती है।
फसलों के दाम नही मिलते बदले में लाठी मिलती है। 
युवा घूमता परेशान है रोजगार को तरस रहा। 
हक हकूक की बात करे तो उस पर डंडा बरस रहा। 
बहू बेटियाँ नही सुरक्षित ये कैसी आजादी है। 
घर से बाहर गर निकले तो अस्मत की बर्बादी है। 
भारत की एकता पर ऐसे भी घाव बनाये जाते हैं। 
जाति धर्म का ताना देकर युद्ध कराये जाते हैं। 
माना धर्म का ज्ञान मिले तब मानव पूरा होता है। 
पर संविधान की शिक्षा बिन सब ज्ञान अधूरा होता है। 
लोकतंत्र का हत्यारा है वह भारत का दुश्मन है। 
मानवता को भूल गया जिसे संविधान से नफ़रत है। 
ऐसे लोगों पर भी क्यों सत्ता की चौकीदारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 
शोषित  पीड़ित वंचित कोई  साहस कर जाता है। 
अपनी मेहनत के बलबूते जब आगे बढ़ जाता है। 
देख तरक्की उसकी तब कुछ बंदे शोर मचाते हैं। 
मंचों पर  चिल्लाकर वे आरक्षण गलत बताते हैं। 
आरक्षण क्यों हुआ जरूरी प्रश्न खड़ा रह जाता है।
उनपर किसने जुल्म किये ये कोई नही बतलाता है। 
संविधान जब मिला देश को तब उनको
अधिकार मिला। 
अहसास हुआ जीने का उनको जीवन का आधार मिला। 
संविधान ने ही नारी को अधिकार बराबर दिलवाया। 
संविधान ने ही नारी को सम्मान बराबर दिलवाया। 
लोकतंत्र की उचित व्यवस्था से पहचाना जाता है। 
सर्वश्रेष्ठ  दुनिया  में  भारत इसीलिए कहलाता है। 
ऊंच नीच की फिर भारत में क्यों  फैली बीमारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 
जाने कितने शीश कटे थे तब भारत आजाद हुआ। 
एक हुए जो बँटे हुए थे तब भारत आजाद हुआ। 
सबने मिलकर जंग लड़ी थी तब भारत आजाद हुआ।
 खून की नदियाँ खूब बहीं थी तब भारत आजाद हुआ। 
कुर्बान किये माँओं ने बेटे  तब भारत आजाद हुआ। 
 बहनों ने रण में भाई भेजे तब भारत आजाद हुआ। 
दुल्हनों ने  सिंदूर दिये थे तब भारत आजाद हुआ।
पिता ने लख्ते जिगर दिये थे तब भारत आजाद हुआ। 
खून खराबा खूब हुआ था तब भारत आजाद हुआ। 
काशी काबा नही हुआ था तब भारत आजाद हुआ। 
माली बन कर की रखवाली देश के जिम्मेदारों ने। 
नींद त्याग कर इसे बचाया देश के पहरेदारों ने। 
आज लुट रहा अपना गुलशन कैसी पहरेदारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 

अश्फाक बोस बिस्मिल आजाद का प्यारा भारत कहाँ गया। 
राजगुरु, सुखदेव, भगत का प्यारा भारत कहाँ गया। 
सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत कहाँ गया। 
 दिनकर, पंत निराला वाला प्यारा भारत कहाँ गया। 
रहमान  हों शामिल राम के दर्द में ऐसा भारत कहाँ गया। 
राम बने हमदर्द रहीम के ऐसा भारत कहाँ गया। 
लहू बहे न धर्म के नाम पे ऐसा भारत कहाँ गया । 
मर जाए कोई शर्म के नाम से ऐसा भारत कहाँ गया। 
लहू बहाते बात - बात पे धर्म के ठेकेदार यहाँ। 
धर्म के नाम से पनप गए हैं कुछ गुंडे गद्दार यहाँ। 
मानवता को बेंच के सारे धर्म बचाने निकले हैं। 
वस्त्र नोच के भारत माँ के मान बचाने निकले हैं। 
अपनों की ही अपनों के प्रति ये कैसी गद्दारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 

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चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

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