साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Sunday, December 22, 2019

असल मुद्दे बनाम सीएबी, सीएए और एनआरसी


असल मुद्दे बनाम सीएबी, सीएए और एनआरसी

-अखिलेश कुमार ‘अरुण’
Image result for nrcसाथियों बहुत दिनों के बाद लेखनी को हाथ लगाया है. पिछले साल दो साल से लेखन कर्म से विरत रहा हूँ. जिसके ढेर सारे कारण थे उनका उल्लेख करना आवश्यक जान नहीं पड़ता है. किन्तु अब हमें हमारा लेखकीय धर्म धिक्कार रहा है अब और नहीं.........देश विषम परिस्थियों से गुजर रहा है. विद्वान् साथियों की राय-मशविरा को कोई स्वीकारने वाला नहीं है. फेसबूकिया, व्हाट्सएप्प युनिवर्सिटियों के ज्ञानियों की भरमार हो चली है. उनके ज्ञान पर खीझ भी आती है और गुस्सा भी. जो किताबों को देखकर ही नाक-भौं सिकोड़ते हैं वह भी अपने लेखन की सत्यता के रिफरेन्स के लिए किताबों लम्बी-चौड़ी लिस्ट उदाहरण के तौर पर चिपका देते है. ऐसा जान पड़ता है कि हमने अब तक जो भी पढ़ा-लिखा है वह सब व्यर्थ गया. ऐसी पढाई-लिखाई किस काम की जहाँ पर अधूरी जानकारी ही, दी जाती रही है.
Image result for berojgariअब आते हैं हम अपने असल मुद्दे पर जहाँ एक तरफ हमारा देश बेरोजगारी, भुखमरी, शिक्षित बेरोजगारी, मंहगाई, व्यापारी वर्ग मंदी, कार्पोरेट घराना आदि सस्याओं से जूझ रहा है. देश की जीडीपी अन्तराष्ट्रीय स्तर पर औंधे मुहं लुढ़कते जा रही है. अपने देश के लोगों का भविष्य खतेरे में है. जनता त्राहिमाम् कर रही है. वहां देश की सत्तासीन सरकार CAB (सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल) NRC (नेशनल रजिस्टर फॉर सिटिजन) और CAA (सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट) को भुनाने में लगी हुई है. 
Image result for nrcजगह-जगह जनांदोलन उग्र रूप लेता जा रहा है. हठधर्मिता दोनों तरफ हाबी है जनता लागू नहीं होने देने के पक्ष में है और सरकार लागू करने के पक्ष में है. लोक प्रशासन जिसकी लाठी उसकी भैंस होकर रह गयी है. खूब लाठी-डंडे, आंसू गैस के गोले बरसाए जा रहे हैं. मेरे इस आर्टिकल लिखे जाने तक १७ लोग इस आन्दोलन की भेंट चढ़ चुके हैं. उपद्रवी अपने आस-पास के लोगों को आन्दोलन की आंड़ लेकर क्षति पहुंचा रहे हैं दुकान, कार, टैम्पों खिडकियों-दरवाजे के शीशे तोड़े जा रहे हैं. पुलिस के भेष में उपद्रवी हेलमेट लगाये लाठी-डंडों से लैस अपने आकाओं के सह पर शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को भड़काने का काम कर रहें हैं. लखनऊ में एक प्रदर्शनकारी के मरने पर जब उसका पोस्टमार्टम रिपोर्ट आता है तो उसमें 32 बोर की गोली मिलती है, इस तरह के कारतूश का प्रयोग उत्तर प्रदेश की पुलिस तो करती नहीं है तब यह गोली चलने वाला कौन था? शांतिपूर्ण प्रदर्शन जहाँ गुलाब के फूल लिए लोगों पर लाठियां भांजती पुलिस, Image result for kapil mishraकपिल मिश्रा के NRC और CAA समर्थक प्रदर्शन का स्वागत करती है जहाँ जोर-शोर से नारा लगाया जा रहा है, “देश के गद्दारों को गोली मारों शालों को” इसका उल्लेख करना यहाँ इसलिए आवश्यक बन पड़ता है कि प्रसाशन भी धर्म के नशे में चूर है. अगर ऐसा नहीं था तो क्या हुआ उन भारतीय दंड संहिता के धाराओं का, धारा 153 A- धर्म, जाति समुदाय के आधार पर शत्रुता भड़काने की कोशिश, धारा 295-लोगों में खौफ़ पैदा करना,  धारा 295A शांति भंग करना. और धारा 144. पुलिस क्यों मूक दर्शक बनी हुई थी इस भड़काऊ नारे के साथ दौड़ लगाती भीड़ पर. कहीं-कहीं पर सोशल मिडिया पर वायरल होती वीडियो में पुलिसकर्मी सरकारी सम्पतियों को तोड़-भोड़ रहे हैं, पेट्रोल डाल कर आग लगा रहे है. इसकी क्या जरुरत है पुलिसकर्मी ऐसा करने के लिए क्यों मजबूर हैं. उन्हें ऐसा करते हुए उनका ज़मीर उन्हें क्यों नहीं ललकारता, प्रशासन का भय क्यों नहीं है? या पुलिस पर उपरी आदेश है.
