साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, August 04, 2017

चोटी-कटवा का भ्रम, मास-हिस्टीरिया




Image result for hysteriaदेश के उत्तरवर्ती क्षेत्र में पिछले कुछ दिनों से सुनी-सुनाई अफ़वाह का सिलसिला लगातार जारी है। इसमें वे धूर्त मक्कार बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं जो सत्य से कोशों दूर रहते हैं। लोगों को भ्रमित करना ही उनका पेशा है। मैं अपने बचपन के दिनों में मुँहनोचवा के आतंक का असर लोगों पर देख चुका हूँ जहाँ हमारे गाँव के ज्यादातर लोग रात को घर के अन्दर सोते थे, वहीं हमारे घर में परिवार के सभी लोग यहाँ तक कि हम बच्चे भी बाहर ही सोते थे इस अफ़वाह से आमना-सामना के लिये परन्तु दुर्भाग्य कहिये उस मुँहनोचवा का या मेरे परिवार का कभी आस-पास नहीं हु ये।

                       चोटी-कटवा का भ्रम, मास-हिस्टीरिया


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समय-समय पर विविध प्रकार के अभवाह लोगों के बीच आते रहे हैं। ये अफ़वाह विश्वास करने वालों के लिये काल हो जाते हैं और न मानने वालों के लिये मुर्खतापूर्ण धूर्त मक्कारी बस यही सत्य है। भारत की जनता आज भी अन्धविश्वास के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाई है या यों कहें कि आज भी पोंगा-पंथी अपनी दुकान चलाने के लिये लोगों के बीच ऐसे अफवाह फैलाकर सत्यता की जाँच करते रहते हैं कि उनका और उनके द्वारा बनाये गये जादू-टोना, गण्डा-ताबीज, भूत, पिचाश, चुड़ैल आदि का कितना असर लोगों के दिलों-दिमाग पर है।


आज महिलायें ज्यादातर चोटी-कटवा से भयभीत हैं, गाँव तो गाँव इससे शहर की महिलायें भी अछूती नहीं हैं। यह कोई नई घटना नहीं है इससे पहले भी कई अफ़वाह लोगों के बीच आ चुका है। यथा-गणेश का दूध पीना, मंकीचोर, मुँहनोचवा, शंकर के त्रिनेत्र से आंसू आना, पेड़ में गणेश की आकृति उभरना आदि। कितने का उदाहरण दिया जाय परन्तु दुर्भाग्य रहा कि आज तक इन घटनाओं के साक्ष्य प्राप्त नहीं हुये। इसके तह में जाने का प्रयास करो तो साफ झूठ के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता है। लोग सुनी-सुनाई बातों पर यकीन करते चले जाते हैं और पहला व्यक्ति अपने से दूसरे को अतिशयोक्ति में व्यापक वर्णन प्रस्तुत करता है। और यह सामूहिक रूप से लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लेता है।

कुछ व्यक्ति इस प्रकार की अफवाहों के शिकार हो जाते हैं। इसमें कसूर उनका नहीं है। मनोवैज्ञानिकों के मतानुसार वे एक बिमारी से पीड़ित होते हैं जिसे हिस्टीरिया के नाम से जाना जाता है। हिस्टीरिया रोग की ज्यादातर शिकार महिलायें होती हैं। व्यापक क्षेत्र में जब इससे लोग पीड़ित हो जाते हैं तो इसे मास-हिस्टीरिया के नाम से जाना जाता है। हिस्टीरिया (HYSTERIA) की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है। बहुधा ऐसा कहा जाता है, हिस्टीरिया अवचेतन अभिप्रेरणा का परिणाम है। अवचेतन अंतर्द्वंद्र से चिंता उत्पन्न होती है और यह चिंता विभिन्न शारीरिक, शरीरक्रिया संबंधी एवं मनोवैज्ञानिक लक्षणों में परिवर्तित हो जाती है। अतः इस रोग से पीड़ित महिलायें स्वयं का अफवाहों से सीधा संबन्ध प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ लेती हैं जिस कारण वे कभी-कभी अपना जान भी गंवा बैठती हैं। हिस्टीरिया का उपचार मनोवैज्ञानिकों ने संवेदनात्मक व्यवहार, पारिवारिक समायोजन, शामक औषधियों का सेवन, सांत्वना, बहलाने, तथा पुन शिक्षण से किया जाना बताते हैं।

चोटि-कटवा से पीड़ित महिला जो बेहोस हो गयी थी या जो चोटिल हो गई है वे सब इसी रोग से पीड़ित हैं। इसके इतर वे महिलायें जो यात्रा के दौरान या बाजार, सिनेमाहाल, भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जहाँ उनकी चोटी कट जाती है, वस्तुतः यह किसी सरारती व्यक्ति का काम है। जब लोगों के जेब कट सकते हैं, कानों के कुण्डल, गले का हार नोचा जा सकता है। तब की स्थिति में किसी महिला की चोटी काट देना तो बहुत सरल है। अफवाहों का बाजार कम पढ़े-लिखे लोगो के बीच ही फैलता है। शिक्षितवर्ग इन सबसे कोसों दूर रहता है।
Image result for hysteriaइसका एक मात्र बचाव जागरूकता है सही तरीके से आम-जन को निर्देशित किया जाना चाहिये कि अफवाहों को तब तक प्राथमिकता न दें जब तक कि उसकी पुष्टि नहीं हो जाती। ऐसा होता नही है मीडिया अपनी टीआरपी के लिये अन्धविश्वासियों के मूँह में माईक लाकर घूसेड़ देता है और तरह-तरह की चमत्कार लीलायें एक के बाद एक आखों देखी परोसता रहता है। अनुमानतः यह भी हो सकता है कि लोगों का ध्यानाकर्षण राजनीतिज्ञ धूर्त मुख्य मुद्दों से लोगों को बरगलाने के लिये इस फिजुल की बातों को हवा दे रहे हों, यह कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं किन्तु मीडिया तिल का ताड़ बनाने में लगी है। आईये हम अपने को सतर्क रखें और अपने आस-पास के लोगों का जागरूक 
                -अखिलेश कुमार अरूण


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