आख़िर आँखें खुल ही गयीं .......
एक दिन बेटे ने बाप से कुछ रूपये माँगे ट्यूशन फ़ीस देने के परन्तु फ़ीस जमा न कर अपने लिये एक बाजार से नया जाॅकेट लाया यह सोचकर कि पापा कुछ कहेगें तो बता देगें सुबह ट्यूशन के लिये जाते समय ठण्ढ से काँप जाता हूँ और पहले वाली जाॅकेट भी पुरानी हो गयी है उसमें हवा सीधे सीने पर सर-सर लगती है।
गये पहर रात को घर पहुँचा और माँ से पूछा, “ माँ बापू कँहा है?”
माँ चूल्हे पर रोटी सेंक रही थी फूंक मारते हुये बोली, “ बेटा खेत को गये हैं गेहूँ में पानी देने।”
फिर वहाँ से सीधे अपने कमरे में जाकर रजाई में गुमट गया। माँ ने खाना पकाकर बेटे को आवाज लगाया, “ बेटा अपने बापू को जाकर बुला ला खाना तैयार है।”
थोड़ी बहुत ना नुकुर के बाद कमरे से बाहर निकला जब खेत के तरफ बढ़ा तो माघ महिने की शीतलहर शरीर के सारे कपड़ों को बेधकर करेजा दहला दे रही थी खेत तक पहुँचते- पहुँचते तो मारे ठण्ढ के काँपने लगा बापू को आवाज लगाया खाने के लिये, “ बापू चलो खा....न..ा ...खा।
इतना सुनना था कि किसान ने कहा, “अरे! बेटे घर जाओ ठण्ढ लग जायेगी।
बस इतना ही सुनना था कि उसका आत्मा रो गया कुछ छड़ के लिये आवाक सन्न् रह गया खड़े-खड़े सोचने लगा कि बताओ खुद एक धोती पहने और एक बनियान जिस पर ढंग की एक साल भी नहीं है वे बापू हमारे इतने कपड़े लदे होने पर भी उन्हें ठण्ढ लगने का डर बिना अपने फिक्र किये और हम हैं कि इनकी कमाई को अनावश्यक खर्च कर रहे हैं मन-ही मन संकल्प लिया अब कुछ भी हो मैं अपने जीवन में कुछ करके रहुँगा।
बापू ने तब तक दुबारा आवाज दिया, “जाते क्यों नहीं हो...।”
उसके बाद वह लड़का अपने बापू से कभी रूपये माँगने का समर्थ न कर पाया अपने बल-बूते पर बनने का संकल्प लिया
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-अखिलेश कुमार अरूण