Image result for nrc ramchandra guhaनागरिकता संसोधन बिल के प्रोटेस्ट में जो नेता-अभिनेता, लेखक आ रहा है उसको प्रसाशन महत्त्व नहीं दे रहा है. विश्व प्रसिद्द इतिहासकार रामचंद्र गुहा केवल तख्ती लिए खड़े थे उनकी गिरफ़्तारी चर्चा का विषय बनी हुई है. सुशान्त सिंह सावधान इंडिया एपिसोड से इसलिए बाहर कर दिए जाते हैं कि वह इस बिल का समर्थन नहीं करते है. कंगना रानौत फ़िल्मी जगत पर तंज कसती हैं कि शीशे के सामने घंटो बस रूप निहारने में व्यस्त हैं देश के भूत-भविष्य से उनका कोई मतलब ही नहीं है.
पिछले तीन-चार दिनों से दैनिक जन-जीवन अस्त-व्यस्त है. स्कूल-कालेज और विश्वविद्यालय में  एक-एक दिन करके अघोषित छुट्टियों में साल के बचे-खुचे दिन बीते जा रहे हैं. सेमेस्टर परीक्षाओं का सेड्युल बिगड़ा जा रहा है. छात्रों पर देशद्रोही होने का आरोप लगाया जा रहा है. जो जहाँ मिल रहा है वहां दौड़ा-दौड़ा कर पीटा जा रहा है. एक वीडियो में साफ देखने को मिल रहा है की घर के अंदर से खींच कर पुलिस कुछ व्यक्तियों को वेतहाशा मारे जा रही है.
आखिर क्या खास है इसमें जिसको लागू करने के लिए सरकार पूरे मनोयोग से पिल पड़ी है. विद्वान वर्ग सरकार से सवाल करता है कि इस समय क्या जरुरत थी इस बिल की? यही सवाल अंजना ओम कश्यप के द्वारा इंटरव्यू में दिल्ली के मुख्यमंत्री कजरीवाल भी करते है. जिम्मेदारों को उत्तर देते न सूझता है, बस एक ही रट लगाये हैं चाहे जो भी कुछ हो जाये लागू करके रहेंगे. भारत लोकतान्त्रिक देश है अंग्रेजों का गुलाम नहीं जहाँ दमनकारी नीतियों का पालन किया जा रहा है. केंद्र और राज्य सरकारों ने देशद्रोह की परिभाषा को ही बदल कर रख दिया है उसकी नजर में सरकर की आलोचना करना ही देशद्रोह है. लोकतांत्रिक देश में पूर्ण बहुमत की सरकार ही उसका दुर्भाग्य है. विपक्ष का दबाब होता तो सत्ता के नशे में चूर सरकार पर अंकुश बना रहता. यह बिल इसलिए भी बुरा है क्योंकि वर्तमान परिवेश में इसका स्वरुप धार्मिक हो गया है संविधान की अंतरात्मा पर सवाल खड़ा करता है. भारतीय संविधान सभी धर्मों का सम्मान करता है परिणामतः यह धर्मनिरपेक्ष है अतः किस आधार पर अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान करेगा. तथा उनको इस बिल के दायरे में लायेगा.
नागरिक संसोधन बिल पर बस इतना ही कहा जा सकता है कि इसका भी वही हर्ष होगा जो नोटबंदी, कालाधन, हर साल दो करोड़ रोजगार आदि का हुआ है. केंद्र सरकार अपने साढ़े पांच साल की शासन की असफलताओं को छिपाने के लिए देश के आम नागरिकों की भावनओं से खेल रही है. राहत इन्दौरी की रचना का उल्लेख किये बिना नहीं रह पाउँगा-
सरहदों पर बहुत तनाव है क्या?
कुछ पता करो चुनाव है क्या?
खौफ़ बिखरा है दोनों सम्तों में,
तीसरी सम्त का दबाव है क्या?
यह पंक्तिया अपने में बहुत कुछ संजोये हुए है. पूरी राजनीतिक परिद्रश्य का निचोड़ है. देश में जहाँ कहीं चुनाव होता है. कुछ न कुछ जरुर भुनाया जाने लगता है. बस अब देखना यह है की राजनीति के धुरंधर अपने को सत्ता में बनाये रखने के लिए देश को किस हद तक ले जाते है.
इन्कलाब जिंदाबाद              जय जन                जय भारत
-अखिलेश कुमार ‘अरुण’

Saturday, September 07, 2019

भारतीय सेना में जातिवाद और भ्रष्टाचार

-अखिलेश कुमार 'अरुण'


army के लिए इमेज परिणामभारतीय सेना में आये दिन सेना के जवान अब एक-एक करके न्याय के लिये विडियो वायरल करते जा रहे हैं, ये उनका पेषा नहीं है जब वे हद से ज्यादा परेषान हो जाते हैं तब ऐसा करते हैं। उनके में सेना के प्रति मान-सम्मान प्रेम और त्याग है। सेना की आन्तरिक गतिविधियों को सरकार और देष की जनता के सामने नहीं लाना चाहता क्योंकि उसे भय है भारतीय सेना की इज्जत और मान-सम्मान पर आँच आने का, इस प्रकार की शंका विडियो वायरल करने से पहले जवान जाहिर कर रहा है।
सेना की आन्तरिक गतिविधियों के चलते जवान इतना पीड़ित हो जाता है कि उसका हिम्मत जवाब दे जाता है। न्याय पाने के लिये वह किस कदर आँसू बहाता है यह तो आप सेना के जवान तेज बहादुर यादव और कमलेष कुमार जाधव गोकुल के वायरल विडियो को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं। दोनों की समस्याओं में समानता है। एक सैनिकों के खाने को लेकर तो दूसरा छूआ-छूत, अपने जैसे और न जाने कितने सैनिको के साथ हो रहे भेद-भाव को लेकर, इसमें दोनों सैनिक अपनी समस्याओं से पीड़ित नहीं हैं बल्कि अपने जैसे न जाने कितने सैनिकों की समस्याओं को लेकर पीड़ित हैं। सैनिकों का मुख्य कत्र्तव्य देष की रक्षा करना है, उनका न कोई अपना धर्म-मजहब, समाज़, जाति होता है, जिस दिन वे सेना को ज्वाईनकर लेते हैं उसी दिन से उनका सब कुछ सेना ही हो जाता है, यहाँ तक कि परिवार भी और अपना सर्वस्व सेना के कृत्र्तव्यों का निर्वहन करते हुये, प्राणें की बाजी लगाकर देष के नाम कुर्बान कर देते हैं। लेकिन वे देष की रक्षा क्या करेगें जो खुद ही पीड़ित हों। किसी ने खूब लिखा है-
भूखे पेट भजन न होई गोपाला।
यह लेओ आपन कण्ठी-माला।।
army के लिए इमेज परिणाम
वास्तव में दोनों ही सैनिक भूखे हैं एक गुणवत्ता परक भोजन का और दूसरा अपने मान-सम्मान का, सैनिको में देष सुरक्षा की भावना के लिये इन दोनों का होना अति आवष्यक है। जहाँ अच्छा भोजन उन्हें पौरुषत्व देता है वहीं प्रेम से बोले गये दो शब्द जातिवाद से ऊपर मानवीयता का व्यवहार मानसिक रुप से शक्ति प्रदान करता है। कमलेष कुमार जैसे जवान देष की सेवा क्या खाक करेगें जिस देष के लोग उसे नीच जाति का समझते हों, सवर्ण सैनिक अधिकारी उसे जाति के नाम पर दुत्कारते हों किन्तु इतना सब होने के बाद भी वह सैनकि रो रो कर नयाय इसलिये मांग रहा हे कि वह देष की सेवा कर सके।एक जगह यह सैनिक अपने मान-सम्मान पर सवाल करते हुये दिख रहा है कि मुझे दुष्मन की गोली लगने का उतना दुःख नहीं होगा जितना कि इस समय जातिवाद के नाम पर अपतानित होने का दुःख है।
बीते कुछ दिन पूर्व सोषल साईट पर 26 राष्ट्रीय रायफल, अल्फा कम्पनी कुमाऊँ रेजीमेन्ट, जम्म्ूा एण्ड काष्मीर में तैनात एक जवान कमलेष कुमार जाधव गोकुल भाई, जूनागढ़ सोमनाथ गुजरात का निवासी है। इस जवान ने दो विडियो वायरल किये हैं एक-एक दिन के अन्तराल पर तथा भविष्य में विडियो न वायरल करने की भी बात कह रहा है। जवान के द्वारा विडियो वायरल किये जाने का मुख्य कारण डायनिंग हाल में खाना खाने को लेकर किया गया, जहाँ जवान को सबके साथ खाना इसलिये खाने से मना कर दिया जाता है कि वह अछूत जाति का शूद्र है, अपने साथ हुई घटना को लेकर अपने उच्च अधिकरी (शायद कोई शाहू जी हैं) के पास जाता है वह भी लताड़ कर इसलिए भगा देता है कि जवान अछूत है और उसके आने से महोदय का  निवास स्थान अपवित्र हो जाता है फिर खेल शुरु होता है मानसिक रुप से प्रताड़ित किये जाने का, भूखे-प्यासे रहकर जवान अपने ऊपर हो रहे जुल्मों को दो दिन तक सहन करता है। न्याय न मिल पाने की आष में सोषल साईट का सहारा लेता है औररो रो कर अपनी व्यथा माननीय प्रधनमंत्री मोदी जी को संबोधित करते हुये न्याय की गुहार सुश्री बहन कु0 मायावती जी से भी लगाता है। यह जातिवाद, छूआ-छूत का खेल आखिर कब तक चलता रहेगा। यह सवाल है सरकार से एक तरफ जहाँ वंचितों का मत पाने के लिये शूद्र राष्ट्रपति को चुनाव मैदान में उतारा जाता है वहीं आये दिन सरकारी विभागों, स्कूल-कालेजों, भरतीय सेंनाओं में छूआ-छूत का खेल अपने चरम पर है। यह अपने 21 वीं सदी का भारत मानवता का चादर कब ओढ़ेगा।
army food के लिए इमेज परिणामसैनिकों के साथ भेद-भाव होने की यह कोई पहला घटना नहीं है और न ही खराब खना मिलने की घटना केवलतेज बहादुर यादव सैनिक के साथ हुई थी। इस प्रकार की घटनायें सैनिकों के साथ आये दिन होती रहती हैं। कुछ सैनिक सेना की रूल एण्ड रेगुलेषन, उच्चाधिकारियों के दबाब, नोकरी जाने के डर से मुँह नहीं खोल पाते हैं। जैसे-तैसे अपनी नौकरी काल का निर्वहन करते रहते हैं और एक दिन पदमुक्त हो जाते हैं, बात जहाँ की तहाँ दब जाती है। इस लेख को लिखने का कारण केवल कमलेष कुमार जाधव का विडियो ही मेरे लिये एक मुख्य स्रोत नहीं है। मेरा भी एक मि़त्र एसएसबी का जवान है जो आये दिन प्रताड़ित किये जाने पर मुझसे अपनी बात रखता है। इस स्थिति में भारतीय आर्मी के जवान किस तन-मन के साथ देष की रक्षा करेगें।
सेना के उच्चाघिकारी अपने को किसी राजा से कम नहीं आंकते हैं। उनकी अपनी शानो-सौकत की बात ही निराली है। उनके खाने-पीने की व्यवस्था भी सामान्य सैनिकों से भिन्न होती है जिसकी मांग सिपाही.....एक मेस एक खाना की कर चुका है कि पता तो चले कि उनके खाने में और सैनिकों के खाने में कितनी समानता है। मेरे मत से यह माँग जायज भी तभी तो खाने की गुणवत्ता में सुधार आयेगा और सैनिकों के भोजन में भ्रष्टाचार के खेल पर पाबंदी लगाई जा सकेगी।
सैनिकों में जातिवाद के आधार पर उनके हौसले, जज्बा को प्राथमिकता दी जाती है, तो यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है अपने भारतीय सैन्य का, पहली बार अंग्रेज दबे-कुचले वंचितों की ताकत को पहचाना था। जिसने अपने सैन्य व्यवस्था और सरकारी तन्त्र में इनको शामिल किया और सैनिक ताकत और योग्यता के बल पर 200 सौ सालों तक भारत में राज किया। यही ताकत अगर भारतीय राज-रजवाड़े पहले पहचान गये होते तो देष कभी गुलाम ही नहीं हुआ होता। वीरता की कहानी इनकी भी लिखी जाती किन्तु दुर्भाग्य इनके सारे सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक अधिकारों पर पाबंदी लगा दी गयी थी जिसके कारण नेतृत्व के आभाव में कुर्बानी देते रहे और गुमनाम वीरों की श्रेंणी में शहीद होते रहे।
देष के आजाद होने के बाद भारतीय संविधान में इस आषय के नीति नियमों को उपबन्धित किया गया कि भारत में निवास करने वाले सभी जन विना भेद-भाव, छूआ-छूत, ऊँच-नीच के समान रुप से देष के विकास में सहयोग दे सकें यथा-
अनु0 15(2)-धर्म, मूलवंष, जाति, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर किसी नागरिक को विभेद का प्रतिषेध जोचार्टर एक्ट 1833 के सरकारी आदेष का मूलअंष है।
अनु0 16 लोकनियोजन के विषय में समान अवसर की समानता।
अनु0 17- अस्पृष्यता का अन्त।
उपरोक्त उपबन्धित भारतीय संविधान में अनुच्छेद सैनिको के सन्दर्भ में या अन्य जो भी इस प्रकार की घटनाओं के षिकार होते हैं उनके लिये यह एक मजाक बन कर रह गया है। अगर प्रताड़ना का यह क्रम निरन्तर यूँ ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब सैनिक देष की रक्षा के लिये हथियार बाद में पहले अपने मान-सम्मान, आस्तित्व के लिये उठायेगा।

पढ़िये आज की रचना

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